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हज़रत फ़ातिमा, इमाम महीद (अ) की नज़र मे उस्वा हस्ना
हौज़ा / अय्याम ए फ़ातिमिया के मौक़े पर हमारा मक़सद यह है कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सलामुल्लाह अलैहा) की मुबारिज़ाती, सियासी और समाजी सीरत और उनके बेमिसाल और पायेदार किरदार का जायज़ा लेते हुए, मुअतबर तारीख़ी मनाबे की रौशनी में हक़ायिक को उजागर किया जाए, ताकि शुरुआती इस्लामी तारीख़ के वाक़िआत का एक जामे और अ़मीक तज़्ज़िया पेश किया जा सके।
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फ़दक के सच्चे गवाहों को झुठलाया गया
हौज़ा / हज़रत फ़ातेमा ज़हरा का फ़दक छीना गया और आपने उसे वापस मांगा तो उस समय की सरकार यानी जाली पहले ख़लीफ़ा ने आपसे गवाह मांगे कि साबित करो यह फ़िदक तुम्हारा है, आपने गवाह के तौर पर इमाम अली, उम्मे एमन और पैग़म्बर के दास रेबाह को प्रस्तुत किया, लेकिन इन लोगों की गवाही कबूल नहीं की और सच्चे गवाहों को झुठला दिया गया
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सीरत ए हज़रत ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा विवाहित जीवन का आदर्श उदाहरण
हौज़ा / हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सलामुल्लाहे अलैहा) एक मिसाली पत्नी के तौर पर तमाम मुसलमान ख़्वातीन के लिए एक कामिल नमूना हैं, जिनकी घरेलू ज़िंदगी मोहब्बत, ईसार और वफ़ादारी से भरी थी।
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दरस-ए-अख़लाक़ः
अल्लाह के दर पर जाना चाहिए ताकि दूसरों के सामने गिड़गिड़ाना न पड़े
हौज़ा / इंसान बहुत सारी चीजों का ज़रूरतमंद है, इन ज़रूरतों से छुटकारा पाने और इन ज़रूरतों की पूर्ति के लिए किससे कहें? अल्लाह से क्योंकि वह हमारी ज़रूरतों को जानता है, अल्लाह जानता है कि आप क्या चाहते हैं, क्या ज़रूरी है; और कौन सी चीज़ आप उससे मांग रहे हैं और सवाल कर रहे हैं तो अपने अल्लाह से मांगिए।
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तबलीग़ मे नरमी, ईमानदारी और ज्ञान उपदेश के मुख्य स्तंभ हैं: मौलाना सैयद रिज़वान हैदर रिज़वी
हौज़ा / हिंदुस्तान के मुमताज़ आलिम-ए-दीन और जामियतुल-बतूल हैदराबाद-दक्कन के निदेशक हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन डॉक्टर सय्यद रिज़वान हैदर रिज़वी ने हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के साथ ख़ुसूसीगुफ़्तगू में कहा कि तबलीग़ सिर्फ़ गुफ़्तार का नाम नहीं, बल्कि किरदार, ख़ुलूस और इल्म का हसीन इम्तिज़ाज है। उनका कहना था कि एक मुबल्लिग़ को ज़माने के तक़ाज़ों के साथ आगे बढ़ना चाहिए, मगर अपने पैग़ाम की अस्ल रूह को हमेशा महफ़ूज़ रखना चाहिए।
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शरई अहकाम । क्या पति अपनी पत्नी की अनुमति के बिना उसका पैसा खर्च कर सकता है?
