मौलाना मुहम्मद ज़की हसन नूरी
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मुंबई में हजरत ग़ुफ़रानमाब की याद में मजलिस;
भारत के पहले मुजतहिद हज़रत ग़ुफ़रानमाब ने देश में शिया धर्म की नींव को मजबूत किया, मौलाना सैयद मुहम्मद ज़की हसन नूरी
हौज़ा / ख़तीब ने बताया कि कैसे भारत के पहले मुजतहिद हज़रत गुफ़रानमाब ने इस देश में शिया धर्म की नींव को मजबूत किया और इस इस्लामी संप्रदाय को बाकी संप्रदायों के बीच अपनी पहचान दिलाई।
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हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद मुहम्मद सईदुल हकीम के निधन की खबर सुनकर आलमे इस्लाम सोगवार है।
हौज़ा/मरहूम आयतुल्लाह हकीम ने ,अलहिक्मा, कार्यालय द्वारा आपने सारी दुनिया के शिया नौजवानों की तरबीयत में अनोखा उदाहरण पेश किया हैं।, जिसका असर खत्म होने वाला नहीं है।
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इन्हेदामे जन्नतुल बक़ी से तमाम उम्माते मुसलमा के दिल दागदार हैं।मौलाना सैय्यद मुहम्मद ज़की हसन
हौज़ा/ मुंबई,संपादक जाफरी ऑब्जर्वर, का कहना है कि अब सऊदी अरब की अत्याचारी सरकार से मांग करने का समय आ गया है,कि वह इस शर्मनाक और गैर इस्लामिक अपराध के लिए पूरे उम्मा मुस्लमा से माफी मांगे और जन्नतुल बक़ी में मुकद्दस दरगाहो की निर्माण की अनुमति दें।
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:दिन की हदीस
क़ुरआने करीम कि करआत का आज्र और सवाब
हौज़ा/ हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने एक रिवायत में करआते कुराने करीम के आज्र और सवाब कि ओर इशारा किया है
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इन्ना लिल्लाहे वा इन्ना इलैहे राजेऊन
मशहूर शायरेअहले बैत(अ.स.) रज़ा सिरसीवी के निधन कि खबर सुनकर बहुत अफसोस हुआ, हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सैय्यद जक़ी हसन
हौज़ा/बहुत ही अफ़सोस के साथ यह खबर हासिल हुई है,मशहूर शायरे अहले बैत(अ.स.) जनाब नौशाह रज़ा मशहूर रज़ा सिरसवी का निधन हो गया है। उनकी खिदमत हमेशा याद रहेगी।
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जाफ़री ऑब्जर्वर मुंबई के संपादकः
हज़रत अबू तालिब (अ.स) को मोहसिन इस्लाम और मोहसिन पैंगम्बर (स.ल.व.व) के रूप में याद किया जायें। मौलाना सैय्यद मुहम्मद ज़की हसन
हौज़ा / जाफ़री ऑब्जर्वर मुंबई के संपादक ने कहा कि दुश्मनों ने अपने पूर्वजो के इस्लाम स्वीकार न करने की तारीखी हकीकत को छुपाने के लिए कुल्ले ईमान हज़रत अली (अ.स.) के पिता के इमान का इनकार किया.
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:मासिक पत्रिका जाफरी ऑब्जर्वर मुंबई के संपादक
शहीदो का खून व्यर्थ नही जाता, बल्कि क़ौम का ज़ामिन "गारंटर" हैः मौलाना मुहम्मद ज़की हसन नूरी
हौज़ा / मासिक पत्रिका जाफरी ऑब्जर्वर मुंबई के संपादक ने अपने संबोधन में कहा कि औपनिवेशिक और अहंकारी शक्तियां हमेशा उलेमा-ए-हक से घृणा करती रही हैं और इस्लाम और शिया धर्म को मिटाने के लिए अहले बैत (अ.स.) के प्रचारकों और रक्षकों के सर काटती रही हैं। लेकिन उन्हे इस बात की खबर नही है कि शहीदों का खून व्यर्थ नहीं जाता बल्कि राष्ट्रों को पुनर्जीवित करता है और उनके अस्तित्व का गारंटर बनता है।