हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में बारह दिवसीय महान पुस्तक मेला अपने पूरे रौनक के साथ शुरू हो चुका है, जहां विभिन्न भाषाओं के सैकड़ों प्रतिष्ठित प्रकाशक हजारों चुनिंदा पुस्तकों के सुंदर संग्रह के साथ भाग ले रहे हैं। ज्ञान और साहित्य के इस महान समागम ने शहर के साहित्यिक माहौल को एक नई ताजगी और बौद्धिक ऊर्जा प्रदान की है।
इस अंतरराष्ट्रीय स्वरूप के मेले में राष्ट्रीय परिषद उर्दू भाषा के प्रचार के लिए एक प्रमुख और सक्रिय उर्दू प्रकाशक के रूप में शामिल है, जिसके स्टाल पर उर्दू भाषा और साहित्य, इतिहास, शोध, धर्म, समाजशास्त्र और समकालीन विषयों से संबंधित विविध और मूल्यवान पुस्तकें शौकीनों की विशेष ध्यान का केंद्र बनी हुई हैं। किताबों से प्यार रखने वाले पाठकों की भीड़ लगातार इस स्टाल की ओर रुख कर रही है, जो उर्दू साहित्य से जुड़ी जन रुचि का जीवंत प्रमाण है।

ध्यान देने योग्य बात यह है कि पुस्तकें वास्तव में 'सफर में' दिखाई दे रही हैं। पाठकों का एक नया, गंभीर और जागरूक वर्ग उभरती हुई ताकत के रूप में सामने आया है, जो पुस्तकों को हाथों-हाथ ले रहा है।
यह दृश्य इस बात की व्यावहारिक खंडन है कि पढ़ने का शौक कम हो चुका है या पाठक दुर्लभ हो गए हैं। वास्तविकता यह है कि गुणवत्तापूर्ण और सार्थक पुस्तकें आज भी उतनी ही ध्यान से पढ़ी जाती हैं जितनी अतीत में।
हालांकि, बदलते युग की आवश्यकताओं के अनुसार पुस्तक को पाठकों तक पहुंचाने के लिए आधुनिक और समकालीन तरीके अपनाना अब अनिवार्य हो गया है। इस संबंध में राष्ट्रीय उर्दू परिषद के निदेशक डॉक्टर शम्स इकबाल विशेष बधाई के पात्र हैं, जिनकी प्रभावी रणनीति और व्यावहारिक उपायों के कारण पुस्तक पढ़ने की सामान्य प्रवृत्ति को बढ़ावा मिल रहा है। नई पीढ़ी के साहित्यिक और सांस्कृतिक जागरूकता और ज्ञानप्रियता के संदर्भ में उनका सकारात्मक दृष्टिकोण धरातल पर वास्तविकता का रूप लेता दिखाई दे रहा है।

गांधी मैदान का यह पुस्तक मेला इस बात का स्पष्ट संदेश दे रहा है कि पुस्तक आज भी जीवित है, सक्रिय है और निरंतर सफर में है।
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