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शरई अहकाम:
क्या बच्चे को गोद लेने वालों के लिए बच्चे को अपने माता-पिता के रूप में पंजीकृत करना जायज़ है?
हौज़ा / गोद लेने वालों के लिए किसी बच्चे को अपने माता-पिता के रूप में पंजीकृत करना जायज़ नही हैं।
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वह सोना जो दूल्हे के घर वाले शादी के वक्त दुल्हन को देते हैं क्या वह दुल्हन का है या दूल्हे का?
हौज़ा / अगर वह सोना है जिस औरत पहनती है तो उसका ताल्लुक औरत से है और अगर पहनने वाला ना हो,उदाहरण के लिए, सिक्के आदि, तो यह देने वाले के इरादे से संबंधित है, जो आमतौर पर जाना जाता है।
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शरई अहकाम:
मैंने एक यतीम बच्ची को गोद लेकर पाला है अब वह जवान हो चुकी है आया उस पर वाजिब है कि मुझे या मेरे बेटों से हिजाब करें?
हौज़ा / यतीम की परवरिश करना बहुत ज़्यादा सवाब हैं मगर याद रहे कि वह बच्ची आपके लिए ना महरम है इस बिना पर इस बच्ची के लिए आपसे और इसी तरह आपके बेटों से भी पर्दा करना वाजिब हैं।
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शरई अहकाम:
उस आदमी का क्या हुक्म हैं कि जो वुज़ू करने के बाद श़क करें कि उससे वुज़ू का कोई हिस्सा छुट गया है?
हौज़ा / अगर इसे यह तो मालूम हो कि कुछ भूल गया है मगर यह न जानता हो कि वह( जुज़) हिस्सा वाजिब था या मुस्तहाब था, तो उसका वज़ू सही शुमार होगा।
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शरई अहकाम:
अगर वुज़ू करने के बाद हाथों पर पानी पहुंचाने में रुकावट डालने वाली कोई चीज़ दिखे जिसके बारे में शक़ हो कि वह वुज़ू के वक्त थी या नहीं तो क्या हुक्म हैं?
हौज़ा / अगर वुज़ू मुकम्मल करने के बाद दिखे और शक हो कि वुज़ू के वक्त हाइल (रूकावट)थी,या नहीं तो वुज़ू को सही करार देंगे।
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शरई अहकाम:
क्या माता-पिता बालिग़ बच्चों पर हिजाब के लिए जबरदस्ती कर सकते हैं?
हौज़ा / इन्हें हक़ है लेकिन मारपीट नहीं सकते।
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शरई अहकाम:
माता-पिता के लिए 23 साला शादीशुदा बेटे के लिए क्या अधिकार हैं?
हौज़ा / इन्हें कोई अख्तियार नहीं है मगर औलाद को उनका अदब एहतेराम करना चाहिए और उन चीजों में उनकी अताआत करनी चाहिए जिनमें वह दया (शफखत)के कारण अनुमति नहीं देते हैं, या किसी चीज से मना करते हैं ,और उसकी मुखालिफ से इन्हें तकलीफ होती हो और इसी तरह अगर वह कुछ ना कहे लेकिन जनता हो कि इसके इस काम से शफकत की बुनियाद पर इन्हें तकलीफ हो रही है तब भी जायज़ नहीं है।
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शरई अहकाम:
ना महरम औरतों को देखने की क्या सीमा हैं?
हौज़ा / मर्द के लिए किसी ना महरम औरत के चेहरे और हाथों के अलावा उसके जिस्म या बालों को देखना जायज़ नहीं है चाहे यह देखना लज्ज़त जींसी(जिस्मी)और खौफ फितना रखता हो या उसके बगैर हो जबकि यौन का इरादा या लज्ज़ते जींसी के साथ तो चेहरा और हाथ देखना भी हराम हैं।
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शरई अहकाम:
अपनी पसंद की लड़की से शादी करने पर इसरार करना अगर माता-पिता की नाराज़गी का सबाब हो तो क्या इन्हें नाराज़ करके उनकी मर्जी के बगैर शादी करना जायज़ हैं?
हौज़ा / इनका नाराज़ होना अगर शफक़त और मोहब्बत की वजह से है तो उनका विरोध करना जायज़ नहीं हैं।
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शरई अहकाम:
क्या माता-पिता बच्चों को गाना सुनने और दाढ़ी मुंडवाने से रोक सकते हैं?
