۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024

हदीस की रौशनी में

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  • फ़िक्र व ज़ेहन की मुकम्मल तवज्जो से दुआ क़ुबूल होती हैं।

    हदीस की रौशनी में:

    फ़िक्र व ज़ेहन की मुकम्मल तवज्जो से दुआ क़ुबूल होती हैं।

    हौज़ा/दुआ के क़ुबूल होने की एक शर्त यह है कि उसे पूरे ज़ेहन व दिल की पूरी तवज्जो से माँगें, कभी कभी सिर्फ़ ज़बान से कहा जाता है ए अल्लाह मुझे माफ़ कर दे, ऐ अल्लाह मेरी रोज़ी बढ़ा दे, ऐ अल्लाह मेरा क़र्ज़ अदा कर दे” दस साल तक इंसान इस तरह से दुआएँ करता रहे, बिलकुल क़ुबूल नहीं होगी जब तक वह फ़िक्र व ज़ेहन की मुकम्मल तवज्जो से दुआ न करें।

  • लोगों को ओहदा देते वक़्त उनके तक़वे को भी मद्देज़र रखें

    लोगों को ओहदा देते वक़्त उनके तक़वे को भी मद्देज़र रखें

    हौज़ा/आप किसी को किसी ओहदे पर नियुक्त करना चाहते हैं, एक काम का किसी को ज़िम्मेदार बनाना चाहते हैं, तो देखें कि उसमें उसे अंजाम देने की वह ख़ूबी है या नहीं? यानी लोगों से संबंधित मामलों में उस शख़्स के भीतर तक़वा और काम के लिए समर्पण पाया जाता है या नहीं। इसको प्रशासनिक सलाहियतों का हिस्सा क़रार दें।

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