۲۳ شهریور ۱۴۰۳ |۹ ربیع‌الاول ۱۴۴۶ | Sep 13, 2024

नाजाएज़ औलादों के बहकावे

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  • अहले सुन्नत की बड़ी मोतबर हदीस की किताबों से/मोहर्रम में ग़म मनाना सुन्नत या बिदअत?

    अहले सुन्नत की बड़ी मोतबर हदीस की किताबों से/मोहर्रम में ग़म मनाना सुन्नत या बिदअत?

    हौजा़ / मोहर्रम में कुछ लोग पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद स. के लाल इमाम हुसैन अ. की शहादत का ग़म मनाते हैं। करबला के शहीदों की याद में मजलिस बरपा करते हैं, रोते हैं पीटते हैं खाना खिलाते हैं और इमाम हुसैन (अ) और करबला वालों की याद को ताज़ा करते हैं और कोई भी ऐसा काम करने से परहेज़ करते हैं जिससे किसी भी तरह की ख़ुशी ज़ाहिर हो और कुछ लोग कहते हैं कि हमें ग़म नही मनाना चाहिए, न रोना पीटना चाहिए, न इमाम हुसैन (अ) की मजलिस करना चाहिए क्योंकि यह काम बिदअत है और इस्लाम में बिदअत जायज़ नहीं है।

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