हौज़ा / हां रोक सकते हैं बल्कि अगर नही अनिल मुनकर कि शर्तें मौजूद हो तो रोकना वाजिब है।
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शरई अहकाम:
बाप को सलाम न करने वाले बेटे के लिए क्या हुक्म हैं?और अगर बेटा सलाम करें और बाप जवाब ना दे तो उसका क्या वज़ीफा हैं?
हौज़ा / मां-बाप पर एहसान और उनका एहतेराम वाजिब है यहां तक कि अगर वह जवाब ना भी दे आप फिर भी इन्हें सलाम करें।
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शरई अहकाम:
क्या किसी ना महरम के साथ लिफ्ट का इस्तेमाल किया जा सकता है जबकि उस वक्त कोई तीसरा आदमी मौजूद न हो मगर इंसान को खुद पर इत्मीनान हो कि किसी हरम में मुफ्तीला नही होगा?
हौज़ा / अगर इसे इत्मीनान हो कि किसी हराम में जैसे नज़रे हराम या लम्स वगैरह में मुब्तीला ना हो तो जायज हैं।
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शरई अहकाम:
एतेकाफ़ की हालत में खुशबू का सुंघना कैसा हैं?
हौज़ा / अगर एतेकाफ़ वाजिब ना हो(नज़र,कस्म,अहद की वजह से) तो एहतियात के तौर पर एतिकाफ करने वाले के लिए किसी भी तरह के इत्र को सुगना चाहे इससे लज्ज़त महसूस करें या ना करें जायज़ नहीं है और खुशबू दर घास सुंगना उस सूरत में जबकि इसके सुगघने से लज्जत महसूस करें जायज नहीं हैं,और अगर इसके सुंघने से लज्जत महसूस ना हो तो कोई हर्ज नहीं हैं।
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शरई अहकाम:
अगर कोई आदमी किसी मुश्किल की वजह से रमज़ान उल मुबारक में रोज़े ना रखे और अगले रमज़ान तक जानबूझकर उसकी कज़ा ना करें तो क्या हुक्म हैं?
हौज़ा / अगर कोई आदमी किसी मुश्किल की वजह से रमज़ान उल मुबारक में रोज़े ना रखें, और रमज़ान उल मुबारक के बाद उसकी मुश्किलात दूर हो जाए और वह आने वाले रमज़ान उल मुबारक तक जानबूझकर रोजों की कज़ा ना बजा लाए तो ज़रूरी है कि रोज़ो की कज़ा करें और हर दिन के लिए एक मुद ताम भी फकीर को दे।
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शरई अहकाम:
अगर कोई कई साल बीमार रहने के बाद ठीक हो, तो क्या पिछले सारे रमज़ान के रोज़ों की कज़ा वाजिब हैं?
हौज़ा / अगर इंसान की बीमारी कुछ वर्षों तक रहती है, तू ज़रूरी है कि ठीक होने के बाद आखरी रमज़ान उल मुबारक के छूटे हुए रोज़ो की कज़ा बजा लाए और इससे पिछले वर्षों के रोज़े के बदले एक मुद(750ग्राम) खाना फकीर को दें।
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शरई अहकाम:
माहे रमज़ान उल मुबारक में अगर कोई गुस्ले जनाबत करना भूल जाए तो क्या हुक्म हैं?
हौज़ा / माहे रमज़ान उल मुबारक में अगर कोई गुस्ले जनाबत करना भूल जाए और जनाबत की हालत में एक या कई दिन रोज़े रखता रहे तो माहे रमज़ान के बाद इन रोज़ो की कज़ा करें।
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शरई अहकाम:
अगर किसी आदमी पर कफ़्फ़ारा वाजिब हो और वह कई साल तक अदा न करें तो क्या हुक्म हैं?
हौज़ा / अगर किसी आदमी पर कफ़्फ़ारा वाजिब हो और वह कई साल तक अदा न करें, तो कफ़्फ़ारा में कोई इज़ाफा नहीं होगा,
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रोज़े की हालत में दांत निकलवाना और तर लकड़ी से ब्रश करना कैसा हैं?
हौज़ा / रोज़े की हालत में दांत निकलवाना और हर वह काम करना जिसकी वजह से मुंह से खून निकले और तर लकड़ी से ब्रश करना मकरूह हैं।
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संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद की बैठक में ईरान के दूतावास पर इस्राईल के हमले की हुई निंदा
हौज़ा / संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद की आपातकालीन बैठक में सीरिया में ईरान के दूतावास के काउन्सलेट विभाग पर इस्राईल की आतंकवादी कार्यवाही की देशों ने कड़ी निंदा की हैं।
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शरई अहकाम:
रोज़े की हालत में नाक में दवा डालने का क्या हुक्म हैं?
