हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, मदरस ए इल्मिया फातमिया महलात के सांस्कृतिक विभाग द्वारा आयोजित इस बैठक में हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन ग़ुदरज़ी ने इब्रत (सीख) लेने को अपना विषय बनाया और ख़ुत्बा नंबर 221 की तफ्सीर (व्याख्या) पेश की। उन्होंने बताया कि जाहिलियत और डर से निजात पाने के लिए इतिहास और मौत पर गहरी नज़र डालना बेहद ज़रूरी है।
उन्होंने पिछले सत्रों की चर्चा को आगे बढ़ाते हुए बताया कि इमाम अली (अ.स) के एक साथी मदायन के खंडहरों से गुज़रे और वहां की वीरानी पर कुछ शेर पढ़े इसके बाद इमाम अ.स. ने क़ुरआन की आयतों के ज़रिए पिछली क़ौमों के अंजाम से सीख लेने और उनके पीछे छोड़ी गई नेमतों पर ध्यान देने की ताक़ीद (ज़ोर) किया।
मरकज़ी प्रांत के महिला दीनी मदरसों के प्रमुख ने जैसे वाक्य की ओर इशारा करते हुए इसे अज्ञानता और नासमझी के समुंदर में डूबने से ताबीर (व्याख्या) किया और कहा, जब इंसान गहराई से तजुर्बा करे और सतही नज़रिया न रखे, तभी वह सच्चे मायनों में इब्रत (सीख) ले सकता है।
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