हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैय्यद अलीरज़ा तराशीयून ने अपने एक भाषण में बच्चों की इच्छाशक्ति का प्रशिक्षण" के विषय पर चर्चा की, जिसे आप विद्वानों की सेवा में पेश किया जा रहा है।
अक्सर ऐसा होता है कि माता-पिता नीयत तो अच्छी रखते हैं, लेकिन अनजाने में अपने बच्चे की इच्छाशक्ति को कमजोर कर देते हैं।
उदाहरण के लिए एक तीन या चार साल का बच्चा कार की पिछली सीट पर बैठा है और उसे प्यास लगती है।
पिता कहते हैं,थोड़ी देर सब्र करो, पंद्रह मिनट में घर पहुंच जाएंगे, वहां पानी पी लेना।
लेकिन मां बच्चे की बेचैनी देखकर कहती है,क्यों सब्र करो? आओ, सामने से पानी की बोतल ले लेते हैं। मां समझती है कि वह प्यार कर रही है और उसका तरीका सही है, लेकिन हकीकत यह है कि यह व्यवहार बच्चे की इच्छाशक्ति को कमजोर करता है।
सामान्य हालात में तीन साल का बच्चा दस या पंद्रह मिनट पानी के बिना रह सकता है और उसे कोई नुकसान नहीं होता।
अगर माता पिता हमेशा इसी तरह "हर ज़रूरत तुरंत पूरी" करने का रवैया अपनाएं, तो बच्चे की इच्छाशक्ति की नींव कमजोर हो जाती है।
यानी वह इंतज़ार करना नहीं सीखता और न ही अपनी इच्छाओं को टालने या उन्हें नियंत्रित करने की क्षमता विकसित कर पाता है।
यह आदत बड़े होने पर भी असर डालती है बच्चा जो बचपन में कभी सब्र करना न सीखे और जिसकी हर इच्छा तुरंत पूरी की गई हो, वह जवानी में प्रलोभनों, वहमों और भावनाओं के सामने कमजोर हो जाता है। उसके निर्णय लेने और खुद को संभालने की क्षमता कम हो जाती है।
आज की जीवनशैली भी इसी तरह के व्यवहार को बढ़ावा देकर बच्चों की इच्छाशक्ति को कमजोर करती है।
हम अनजाने में ऐसे माहौल की नींव रखते हैं जो बच्चों को कम सहनशील, बेसब्र और अपनी इच्छाओं पर काबू पाने में कमजोर बना देता है।
दूसरे शब्दों में, बच्चों से ज़रूरत से ज़्यादा प्यार और उनकी हर इच्छा तुरंत पूरी करने का तरीका, देखने में तो अच्छा लगता है, लेकिन हकीकत में उनकी क्षमताओं और निर्णय शक्ति को नुकसान पहुंचाता है।
आपकी टिप्पणी