शायरे अहलेबैत
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शायर अहले बैत अत्हर मिर्जा तनवीर अली सहरी के निधन पर मौलाना ज़मान बाक़री का शोक संदेश
हौज़ा / ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड लखनऊ के सदस्य व इमाम जमात मस्जिद शिया इमाम बड़ा मरदाना किला रामपुर सैयद मुहम्मद जमान बाकरी ने मिर्जा तनवीर अली बेग सहर रामपुरी के निधन पर गहरा सदमा व्यक्त किया और अपने शोक शब्दों में कहा कि दिवंगत उर्दू शायरी मे विशेष स्थान रखते थे।
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मिस्र के पूर्व मुफ्ती अली जुमआ:
अहलेबैत अ.स. तमाम मुसलमानों पर मोहब्बत और मवद्दत का हक़ रखते हैं।
हौज़ा/ मिस्र के पूर्व मुफ्तीयें आज़म ने अहले बैत अ.स. का एहतराम करने की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए कहा: अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम का दर्जा और मुकाम बाप और बेटे के जैसा होना चाहिए, और हमें चाहिए कि उनसे इस तरह प्यार और मोहब्बत करें जैसे हम अपने बाप से प्यार करते हैं।
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यज़ीद के बारे मे नर्म गोशा रखने वाले अपने ईमान की फिक्र करें, पीर महफ़ूज़ मशहदी
हौज़ा / जमीयत उलेमा-ए-पाकिस्तान के केंद्रीय अध्यक्ष "सवाद आज़म" ने कहा कि जो लोग यज़ीद को अमीरुल मोमेनीन और रहमातुल्ह बुलाते हैं, वे अहल-ए-सुन्नत नहीं हो सकते, यज़ीद अहलेबैत (अ.स.) का हत्यारा है। कोई मुस्लमान इस मलऊन के बारे मे नर्म गोशा नही रख सकता। मौलवी अब्दुल अज़ीज ने यज़ीद के समर्थन में बयान देकर मुसलमानों का दिल दुखाया है।
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बदलाव लाने के संबंध में इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह का रोल सिर्फ़ एक टीचर का नहीं बल्कि आंदोलन में शामिल एक कमांडर की तरह था। आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई
हौज़ा/आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ने कहां बदलाव लाने के संबंध में इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह का रोल सिर्फ़ एक टीचर का नहीं बल्कि आंदोलन में शामिल एक कमांडर की तरह था। बदलाव को पसंद करना और बदलाव लाना इमाम ख़ुमैनी की मुख्य विशेषता थी.
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रजा सिरसिवी खुद ही चेहरा, खुद ही आईना
हौज़ा / स्वर्गीय रज़ा सिरसिवी साहब स्वयं एक उत्तम स्वभाव के व्यक्ति थे, इसलिए उनकी शायरी मे भी महिमा और आकर्षण था। दर्जनों ग़ज़लें और सैकड़ों मनकबत एक ही भूमि में कही जा सकती हैं, लेकिन एक ही स्थिति में, अंतिम सांस तक वजअ व कतअ को बाकी रखना यह केवल एक अच्छे आदमी का ही काम है। रवैया मे कृत्रिम प्रतिभा नहीं बल्कि स्वाभाविक और सहज ईमानदारी थी। आज खुतबा, शोअरा, बानियाने मजालिस वा महाफिलो के दिलो की वसअत को देखने के बजाए वो अपने आत्मसम्मान को देखते थे।
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रजा सिरसिवी एक अनमोल गौहर
हौजा / स्वर्गीय रज़ा सिरसिवी साहब की वह नज़म जो जो उन्होंने माँ के शीर्षक के तहत लिखी थी, आज तक शायरी के इतिहास में उसका उदाहरण नही मिल सका। कई शायरो ने इस विषय पर लिखा है, लेकिन यह रज़ा सिरसिवी की सार्वभौमिकता (आफ़ाक़ियत) तक नहीं पहुंच पाए।
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अल उसवा फाउंडेशन सीतापुर के प्रधान संपादक
शाइरे अहलेबैत (अ.स.) रज़ा सिरसीवी का कलाम उनकी जिंदगी की अलामत बनकर हमैशा बाकी रहेगी, मौलाना हमीदुल हसन ज़ैदी
हौज़ा / मानवीय रिश्तों के मूल्य को ध्यान में रखते हुए स्वर्गीय रजा सिरसीवी द्वारा छोड़ी गई माँ के बारे में अमर कविता उनके दयालु व्यक्ति होने का प्रमाण है। जिसे पढ़ने या सुनने के बाद, समाज का हर वर्ग अपनी माँ को देखता है।