मंगलवार 10 जून 2025 - 13:34
माँ बाप की ज़िंदगी बच्चों के लिए एक फिल्म की तरह होती है।

हौज़ा / घर में माता पिता का हर व्यवहार बच्चों के सामने एक जीती जागती फिल्म की तरह होती है बच्चे नसीहतों से नहीं बल्कि देखकर सीखते हैं। चाहे वह सलाम करने का तरीका हो, नमाज़ पढ़ने का ढंग हो या खाने-पीने का सलीका जो कुछ वे देखते हैं, वही चीज़ उनके दिमाग पर सबसे गहरा असर छोड़ती है, जो किसी भी ज़ुबानी नसीहत से ज़्यादा टिकाऊ होता है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार,हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मानदगारी ने अपने एक महत्वपूर्ण भाषण में घर की तालीम का तस्वीरी अंदाज़ पर रौशनी डाली। उन्होंने कहा कि बच्चों की परवरिश में अमली मिसाल सबसे ज़्यादा असरदार भूमिका अदा करती है यानी बच्चे वही कुछ सीखते हैं, जो वे अपने माँ-बाप के अमल में देखते हैं। 

घर: बच्चे की पहली तस्वीरी दरसगाह:उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि घर बच्चे की पहली तस्वीरी दरसगाह है। जब बाप इत्र लगाता है, तो बच्चा भी उसी अमल को दोहराता है। बच्चे फितरती तौर पर घर के माहौल और माँ-बाप के तौर-तरीकों की नकल करते हैं अगर बाप ट्रक ड्राइवर है, तो बच्चा भी ट्रक और औज़ारों वाले खिलौनों की तरफ माइल होता है। 

हुज्जतुल इस्लाम ने एक दिलचस्प वाक़िया बयान किया,मैं एक जानने वाले के घर गया, जिनके वालिद ट्रक चलाते थे। उनका बच्चा एक बड़ा खिलौना ट्रक लेकर आया और बच्चों के खेल वाला पाना (रेंच) लेकर उसकी मरम्मत कर रहा था। जब मैंने पूछा,यह क्या कर रहे हो?' तो मासूमियत से बोला,बाबा को देखा था, वह नीचे लेटकर गाड़ी ठीक करते हैं, मैं भी वैसा ही कर रहा हूँ।

माँ की तरबियती अहमियत;उन्होंने माँ की तालीमी अहमियत को भी उजागर किया: अगर माँ चादर ओढ़कर आईने में खुद को दुरुस्त करती है, तो बची भी यही सीखेगी। लेकिन अगर माँ मेकअप में मसरूफ हो, तो फिर बची से यह उम्मीद नहीं रखी जा सकती कि वह चादर ओढ़ेगी, क्योंकि उसने कुछ और सीखा है।

अमल से सीख: नमाज़ की मिसालउन्होंने एक मिसाल दी,एक शख्स शिकायत करने आया कि उसका बच्चा नमाज़ तवज्जो से नहीं पढ़ता। मैंने पूछा: 'आप खुद नमाज़ कैसे पढ़ते हैं?' उसने जवाब दिया: 'हम भी सही तरीके से नहीं पढ़ते।' मैंने कहा,मसला यहीं है।

उन्होंने एक और मिसाल देते हुए कहा,जैसे अगर कोई दोस्त मज़े से खा रहा हो, तो दूसरे को भी भूख लग जाती है, वैसे ही अगर माँ-बाप शौक़ से इबादत करें, तो बच्चों को भी जज़्बा पैदा होता है।

उन्होंने आयतुल्लाह बहजत (र.ह.) की मिसाल दी जो रमज़ान में इश्क़-ओ-मुहब्बत से दुआ करते थे, और उनकी औलाद सिर्फ़ देखकर सीखती थी। 

परवरिश का सुनहरा उसूल:अमल से सीख,हुज्जतुल इस्लाम ने माता-पिता को मशविरा दिया कि,रोज़ाना कुछ वक्त इबादत, तिलावत और मुनाजात के लिए मुख़्तस्स करें, ताकि बच्चे दिल से दीन की तरफ माइल हों। अगर वालिद घर में आकर सबसे मुहब्बत से सलाम करे, बीवी की मेहनत का शुक्रिया अदा करे, तो बच्चे भी यह अख़लाक सीखेंगे। लेकिन अगर वालिद घर आकर बिना सलाम के सिर्फ़ आर्डर दे, तो बच्चा भी यही रवैया अपनाएगा। 

उन्होंने कहा, अगर घर में शुक्रगुज़ारी सिखाई जाए, तो बच्चा भी हर किसी का शुक्रिया अदा करेगा। लेकिन अगर सिर्फ़ माँगने का मिज़ाज सिखाया जाए, तो बच्चा तलबगार बन जाएगा।

माता-पिता का करदार, गुफ़्तार (बोलचाल) और अमल ही बच्चे की शख्सियत-साज़ी में मर्कज़ी हैसियत रखते हैं। बच्चों की परवरिश का सबसे असरदार तरीका यह है कि हम खुद अमल के ज़रिए उन्हें नेकी, मुहब्बत, शुक्रगुज़ारी और इबादत सिखाएँ। क्योंकि बच्चे हर वक्त हमें एक अदाकार की तरह देख रहे होते हैं, और हम जो कुछ करते हैं, वही उनके दिमाग़ में नक़्श हो जाता है।

टैग्स

आपकी टिप्पणी

You are replying to: .
captcha