हौज़ा/इमाम खुमैनी के विचार में, धार्मिक विद्वान की शुद्धि या विचलन न केवल उसके व्यक्तिगत मार्ग को निर्धारित करता है, बल्कि यह पूरे समाज की नियति को भी बेहतर या बर्बाद कर सकता है।