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क़ुरआन की रौशनी में:
इस्लाम, इंसान की ज़िंदगी के हर मैदान के लिए है
हौज़ा / इंसान के लिए सारे उसूल इस्लाम में मिलते हैं,अल्लाह के सामने गिड़गिड़ाने, उससे दुआ मांगने, उसके सामने रोने और नमाज़ पढ़ने से लेकर जिहाद तक यह इंसान के कामयाबी के राज़ हैं।
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नहजुल-बलागा के नजरिए से सामाजिक और सामूहिक जिम्मेदारी
हौज़ा / हौज़ा और विश्वविद्यालय की शिक्षका ने कहा: अमीरुल मोमिनीन हज़रत इमाम अली (अ) की जीवनी और नहजुल-बलागा में उनके बहुमूल्य भाषण की समीक्षा करने से यह सर्वविदित है कि लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करना और उनके साथ अच्छा नैतिक रूप से कार्य करना सामाजिक में से एक है एक इंसान की जिम्मेदारियाँ है।
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जन्नतुल बक़ी का इतिहास और उसकी तबाही के ज़िम्मेदार
हौज़ा /जन्नतुल बक़ी तारीख़े इस्लाम के जुमला मुहिम आसार में से एक है, अफ़सोस! बीती हुई सदी में जिसे वहाबियों ने 8 शव्वाल 1345 मुताबिक़ २१ अप्रैल 1925 को शहीद करके दूसरी कर्बला की दास्तान को लिख कर अपने यज़ीदी किरदार और अक़ीदे का वाज़ेह तौर पर इज़हार किया है।
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एतिकाफ़ का सवाब,और एतिकाफ़ क्या है?
हौज़ा / एतिकाफ़ यह एक क़ुरआनी शब्द है और अल्लाह तआला ने हज़रत इब्राहीम और हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम को हुक़्म दिया था कि वे उनके घर को तवाफ़ करने वालों और एतिकाफ़ करने वालों के लिए पाक व पाकीजा बनाएं।
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हज़रत इमाम अली अ.स.मानवता और न्याय के इमाम हैं
हौज़ा / हज़रत इमाम अली अ.स. के रौज़े पर पहुंचे पॉप के प्रतिनिधि एवं सलाहकार ने कहा कि इमाम अली अ.स. मानवता और न्याय के इमाम हैं, और उनकी दरगाह पर जाना मेरे लिए बहुत सम्मान की बात हैं।
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शरई अहकाम:
अगर कोई औरत आज़ान ए सुबह के बाद (माहवारी)हैज़ या नेफास से पाक होती है तो क्या उसे दिन वह रोज़ा रख सकती है?
हौज़ा / अगर कोई औरत सुबह की आज़ान के बाद (माहवारी) हैज़ या नेफास के ख़ून से पाक हो जाय या दिन में इसे हैज़ या नेफास का ख़ून आ जाए तो भले ही यह खून मग़रिब के करीब ही क्यों ना आए इसका रोज़ा बातिल हैं।
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अल्लाह तआला ने जहन्नम को क्यों पैदा किया? आयतुल्लाह जवादी आमुली
हौज़ा / आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमुली ने सूरे रहमान की तफसीर में अपने दर्स में अल्लाह तआला की रहमत न्याय और अज़ाब के बारे में कुछ बिन्दुओं को बयान किया हैं।
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शबे क़द्र के आमाल
हौज़ा / माहे मुबारक रमज़ान की उन्नीसवीं, इक्कीसवीं और तेइसवीं शबे क़द्र के मुश्तरका आमाल
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17 रमज़ान अल मुबारक जंगे बदर:
जंगे बदर और उसके कारण
हौज़ा / जंगे बदर 17वीं रमज़ान से 21वीं रमजान तक दूसरी हिजरी मे कुफ़्फ़ारे कुरैश और मुसलमानों के बीच हुई । बद्र मूल रूप से जुहैना जनजाति के एक व्यक्ति का नाम था जिसने मक्का और मदीना के बीच एक कुआँ खोदा था और बाद में इस क्षेत्र और कुएँ दोनों को बद्र कहा जाने लगा, इसलिए युद्ध का नाम भी बद्र के नाम से जाना जाने लगा।
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हज़रत इमाम हसन अ.स. के दान देने और क्षमा करने का वाक़्या
हौज़ा / एक दिन हज़रत इमाम हसन अ.स. घोड़े पर सवार हो कर कही जा रहे थे कि शाम अर्थात मौजूदा सीरिया का रहने वाला एक इंसान रास्ते में मिला। उस आदमी ने इमाम हसन को बुरा भला कहा और गाली देना शुरू कर दिया हज़रत इमाम हसन अ.स चुपचाप उसकी बातें सुनते रहे, जब वह अपना ग़ुस्सा उतार चुका तो हज़रत इमाम हसन अ.स. ने उसे मुस्कुरा कर सलाम किया और अपने अख्लाक के जरिए से उसके इबहाम को दूर किए।
