हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, हुसैनी शिया वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष हैदर अब्बास खान की अध्यक्षता में हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी तौहीदुल मुस्लेमीन ट्रस्ट लखनऊ द्वारा संचालित परीक्षा में सुलतानपुर के 114छात्र छात्राओं को फार्म भरवाया गया था जिसमें 89 छात्र छात्राओं ने भाग लिया था जिसमें 12ने जनपद टाप किया।
उनको सम्मानित करने के लिए शनिवार को हुसैनिया नौतामीर अमहट में एक सम्मान समारोह का आयोजन किया गया इस मौके पर मौलाना आसिफ़ नक़वी ने ख़िताब करते हुए कहां,बच्चे के चेतन (Consciousness) का निर्माण वास्तविक शैक्षिक विकास की बुनियाद है।
शिक्षा का उद्देश्य केवल जानकारी प्रदान करना नहीं, बल्कि जागरूकता, संवेदनशीलता और चिंतनशील दृष्टि को विकसित करना है। बच्चे का चेतन तभी सही दिशा में विकसित होता है जब उसे ऐसे अनुभव दिए जाएँ जो जिज्ञासा, रचनात्मकता और करुणा को जन्म दें।
शिक्षकों और अभिभावकों की ज़िम्मेदारी है कि वे ऐसा वातावरण तैयार करें जहाँ प्रश्न पूछने को प्रोत्साहन मिले और ज्ञान नैतिक तथा भावनात्मक विकास से जुड़ा हो। साहित्य, कला और कहानियाँ बच्चे की कल्पनाशक्ति और सहानुभूति को निखारती हैं और उसे विभिन्न दृष्टिकोणों को समझने की क्षमता प्रदान करती हैं।
क़ुरआन करीम ज्ञान के साथ नैतिक ज़िम्मेदारी की ओर इस प्रकार ध्यान दिलाता है
وَلَا تَقْفُ مَا لَيْسَ لَكَ بِهِ عِلْمٌ ۚ إِنَّ السَّمْعَ وَالْبَصَرَ وَالْفُؤَادَ كُلُّ أُولٰئِكَ كَانَ عَنْهُ مَسْئُولًا
और उस चीज़ के पीछे मत पड़ो जिसका तुम्हें ज्ञान नहीं है। निश्चय ही कान, आँख और दिल — इन सबके विषय में पूछताछ होगी।(सूरह अल-इसरा, आयत 36)
यह आयत स्पष्ट करती है कि शिक्षा केवल बौद्धिक प्रशिक्षण नहीं, बल्कि नैतिक चेतना और उत्तरदायित्व की जागृति की प्रक्रिया है।
हमारी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपरा में मजलिस-ए-हुसैन (अ.स.) चेतना के निर्माण का अत्यंत प्रभावी माध्यम है।इमाम हुसैन (अ.स.) की याद इंसान के दिल को शुद्ध करती है, मस्तिष्क को जाग्रत करती है और सत्य, बलिदान तथा न्याय के शाश्वत सिद्धांत सिखाती है।
इसलिए यह आवश्यक है कि हम उन खुत्बाख़्वानों और ज़ाकेरीन के चयन में सावधानी बरतें जो यह संदेश पहुंचाते हैं, क्योंकि वे श्रोताओं की बौद्धिक और आध्यात्मिक चेतना को सीधे प्रभावित करते हैं।
नबी-ए-अकरम स.ल.व. ने फ़रमाया:
خَيْرُكُمْ مَنْ تَعَلَّمَ الْقُرْآنَ وَعَلَّمَهُ
तुम में सबसे उत्तम वह है जो क़ुरआन सीखता है और उसे सिखाता है।(सहीह बुख़ारी, हदीस 5027)
इसलिए जो ज़ाकेरीन और वक्ता धर्म के नाम पर बोलते हैं, उनका कर्तव्य है कि वे सकारात्मक सोच, एकता, ज्ञान और नैतिकता को बढ़ावा दें। हमें ऐसे व्यक्तियों को आमंत्रित करना चाहिए जो श्रोताओं की चेतना पर सकारात्मक प्रभाव डालें, उनके दिलों में आशा, प्रेम और चिंतनशीलता की भावना उत्पन्न करें।
जब शिक्षा और धार्मिक संवाद दोनों मिलकर बुद्धि और विवेक को आलोकित करते हैं, तब एक ऐसी पीढ़ी तैयार होती है जो कर्मशील, नैतिक और सजग होती है और यही पीढ़ी समाज को न्याय, ज्ञान और आध्यात्मिक ऊँचाई की ओर ले जा सकती है।
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