अशरा ए मजलिस
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रिशवत लेना किसी भी सूरत जायेज़ नहीं: मौलाना सैयद अली हाशिम आब्दी
हौज़ा / इमाम हुसैन अ०स० का साथ देने वालों ने न अपनी जान की परवाह की और न ही अपनी अवलाद और माल की फिक्र की, हज़रत मुस्लिम बिन अक़ील अ०स० को मालूम था कि अगर इमाम हुसैन अ०स० का साथ देंगे तो खुद भी शहीद हों गे, बच्चे भी शहीद होंगे, बीवी को क़ैदी बनाया जाये गा, माल लूटा जाये गा लेकिन आप ने ज़िदगी के आखरी लमहों तक हक़ का एलान किया, ख़ुद शहीद हुए, दो बेटे करबला में शहीद हुए, दो बेटे कूफे में एक साल की क़ैद के बाद शहीद हुए, एक बेटी ताराजी ए ख़ेयाम के दौरान शहीद हुयीं, दूसरी बेटी और बीवी क़ैद हुईं, यज़ीदी हुकूमत ने मदीना में आप के घर को गिरा दिया कि जब आप की बीवी शाम के क़ैदखाने से आज़ाद हो कर मदीना आयीं तो अपने घर को मुंहदिम पाया तो जितने दिन भी ज़िंदा रही कभी इमाम सज्जाद अ०स० के घर रही तो कभी हज़रत ज़ैनब स०अ० के घर रहीं!
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इमाम हुसैन से जुड़ा है इंसानियत का सम्मानः अल्लामा शहंशाह हुसैन नकवी
हौज़ा / मनुष्य और समाज के अस्तित्व का सामान हुसैन और कर्बला के महान आंदोलन से संबंधित है।
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मजलिस हुसैन (अ.स.) फरिश्तों के नुज़ूल का स्थान है, मौलाना कल्बे जवाद नकवी
हौज़ा/ इमाम जाफ़र सादिक (अ.स.) ने मजलिस-ए-अज़ा के चौदह नामों का उल्लेख किया है जो फ़र्श-ए-अज़ा की महानता को प्रकट करते हैं। इस मजलिस हुसैन (अ.स.) को फरिश्तों के नुज़ूल का स्थान और दुरूद और अरफात का क्षेत्र बताया गया है।