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13, 14 और 15 रमज़ान अल मुबारक के आमाल
हौज़ा / रमज़ान की तेरहवीं, चौदहवीं, पंद्रहवीं रात के आमाल
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इस्लाम पर दौलते जनाबे ख़दीजा स.अ. का एहसान
हौज़ा / जनाबे ख़दीजा स.अ.पूरे अरब में दौलतमन्द और मश्हूर थीं आपका लक़्ब मलीकतुल अरब था आप को अमीरतुल क़ुरैश भी कहा जाता था आपकी इतनी दौलत थी कि कारवाने तिजारत तमाम क़ुरैश के कारवान से मिलकर भी ज़्यादा हुआ करते थी आपने अपनी सारी दौलत इस्लाम पर कुर्बान कर दिया तारीख ए इस्लाम में जनाबे ख़तीजा का बहुत बड़ा एहसान हैं।
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भोर में उठने से आत्मा को आनन्द एवं शान्ति प्राप्त होती हैं
हौज़ा / माहे रमज़ान के पवित्र महीने में कुछ विशेष क्षण होते हैं। इन विशेष क्षणों में सबसे सुंदर क्षण सहर अर्थात भोर के समय के होते हैं। बड़े खेद के साथ कहना पड़ता है कि वर्तमान जीवन शैली तथा शारीरिक एवं मानसिक थकान ने अधिकांश लोगों को भोर के समय में उठने से वंचित कर रखा है। माहे रमज़ान के पवित्र महीने में हमें यह सुअवसर प्राप्त होता है कि भोर समय उठने के आनन्द तथा उसके लाभ का हम आभास कर सकें। दिन भर के 24 घण्टों में भोर का समय ही सबसे अच्छा समय होता है।
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हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली खामेनेई:
आज गाज़ा में जारी अपराधों ने प्रतिरोध के मोर्चे के गठन की उपयोगिता और उसे मज़बूत बनाने की ज़रूरत है
हौज़ा / हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने नए हिजरी शम्सी साल के पहले दिन बुधवार 20 मार्च की शाम को तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में विभिन्न वर्ग के लोगों से मुलाक़ात की।
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यौम ए वफ़ात उम्मुल मोमिनीन हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा
हौज़ा / उस ज़माने में भी जनाबे ख़दीजा स.अ. की शख़्सियत इतनी अज़ीम और इज़्ज़तदार थीं कि आप को औरतों का सरदार कहा जाता था। उम्मत की मां जनाबे ख़दीजा स.अ एक बा फ़ज़ीलत ख़ातून हैं. आपका नाम ख़दीजा, कुन्नियत उम्मे हिन्द थी, आप के वालिद ख़ुवैल्द इब्ने असद और वालिदा का नाम फ़ातिमा बिन्ते ज़ायदा इब्ने असम था।
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माहे रमज़ान के छठवें दिन की दुआ (6)
हौज़ा / हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने यह दुआ बयान फ़रमाई हैं।
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रमजान उल मुबारक में ज़्यादा से ज़्यादा कुरआन की तिलावत करें।
हौज़ा/ हज़रत इमाम मोहम्मद बाकिर अलैहिस्सलाम ने फरमाया ,हर चीज़ की कोई एक बहार होती है और क़ुरआने करीम की बहार माहे रमज़ान है।
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माहे रमज़ान के पांचवें दिन की दुआ (5)
हौज़ा / हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने यह दुआ बयान फ़रमाई हैं।
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माहे रमज़ान के चौथे दिन की दुआ (4)
हौज़ा / हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने यह दुआ बयान फ़रमाई हैं।
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रमज़ान अलमुबारक के मौके पर काज़मैन में महफिल में कुरआन खावनी का हसीन मंजर/फोटो
हौज़ा / रमज़ान अलमुबारक के शुरू होते ही काज़मैन में महफिल में कुरआनी महफिल की शुरुआत हुई यह महफिल प्रतिदिन हरम इमामैन काज़मैन अलैहिस्सलाम में आयोजित की जाती है।
