मुनाजाते अमीरुल मोमेनीन
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हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनेई:
हज़रत इमाम अली अ.स.की शहादत सिर्फ़ गुज़रे ज़माने का नुक़सान नहीं
हौज़ा/इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनेई ने कहां,हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत, वह ग़म नहीं है जो किसी ज़माने में पड़ा हो और फिर आज हम उसकी याद में आंसू बहांए! नहीं, यह ग़म, हर ज़माने का ग़म है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम को शहीद करने का दुख, यह ख़ुदा की क़सम हिदायत की बुनियाद तबाह हो गयी” जो कहा गया है वह सिर्फ़ उस ज़माने का नुक़सान नहीं हुआ बल्कि इन्सानियत की पूरी तारीख़ का नुक़सान हुआ हैं।
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धर्म को सीखने और उसका पालन करने में ही नेजात है: मौलाना सैयद अली हाशिम आबिदी
हौज़ा/मौलाना सैयद अली हाशिम आबिदी ने कहा कि वर्तमान समय में जिसमें हम कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, इस्लामी एकता, विशेष रूप से आस्था की एकता बहुत आवश्यक है।
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अपने अविष्कारों को नहीं बल्कि मासूमीन द्वारा सिखाई गई दुआओं को पढ़ेंः मौलाना सैयद सफी हैदर जैदी
हौज़ा / तंज़ीमुल मकातिब के सचिव ने संबोधित करते हुए कहा कि हमारे वरिष्ठ विद्वानों द्वारा हमें जो दुआए सिखाई जाती हैं, वो दुआए मासूमीन (अ.स.) की दुआए है हमें उन्ही को पढ़ना चाहिए। हमें इसे कम करने या बढ़ाने का कोई अधिकार नहीं है। आविष्कार का हक़ नहीं है।
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इस्लामी गणराज्य ईरान के राजदूत "डॉ अली चगिनी" और डॉ सैयद नासिर हुसैन "राज्य सभा सांसद" के हाथो सेः
किताब "हमारे अली" और "दो क़ल्मी नुस्ख़ो " का रस्मे इजरा
हौज़ा / "हमारे अली" एक ऐसे व्यक्ति द्वारा लिखी गई किताब है जो इस्लाम धर्म का पालन नहीं करता था, लेकिन जब वह किताब उठाता है और उसे देखता है, तो उसे उसमें विश्वासों का एक समुद्र दिखाई देता है, जो दर्शाता है कि लेखक के हृदय में मौला ए कायनात अली (अ.स.) के लिए कैसी कैसी भावनाएँ थीं।