۱۵ تیر ۱۴۰۳ |۲۸ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 5, 2024

नाज़िल होने का ज़रिया

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  • क़ुरआन पड़ना और सुनना अल्लाह तआला की रहमत के नाज़िल होने का ज़रिया

    क़ुरआन की रौशनी में:

    क़ुरआन पड़ना और सुनना अल्लाह तआला की रहमत के नाज़िल होने का ज़रिया

    हौज़ा/क़ुरआन सुनना वाजिब व ज़रूरी काम है अब या तो ख़ुद आयत की तिलावत कीजिए या फिर किसी और से क़ुरआन की तिलावत सुनिए यह काम अनिवार्य हैं पहली बात तो यह कि क़ुरआन सुनना वही पर ईमान के लिए अनिवार्य है जिन लोगों को हमने किताब दी है वह उसे इस तरह पढ़ते हैं जिस तरह पढ़ने का हक़ है” (सूरए बक़रह, आयत-121) ये लोग जो क़ुरआन की तिलावत करते हैं, तिलावत के हक़ का (पालन करते हुए) ये लोग इस पर ईमान रखते हैं, तो क़ुरआन की तिलावत उस पर ईमान के लिए अनिवार्य हैं।

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