हौज़ा / हर शख़्स अपने माल का मालिक होता है, और मालिक की इजाज़त के बग़ैर किसी को उससे फ़ायदा उठाने का हक़ नहीं। पति भी पत्नि की इजाज़त के बग़ैर उसके पैसे घरेलू अखराजात में इस्तेमाल नहीं कर सकता, मगर उस सूरत में कर सकता है जब उसे यक़ीन हो कि पत्नि इस पर राज़ी है। बसूरत-ए-दिगर, यह अमल शरअन ग़स्ब शुमार होगा।
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इंटरव्यू:
इंटरव्यूः हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) इस्मत, सब्र और ईमान की बेनज़ीर मिसाल
हौज़ा / हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा पैग़म्ब ए इस्लाम स.अ.व. की बेटी और अहलेबैत अ.स.की महान सदस्य हैं आप अ.स. का पवित्र जीवन क़ुरआन और सुन्नत की जीती जागती व्याख्या है। आप (अ.स.) की पवित्रता का ज़िक्र आयत ए तत्हीर में है और आप (अ.स.) की महानता की तस्दीक़ ख़ुद रसूलुल्लाह (स.अ.व.) ने इन शब्दों में की,फ़ातिमा मेरे जिस्म का हिस्सा हैं, जिसने उन्हें दुख पहुँचाया, उसने मुझे दुख पहुँचाया।इबादत, इल्म, सब्र और हक़ की हिफ़ाज़त में हज़रत ज़हरा अ.स. दुनिया की तमाम औरतों के लिए बेनज़ीर मिसाल हैं।
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नसीहत से वस्वास का उपचार सम्भव नही
हौज़ा / नौजवानों में वस्वास आम तौर पर बेचैनी और बेकारी की वजह से पैदा होता है। बार-बार समझाना या नसीहत करना इस मसले को बढ़ाता है, इलाज नहीं करता। बातों के बजाय बेहतर है कि बच्चे के लिए सुकूनभरा माहौल, नियमित और सक्रिय दिनचर्या और अलग-अलग कामों में व्यस्त रहने का सिस्टम बनाया जाए। साथ ही ज़रूर किसी माहिर नफ़्सियात से सलाह ली जाए।
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तंज़ीमुल मकातिब वह दीपक है जो हमेशा जलता रहेगा
हौज़ा / मौलाना सय्यद ग़ुलाम असकरी ताबासराह ने केवल एक संस्था की स्थापना नहीं की, बल्कि विचार और विश्वास, शिक्षा और प्रशिक्षण, और आंदोलन और संगठन की उस नींव को रखा, जिसने समुदाय के बिखरे हुए हिस्सों को एक संगठित चेतना में बदल दिया। यह संस्था सिर्फ दीवारों, कमरों और इमारतों का नाम नहीं है, बल्कि शिक्षा और विश्वास की वह जीवित आत्मा है, जिसकी नींव ज्ञान के प्रकाश पर रखी गई है।
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फ़िदक की हकीकत, तारीख के आईने में
हौज़ा / हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) और फ़िदक के बारे बहुत से प्रश्न किए हैं जैसे कि फ़िदक का वास्तविक्ता क्या है? और क्या फ़िदक के बारे में सुन्नियों की किताबों में बयान किया गया है या नहीं।हम अपनी इस श्रखलावार बहस में कोशिश करेंगे कि सुन्नियों की महत्वपूर्ण एतिहासिक किताबों में फ़िदक के बारे में विभिन्न पहलुओं को बयान करें और उस पर बहस करें।
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इंटरव्यूः मुबल्लिग़ के लहजे मे नर्मी और शिरीनी होना ज़रूरी है ताकि बात मोअस्सिर हो
हौज़ा / अंतर्राष्ट्रीय मुबल्लिग़ हुज्जतुल इस्लाम मौलाना तनवीर अब्बास आज़मी ने एक सक्रिय और सफ़ल मुबल्लिग की विशेषताओ पर हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के रिपोर्ट से बात चीत की।
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दरस-ए-अख़लाक़:
अल्लाह तआला की याद को ग़नीमत समझिए
