हौज़ा / मुनाज़ेरा तो आयतुल्लाह शरफुद्दीन और अल अज़हर यूनिवर्सिटी के चांसलर के बीच हुआ था , इल्मी अंदाज़ से तहज़ीब और अदब के साथ , मौलाना फ़िरोज़ साहब को ये शोशा छेड़ने की क्या ज़रूरत थी बेकार का फ़ितना…