रज़ा सिरसीवी
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दुखद खबर
मौलाना सैयद मनव्वर रज़ा सिरसिवी का निधन
हौज़ा/ख़तीब अहले-बैत, शिया संप्रदाय के उपदेशक, जनाब हाजी मौलाना सैयद मुनवर रज़ा साहब किबला मुमताज़ुल फ़ाज़िल, आज 20 जुलाई, शनिवार, इस दारेफ़ानी से दारे जावदानी तक अचानक गुज़र गया।
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सिरसी सादात की साहित्यिक संस्था बज़्म-ए-गुलहाई सुखन की मासिक बैठक
हौजा / ख़तीब-ए-बज़्म सैयद क़नबर अब्बास नकवी सिरसवी ने कहा कि शायरों को अपने भाग्य पर गर्व करने का अधिकार है, लेकिन याद रखें कि अमीरुल द्वारा पसंद नहीं किए गए व्यक्तियों और पात्रों को पेश करने के लिए मौलाई मुत्तकियान (एएस) की खुशी है गुण के रूप में मुनीन (अ.स.) ने अपने भाषण को जारी रखते हुए शायरों से विनम्रतापूर्वक अपील की कि वे ऐसी कविताएं पढ़ें जिन्हें वे इमाम (अ.स.) की उपस्थिति में पढ़ सकें।
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रजा सिरसिवी खुद ही चेहरा, खुद ही आईना
हौज़ा / स्वर्गीय रज़ा सिरसिवी साहब स्वयं एक उत्तम स्वभाव के व्यक्ति थे, इसलिए उनकी शायरी मे भी महिमा और आकर्षण था। दर्जनों ग़ज़लें और सैकड़ों मनकबत एक ही भूमि में कही जा सकती हैं, लेकिन एक ही स्थिति में, अंतिम सांस तक वजअ व कतअ को बाकी रखना यह केवल एक अच्छे आदमी का ही काम है। रवैया मे कृत्रिम प्रतिभा नहीं बल्कि स्वाभाविक और सहज ईमानदारी थी। आज खुतबा, शोअरा, बानियाने मजालिस वा महाफिलो के दिलो की वसअत को देखने के बजाए वो अपने आत्मसम्मान को देखते थे।
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रजा सिरसिवी एक अनमोल गौहर
हौजा / स्वर्गीय रज़ा सिरसिवी साहब की वह नज़म जो जो उन्होंने माँ के शीर्षक के तहत लिखी थी, आज तक शायरी के इतिहास में उसका उदाहरण नही मिल सका। कई शायरो ने इस विषय पर लिखा है, लेकिन यह रज़ा सिरसिवी की सार्वभौमिकता (आफ़ाक़ियत) तक नहीं पहुंच पाए।
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बुज़ुर्ग शायर रज़ा सिरसवी के स्वर्गवास ने धार्मिक शेरो शायरी की दुनिया में बड़ा ख़ला पैदा कर दिया, मौलाना अहमद रज़ा हुसैनी
हौज़ा / बुज़ुर्ग शायर रज़ा सिरसवी के स्वर्गवास ने धार्मिक शेरो शायरी की दुनिया में बड़ा ख़ला पैदा कर दिया। आपकी शायरी मे जो दीनदारी और इख़लास था उसने विद्वानों, छात्रों और मोमेनीन को बहुत प्रभावित किया है।
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अनोखे लहजे के मद्दाहे अहले बैत(अ.स.) रज़ा सिरसीवी सुपुर्दए खाक हुए
हौज़ा/ दीने इस्लाम और मकसदे कर्बला को पूरी जिंदगी शेरी ज़बान में घर-घर पहुंचाने वाले वर्ल्ड शोहरत याफ्ता शायर अलहाज, क़ाज़ी, सैय्यद, रज़ा, रज़ा सिरसीवी को उनके पैतृक कब्रिस्तान में सुपुर्दए खाक किया गया
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अल उसवा फाउंडेशन सीतापुर के प्रधान संपादक
शाइरे अहलेबैत (अ.स.) रज़ा सिरसीवी का कलाम उनकी जिंदगी की अलामत बनकर हमैशा बाकी रहेगी, मौलाना हमीदुल हसन ज़ैदी
हौज़ा / मानवीय रिश्तों के मूल्य को ध्यान में रखते हुए स्वर्गीय रजा सिरसीवी द्वारा छोड़ी गई माँ के बारे में अमर कविता उनके दयालु व्यक्ति होने का प्रमाण है। जिसे पढ़ने या सुनने के बाद, समाज का हर वर्ग अपनी माँ को देखता है।