۴ آذر ۱۴۰۳
|۲۲ جمادیالاول ۱۴۴۶
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Nov 24, 2024
फ़िक्र व ज़ेहन की मुकम्मल
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हदीस की रौशनी में:
फ़िक्र व ज़ेहन की मुकम्मल तवज्जो से दुआ क़ुबूल होती हैं।
हौज़ा/दुआ के क़ुबूल होने की एक शर्त यह है कि उसे पूरे ज़ेहन व दिल की पूरी तवज्जो से माँगें, कभी कभी सिर्फ़ ज़बान से कहा जाता है ए अल्लाह मुझे माफ़ कर दे, ऐ अल्लाह मेरी रोज़ी बढ़ा दे, ऐ अल्लाह मेरा क़र्ज़ अदा कर दे” दस साल तक इंसान इस तरह से दुआएँ करता रहे, बिलकुल क़ुबूल नहीं होगी जब तक वह फ़िक्र व ज़ेहन की मुकम्मल तवज्जो से दुआ न करें।