हौज़ा / वह इंसान जिसे रूहानी सुकून हो उसकी सोच सही रहती है, वह सही फ़ैसले करता है और सही क़दम उठाता है। ये सब अल्लाह की रहमतों की निशानियाँ हैं।याद रहे ज़िक्रे इलाही से ही दिलों को इतमेनान नसीब होता है यह अल्लाह का ज़िक्र और याद है जो हमारे दिलों को हमारी दुनिया और ज़िन्दगी के तूफ़ानों में सुरक्षित रखती है, इसलिए अल्लाह की याद को ग़नीमत समझिए।
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कहीं ऐसा न हो कि कल को तुम कहो कि हमने पहचाना नहीं और हमें पता नहीं था
हौज़ा / हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) अपने ख़ुत्बे की शुरुआत में जागरूक करने वाले लहजे में फ़रमाती हैं: “मैं फ़ातिमा हूँ, मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि व सल्लम) की बेटी।” इसके बाद वह अपने इलाही मक़ाम और पैग़म्बर के अपने बारे में कहे गए शब्दो को याद दिलाते हुए लोगों को चेतावनी देती हैं कि उनकी बातें किसी भावना या ग़ुस्से से नहीं हैं, बल्कि अक़्ल, सचाई और इलाही जिम्मेदारी (रिसालत) पर आधारित हैं।
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इमाम सज्जाद (अ) की विलादत और आज का युवा, किरदार साज़ी का नया सफ़र
हौज़ा / १५ जमादिल अव्वल का मुबारक दिन तारीख़ के सफ़हात पर एक नूरी चराग़ की मानिंद है। यह वह दिन है जिसने इंसानियत के सफ़र में इबादत की लतीफ़ खुशबू, दुआ की पाकीज़गी और किरदार के वक़ार का इज़ाफ़ा किया। इसी सआत में आग़ोश-ए-ज़हरा के घराने में इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अलैहिस सलाम) की विलादत हुई। वह हस्ती जिसकी ज़िंदगी ने कर्बला के दर्द को हिकमत-ए-इलाही के पयाम में बदल दिया और टूटे हुए मआशरे को सब्र, रज़ा और अख़लाक़ की नई बुनियाद अता की।
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बेटी मां और पत्नी के रूप में हज़रत फातिमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) का सम्मान
हौज़ा / नौ वर्ष की आयु तक हज़रत फ़ातिमा सला मुल्ला अलैहा अपने पिता के घर पर रहीं।जब तक उनकी माता हज़रत ख़दीजा स.ल. जीवित रहीं वह गृह कार्यों मे पूर्ण रूप से उनकी साहयता करती थीं। तथा अपने माता पिता की अज्ञा का पूर्ण रूप से पालन करती थीं
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हज़रत फातेमा ज़हरा (स) की शहादत के मौके पर शोघकर्ता हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सय्यद क़ासिम अली रिज़वी से विशेष इंटरव्यू;
हज़रत फातेमा ज़हरा स.ल. दीन और विलायत की रक्षक
हौज़ा / हज़रत ज़हेरा स.ल. की शहादत स्वयं विलायत की गवाही है आप स.ल. ने केवल ज़बान से ही नहीं, बल्कि अपने प्राणों के माध्यम से भी विलायत की रक्षा की। जब अमीरुल मोमिनीन अ.स. के अधिकार का हनन हुआ, तो आप (स) ने फरमाया:अल्लाह की कसम! यदि अली (अ) को छोड़ दिया गया, तो तुम्हारे मामले कभी ठीक नहीं होंगे।और इतिहास गवाह है कि आप (स.ल.) ने अत्याचार सहा, किंतु चुप्पी नहीं अपनाई। आप (स.ल.) के घर पर हमला, आपके घायल होने और फिर आपकी शहादत यह सब विलायत की रक्षा की कीमत थी।
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हज़रत ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा की मज़लूमियत, बातिल क़ुव्वतो की बे दलीली का इंकेशाफः मौलाना मंज़ूर अली नक़वी
