हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , ईरान के हौज़ा-ए-इल्मिया के प्रशासन मरकज़े मुदीरियत हौज़ा ए इल्मिया ईरान ने एक बयान जारी करते हुए ईरान की जनता से अपील की है कि वे “यौमुल्लाह 13 आबान” के मौके पर उत्साह और इन्क़ेलाबी जोश के साथ रैलियों और जनसभाओं में भाग लें, ताकि एक बार फिर “अमेरिका मुर्दाबाद” और “इस्राइल मुर्दाबाद” की गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दे।
यह दिन ईरान के इस्लामी क्रांति के इतिहास का एक यादगार दिन है जो तीन बड़े घटनाओं की याद दिलाता है,सन् 1343 हिजरी शम्सी (1964) में इमाम ख़ुमैनी (रह.) की जला-वतन की घटना,सन् 1357 (1978) में छात्रों की शहादत,और सन् 1358 (1979) में ईरानी छात्रों द्वारा अमेरिकी दूतावास (जिसे “जासूसी का अड्डा” कहा गया) पर कब्ज़ा जो विश्व-स्तरीय अहंकार के खिलाफ़ ईरानी जनता के स्वतंत्रता और प्रतिरोध का प्रतीक बन गया।
बयान में कहा गया है कि आज जब पूरी उम्मत-ए-मुस्लिमाह ग़ज़्ज़ा में ज़ायोनी शासन के अत्याचार और अमेरिका की खुली मदद को देख रही है, तो दुनिया के जागरूक लोगों के लिए यह साफ हो गया है कि ज़ायोनिज़्म और अंतरराष्ट्रीय साम्राज्यवाद इंसानियत के सबसे बड़ी दुश्मन हैं।हज़ारों मासूम फ़िलिस्तीनी बच्चों और महिलाओं का बहाया गया ख़ून उनकी शैतानी फितरत का अटल सबूत है।
बयान में आगे कहा गया है कि हाल ही में ईरान पर थोपे गए 12 दिन की जंग ने एक बार फिर यह दिखा दिया कि दुश्मन ईरानी राष्ट्र के ईमान और हिम्मत को आज़माना चाहता है, मगर हमेशा की तरह वह ईरान की जनता के सब्र, दूरदर्शिता और रक्षात्मक ताक़त के सामने नाकाम और शर्मिंदा हुआ।
इस प्रशासन ने इमाम ख़ुमैनी (रह.), शोहदाए इनक़लाब-ए-इस्लामी और रहबर-ए-मुअज़्ज़म आयतुल्लाह सैय्यद अली ख़ामेनेई की राहनुमाई के सिलसिले को जारी रखते हुए निम्न बातों पर ज़ोर दिया है:
अमेरिका और ग़ासिब ज़ायोनी सरकार के अत्याचारों और निर्दोष लोगों के ख़ून-ख़राबे की सख़्त निंदा की जाती है।फ़िलिस्तीनी जनता, इस्लामी मुक़ावमत मोर्चे और तमाम आज़ादी-प्रेमी क़ौमों के समर्थन की पुनः पुष्टि की जाती है।
ईरानी जनता से दृढ़ संकल्प और जोश के साथ रैलियों में भाग लेने की अपील की जाती है, ताकि “अमेरिका मुर्दाबाद” और “इस्राइल मुर्दाबाद” की आवाज़ें एक बार फिर वैश्विक अहंकार के महलों को हिला दें।
इस्लामी क्रांति के 45 साल का अनुभव यह साबित करता है कि सम्मान और सफलता का एकमात्र रास्ता ईमान, प्रतिरोध और विलायत की पैरवी है।
आपकी टिप्पणी