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दुआ ए मकारेमुल अख़लाक़ और रमज़ान का महीना
हौज़ा/इस संसार के अन्त में लौटने का कोई मार्ग नहीं है ठीक उसी प्रकार जैसे अविकसित व विकरित बच्चा विकास करने एवं विकार दूर करने के लिये पुनः माता के पेट में नहीं जा सकता तथा पेड़ से टूटा हुआ फल दोबारा पेड़ में नहीं लग सकता।
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सहरी की दुआ
हौज़ा / हज़रत इमाम अली इब्नुल हुसैन अ.स. हज़रत ज़ैनुल आबिदीन अलैहिस्सलाम ने यह दुआ बयान फ़रमाई हैं।
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माहे रमज़ान के दूसरे दिन की दुआ (2)
हौज़ा / हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने यह दुआ बयान फ़रमाई हैं।
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माहे रमज़ान के पहले (1) दिन की दुआ
हौज़ा / हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने यह दुआ बयान फ़रमाई हैं।
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रमज़ान उल मुबारक की बहुत सारी विशेषताएं
हौज़ा / रमज़ान का महीना अपनी विशेषताओं की वजह से ख़ास अहमियत रखता है, जिसमें इंसान की ज़िंदगी और आख़ेरत दोनों को संवारा जाता है, इसलिए अगर कोई इस मुबारक महीने के आदाब को नहीं जानेगा तो वह इसकी बरकतों और नेमतों से फ़ायदा भी हासिल नहीं कर सकेगा।
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रमज़ान में शिया हेल्पलाइन शुरू
हौज़ा / मौलाना सैयद सैफ अब्बास नकवी ने कहा कि रमज़ान के महीने की अहमियत और फ़ज़ीलत अनगिनत हैं, क्योंकि रोज़ा, नमाज़ और इबादत के दूसरे कामों को सही और उचित तरीके से करने के लिए शरीयत के मुद्दों को जानना बहुत ज़रूरी है ताकि पूजा-पाठ एक बेहतर तरीका है।
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तहरीके दीनदारी को पुनर्जीवित करना चाहिए!!
हौज़ा/ तहरीके दीनदारी यानी 20वीं सदी में इमामिया स्कूलों की स्थापना एक दैवीय और आध्यात्मिक योजना थी जिसमें खतीब-ए-आज़म मौलाना सैयद गुलाम अस्करी ताबा सराह अल्लाह ताला की मदद से सफल हुए।
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अल्लाह तआला इमाम मेहदी अ.स. के माध्यम से दीन को कामिल करेगा
हौज़ा / हज़रत इमाम ज़माना अ.स. के बारे मे रिवायत है बयानउल कंजी शाफ़ेई में अली बिन जोशब से रिवायत की है अली बिन जोशब बयान करता है अली इब्ने अबी तालिब फ़रमाते है कि मैने रसूलल्लाह स. से सवाल किया कि क्या आले मुहम्मद के महदी हम में से हैं या हमारे अलावा है? हज़रत ने फ़रमाया: ऐसा नही है, बल्कि ख़ुदावन्दे आलम हम अहले बैत के सबब दीन इस्लाम को इख़्तेताम तक पहुँचायेगा जिस तरह उसने हमारे ही नबी स.ल. के ज़रिये उसको कामयाब बनाया है और हमारे ही ज़रिये लोग फ़ितने से महफ़ूज़ रहेगें।
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हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम अ.स. की विलादत के मौके पर संक्षिप्त परिचय
हौज़ा / हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम का नाम हज़रत पैग़म्बर (स) के नाम पर है तथा आपकी मुख्य उपाधियाँ महदी मोऊद, इमामे अस्र, साहिबज़्ज़मान, बक़ियातुल्लाह व क़ायम है।आप का जन्म सन् 255 हिजरी क़मरी मे शाबान महीने की 15वी तारीख़ को सामर्रा नामक सथान पर हुआ यह शहर वर्तमान समय मे इराक़ देश की राजधानी बग़दाद के पास स्थित है।
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इमाम महदी (अ) के ज़ोहूर की निशानीया
हौज़ा / ज़हूर के कुछ लक्षण विशिष्ट लोगों में विशिष्ट तरीकों से और विशिष्ट संकेतों के साथ प्रकट होते हैं। उदाहरण के लिए, कई हदीसों में यह उल्लेख किया गया है कि इमाम ज़मान (अ) विषम वर्षों और विषम दिनों में प्रकट होंगे। दज्जाल और सुफ़ियान नाम के लोगों का उदय और यमानी और सय्यद ख़ुरासानी जैसे धर्मात्मा लोगों का क़याम विशेष लक्षण माने जाते हैं।