हौज़ा / अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम की विलायत और मज़लूमियत-ए-हज़रत फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा इस्लाम की तारीख़ के वो दो रोशन बाब हैं जिनमें हक़ और बातिल की तमीज़ हमेशा वाज़ेह रही है। मगर सदा अफ़सोस कि इन्हीं दो हक़ीक़तों को उम्मत ने सबसे ज़्यादा फरामोश कर दिया।
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क़ुरआन की रौशनी में:
अगर आपकी कोई भी बात या अमल कुफ़्फ़ार को ख़ुश करता है तो आप पैग़म्बर के साथ नहीं हैं
हौज़ा / अगर आप देखें कि जिस राह पर आप चल रहे हैं, कुफ़्फ़ार उससे ख़ुश होते हैं, तो जान लीजिए कि वह रास्ता ‘वो काफ़िरों पर सख़्त हैं तो आप पैग़म्बरे इस्लाम के साथ नहीं हैं।
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हज़रत मोहसिन की शहदत / शिया और सुन्नी पुस्तकों में
हौज़ा / शिया और सुन्नी स्रोतों में मौजूद ऐतिहासिक दस्तावेज़ों से पता चलता है कि हज़रत मोहसिन इमाम अली (अ.) और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.) की संतान थे जो दूसरे ख़लीफ़ा उमर या क़ुनफ़ुज़ द्वारा हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.) को दरवाज़े और दीवार की बीच दबा दिए जाने के कारण शहीद हो गए थे।
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मौलाना सैय्यद अली हाशिम आब्दी
हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा और इबादत
हौज़ा / इबादत जिन्नात और इंसान की पैदाइश का मक़सद और इंसानियत की मेराज है। लेकिन इस नुक्ते की तरफ़ ध्यान देना ज़रूरी है कि कमाल "आबिद" (इबादत करने वाला) होने में नहीं, बल्कि "अब्द" (बंदा बनने) होने में है। जैसा कि आरिफ़ बिल्लाह सालिक़ इलल्लाह हज़रत अल्लामा हसन ज़ादे आमुली रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया,आबिद मत बनो, अब्द बनो शैतान ने तक़रीबन 6000 साल तक इबादत की और "आबिद" बना लेकिन "अब्द" नहीं बन सका। मतलब ये कि जब तक "अब्द" नहीं बनोगे, इबादत से कोई फ़ायदा नहीं होगा।
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इस्लामी घराना:
ग़लत तरबियत बच्चों का अधिकार छीन लेना है
हौज़ा / आज के दौर में जहाँ शिक्षा और तकनीक तेज़ी से बढ़ रही है, वहीं कई बच्चे घरों और स्कूलों में अनुचित अनुशासन और हिंसा का शिकार हो रहे हैं ग़लत तरबियत बच्चों से उनका आत्मविश्वास, सुरक्षा और खुशहाल बचपन छीन लेती है।
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आदर्श समाज की ओर (इमाम महदी अलैहिस्सलाम से संबंधित श्रृंखला) भाग - 52
कुरआन मे महदीवाद (भाग -4)
हौज़ा/ खुदा ने ज़मीन पर हुकूमत, दीन और मज़हब की श्रेष्ठता और पूर्ण शांति का वादा मोमिनों और नेक लोगों के एक गिरोह से किया है। लेकिन इस गिरोह से मुराद कौन लोग हैं, इस बारे में मुफस्सिरों में मत भेद पाया जाता है।
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हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के लिये आसमान से दस्तरख़्वान नाज़िल हुआ
