हौज़ा / इस तरह का मेकअप करना जायज़ है और इसे खामियों को छुपाने के तौर पर नहीं गिना जाता।
हौज़ा / बेटी एक नेमत है, एक रहमत है, जब हज़रत फ़ातिमा आती थीं तो अल्लाह का प्यारा भी उनके स्वागत के लिए खड़ा हो जाता था, "बेटी मेरी बेटी आई है, जो हर बगीचे में नहीं खिलती।" वह उसके आँसू पोंछती…