हौज़ा / नाक में दवा डालना मकरूह हैं,अगर यह न जानता हो कि हल्क तक पहुंचेगी, और अगर यह जानता हो की हालत तक पहुंचेगी तो उसका इस्तेमाल करना जायज़ नहीं हैं।
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शरई अहकाम:
रोज़े की हालत में आंख में दवा डालना और सुरमा लगाना कैसा हैं?
हौज़ा / रोज़े की हालत में आंख में दवा डालना और सुरमा लगाना जबकि उसका मज़ा या बू हल्क तक पहुंचे तो मकरूह हैं।
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आयतुल्लाहिल उज़्मा अलह़ाज ह़ाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफ़ी:
एतेकाफ़ के दौरान कोई मामला करना?
हौज़ा/अगर कोई शख़्स एतेकाफ़ के दौरान कोई मामला करे अगरचे एतेकाफ़ बातिल हो जाता है लेकिन मामला बातिल नहीं होता,
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शरई अहकाम:
जिसके ऊपर ग़ुस्ल मसे मैय्यत वाजिब हो क्या वह बिना गुस्ल किए रोज़ा रख सकता हैं?
हौज़ा / जिस शख्स ने मैय्यत को मस किया हो,यानी अपने बदन का कोई हिस्सा मैय्यत के बदन से छुआ हो)वह ग़ुस्ल मसे मैय्यत के बगैर रोज़ा रख सकता है और अगर रोज़े की हालत में भी मैय्यत को मस करें तो उसका रोज़ा बातिल नहीं होता।
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दिन की हदीस:
शबे क़द्र में इबादत का फल
हौज़ा / हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व. ने एक रिवायत में शबे क़द्र में जाग कर इबादत करने के नतीजे की ओर इशारा किया हैं।
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अगर कोई औरत माहे रमज़ान उल मुबारक में सुबह की आज़ान के नज़दीक हैज़ या नेफास से पाक हो जाए और ग़ुस्ल या तयम्मुम किसी के लिए वक्त बाकी ना हो तो क्या वह रोज़ा रख सकती हैं?
हौज़ा /अगर ग़ुस्ल या तयम्मुम किसी चीज़ का वक्त ना हो तो और रोज़ा रख सकती है और उसका रोज़ा सही हैं।
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दिन की हदीस:
क्या सर को पानी में डुबोने से रोज़ा बातिल हो जाता है?
हौज़ा / सर पानी में डुबोने से रोज़ा बातिल नहीं होता है लेकिन शदीद मकरूह हैं।
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शरई अहकाम:
रोज़े की हालत में सिगरेट का धुआं और तंबाकू की गर्द हल्क तक पहुंचाना कैसा है?
हौज़ा / एहतियाते वाजिब यह हैं कि रोज़ेदार सिगरेट और तंबाकू वगैरा का धुआं भी हालात तक न पहुंचाए
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शरई अहकाम:
क्या गोबार को हल्क तक पहुंचाने से रोज़ा बातिल हो जाता हैं?
हौज़ा / एहतियाते वाजिब की बिना पर (कसीफ)गोबार को हल्क तक पहुंचाना रोज़ा को बातिल कर देता है चाहे गोबार किसी ऐसी चीज़ का हो जिसका खाना हलाल हो जैसे आटा या किसी ऐसी चीज़ का हो जिसका खाना हराम हो जैसे मिट्टी
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शरई अहकाम:
अगर कोई आदमी किसी की बात के बारे में यक़ीन रखता हो कि वह वाकई कौले ख़ुदा या कौले पैगंबर स.ल.व.नहीं है और इसे अल्लाह ताला या रसूल अल्लाह स.ल.व. से मनसुब करें तो क्या उस से उसका रोज़ा बातिल हो जाएगा?
हौज़ा / अगर इस बात का यकीन हो कि कौले खुद और रसूल नहीं है और उनसे मंसूब करें तो उस सूरत में उसका रोज़ा बातिल हो जाएगा।
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शरई अहकाम:
अगर कोई इंसान सेहरी कर रहा हो और इसे मालूम हो जाएगी की आज़ान सुबह हो गई है तो उस सूरत में क्या हुक्म हैं?
हौज़ा/अगर इसे मालूम हो जाएगी कि सुबह हो गई है तो ज़रूरी है कि मुंह के लुक्में (निवाला) को ऊगल दे और अगर जानबूझकर वह लुक्में (निवाला) को निगाल ले तो उसका रोज़ा बातिल है और उस पर कफ़्फ़ारा भी वाजिब है।