हौज़ा / किताब कश्फ़ुल ग़ुम्मह में रिवायत नक़्ल हुई है।एक दिन अमीरुल मोमिनीन इमाम अली अलैहिस्सलाम थोड़ी देर के लिये क़ैलूला (आराम) कर रहे थे। जब बेदार हुए तो भूख महसूस हुई और अपनी बीवी हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा से खाने का मुतालिबा किया। हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने फ़रमाया,ख़ुदा की क़सम! जिसने मेरे वालिद को नुबूवत और आपको वसी के लिये चुना है, आज हमारे पास खाने को कुछ भी नहीं है जो आपकी ख़िदमत में पेश कर सकूँ। बल्कि दो दिन से मैंने ख़ुद भी कुछ नहीं खाया है, जो कुछ घर में था वह सब मैंने आप और बच्चों को दे दिया। अल्लाह ताला ने बीवी को आसमान से खाने का दस्तरखान नाजिल किया।
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हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की विश्लेषणात्मक रिपोर्टः
फ़िक्री और इदराकी जंग मे दुश्मन मीडिया का मिशन / इस जंग को फ़रेब के माध्यम से नही जीता जा सकता
हौज़ा / मीडिया विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं ने बताया है कि सोच और समझ की जंग (फिक्री और इदराकी जंग) में दुश्मन के क्या लक्ष्य हैं। उन्होंने इस बहुत ही संवेदनशील और किस्मत तय करने वाले क्षेत्र में दुश्मन-समर्थक मीडिया के सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्यों को स्पष्ट किया है।
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क़ौम को अपाहिज करने वाली समाजिक बुराई
हौज़ा / दूसरों की बुराई करना या बिना वजह उन पर ऐतराज़ करना एक नैतिक बुराई है। इसके समाज पर भी असर होते हैं और व्यक्ति पर भी। सामाजिक असर यह है कि यह लोगों के बीच भरोसा और हमदर्दी को कम कर देता है, और समाज में मिलजुलकर काम करने की क्षमता को खत्म कर देता है। व्यक्तिगत असर यह है कि जो व्यक्ति दूसरों की बुराई करता है, वह खुद उसी बुरे व्यवहार में फंस जाता है जिसकी उसने आलोचना की थी। पैग़म्बर और इमामों (अ) ने मोमिन की बेइज़्ज़ती करने या उसकी तौहीन करने से सख़्ती से मना किया है।
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इंटरव्यूः ख़ुत्बा ए फ़दाकिया इंसाफ़, तौहीद और अहले-बैत के हक़ की आवाज़
हौज़ा / क़ुम अल मुक़द्देसा मे रहने वाले भारतीय शिया धर्मगुरू, कुरआन और हदीस के रिसर्चर मौलाना सय्यद साजिद रज़वी से हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के पत्रकार ने अय्याम ए फ़ातिमा के अवसर पर हज़रत ज़हरा द्वारा दिए गए खुत्बा ए फ़दाकिया के हवाले से विशेष इंटरव्यू किया। जिसमे मौलाना ने खुत्बा ए फ़दकिया के असली मक़सद को बयान किया।
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आख़िर उज़ ज़मां में लोगों की हालत कैसी होगी?
हौज़ा / मरहूम हाज इस्माईल दुलाबी (र) ने एक प्रतीकात्मक उदाहरण के ज़रिए आख़िर-उज़-ज़मां के लोगों को चार समूहों में बाँटा है: पहलाः जो दुनिया में फ़साद और अव्यवस्था फैलाते हैं। दूसराः जो सिर्फ दुआ और फ़रियाद (मांगने) में लगे रहते हैं। तीसराः जो ग़फ़लत यानी लापरवाही और बेख़बरी में डूबे हुए हैं और चौथाः जो उद्देश्यपूर्ण और कर्मशील इंतज़ार के साथ जीवन जी रहे हैं।
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इमाम सादिक़ (अ) की निगाह मे दूर से इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत करने का आसान तरीक़ा
हौज़ा / आयतुल्लाह शुबेरी ज़ंजानी ने इमाम सादिक़ (अ) की एक रिवायत के ज़ेल मे फ़रमाया कि अपने घर मे ग़ुस्ल करें, छत पर जाऐे और इमाम हुसैन (अ) की क़ब्र ए मुताहर की जानिब इशारा करके आनहज़रत (अ) को सलाम करें।