शुक्रवार 28 फ़रवरी 2025 - 07:42
पवित्र क़ुरआन मनुष्य की शिक्षा और समाज के निर्माण के लिए नाज़िल हुआ: आयतुल्लाह अलमुल हुदा

हौज़ा / अल-मुस्तफ़ा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी क़रआन और हदीस महोत्सव के समापन समारोह को संबोधित करते हुए खुरासान में वली फ़क़ीह के प्रतिनिधि आयतुल्लाह सय्यद अहमद अलममुल हुदा ने कहा कि कुरआन न केवल मनुष्यों को शिक्षित करता है, बल्कि समाज को आकार देने और ईश्वरीय संप्रभुता स्थापित करने में भी एक मौलिक भूमिका निभाता है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, खुरासान में वली फ़क़ीह के प्रतिनिधि आयतुल्लाह सय्यद अहमद अलमुल-हुदा ने अल-मुस्तफ़ा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी में कुरान और हदीस महोत्सव के समापन समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि कुरआन हर समय और हर समाज के लिए एक चमत्कार है। यह न केवल व्यक्ति को पूर्णता की ओर ले जाता है बल्कि एक नेक इस्लामी समाज की नींव भी प्रदान करता है।

उन्होंने सूर ए बक़रा की शुरूआती आयत का उल्लेख करते हुए कहा कि कुरआन नेक लोगों के लिए अद्वितीय मार्गदर्शन है, जो न केवल उनके विश्वास और चरित्र को परिष्कृत करता है, बल्कि उन्हें व्यावहारिक जीवन में मार्गदर्शन भी प्रदान करता है।

उन्होंने कहा कि इतिहास इस बात का गवाह है कि कुरआन ने अज्ञानता के अंधेरे में डूबे समाज को सलमान फारसी, अबू ज़र ग़फ़्फ़ारी और बिलाल हबशी जैसे व्यक्ति दिए, जो विश्वास, त्याग और दृढ़ता के उच्च उदाहरण बन गए। कुरआन ने व्यक्तिगत प्रशिक्षण के माध्यम से ऐसे व्यक्तियों का निर्माण किया जिन्होंने इस्लामी समाज की नींव रखी।

आयतुल्लाह अलमुल हुदा ने कुरआन की सामूहिक भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह पुस्तक केवल पूजा-पाठ और व्यक्तिगत सुधार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक सम्पूर्ण जीवन संहिता है जो सरकारों और समाजों का मार्गदर्शन करती है। उन्होंने कहा कि जब इस्लामी सरकारें कुरआन की शिक्षाओं का पालन करती हैं, तो सामाजिक न्याय, आर्थिक स्थिरता और नैतिक मूल्यों को बढ़ावा मिलता है। कुरान का संदेश न केवल एक ऐतिहासिक दस्तावेज है, बल्कि यह आज हमारे सामाजिक और सरकारी ढांचे के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत भी प्रदान करता है।

आयतुल्लाह अलमुल हुदा ने अपने संबोधन में कहा कि कुरान न केवल व्यक्तियों और समाज को शिक्षित करने का एक साधन है, बल्कि ईश्वरीय संप्रभुता के कार्यान्वयन के लिए एक पूर्ण घोषणापत्र भी है। ईश्वरीय संप्रभुता की स्थापना के लिए यह आवश्यक है कि इस्लामी शासक अपनी नीतियों को कुरान की शिक्षाओं पर आधारित करें। 

अपने संबोधन के अंत में इस बात पर जोर दिया कि मुस्लिम समुदाय को कुरआन की शिक्षाओं को अपने व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि कुरआन को सही अर्थों में लागू किया जाए तो इस्लामी समाज न्याय, निष्पक्षता और प्रगति का सच्चा मॉडल बन सकता है।

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