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कर्बला की घटना मे इमाम हसन मुज्तबा (अ) के बेटों की संख्या और क़ुर्बानीया
हौज़ा/कर्बला की लड़ाई इस्लामी इतिहास की एक ऐसी घटना है जिसमें इस्लाम धर्म के अस्तित्व के लिए पैग़म्बर (स) के परिवार के अमर बलिदानों और बहादुरी की कहानियाँ सदियों से सुनाई जाती रही हैं। इस महान युद्धक्षेत्र में, इमाम हुसैन (अ) और उनके परिवार ने अपनी जान जोखिम में डाली। इनमें अली (अ) का परिवार, अकील का परिवार, जाफ़र का परिवार, इमाम हसन (अ) के वंशज और इमाम हुसैन (अ) के बेटे शामिल हैं।
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अगर इस्लाम यूनीवर्सल धर्म है, तो आज तक कुछ लोगों को इसके बारे में क्यों नहीं पता?
हौज़ा/ अगर इस्लाम एक यूनीवर्सल धर्म है, तो पैग़म्बर मुहम्मद (स) के ज़माने में, और आज के ज़माने में भी—जब मीडिया इतना शक्तिशाली है—धर्म की आवाज़ सभी लोगों तक क्यों नहीं पहुँची?
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महिला धार्मिक मदरसे के निदेशक:
रिवायत ए कर्बला | तेरहवीं मुहर्रम की घटनाएँ, "मा रअयतो इल्ला जमीला"
हौज़ा/ तेरहवीं मुहर्रम 61 हिजरी को, उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद ने आदेश दिया कि पैगंबर के परिवार के बंदियों को उनके महल में पेश किया जाए। वह इमाम हुसैन (अ) के पवित्र सिर को सबके सामने प्रदर्शित करके अपनी शक्ति और विजय का प्रदर्शन करना चाहते थे।
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इस्लामी कैलेंडर:
13 मुहर्रम 1447 - 9 जुलाई 2025
हौज़ा / इस्लामी कैलेंडरः 13 मुहर्रम 1447 - 9 जुलाई 2025
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बनी असद जनजाति द्वारा कर्बला के शहीदों की पहचान और दफन
हौज़ा/ कर्बला की घटना के बाद, जब उमर बिन साद की सेना मैदान छोड़कर वापस लौटी, तो इस क्षेत्र के पास “ग़ाज़रिया” नामक गाँव में रहने वाले बनी असद जनजाति ने कर्बला के शहीदों के शवों को देखा और घटना स्थल पर पहुँचे। उस समय, इमाम सज्जाद (अ), जिन्हें अत्यंत कठिन परिस्थितियों के बावजूद कर्बला पहुँचना था, ने उनका मार्गदर्शन किया।
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आशूरा का रोज़ा रखना सुन्नत या बिदअत?
हौज़ा / जैसे ही नवासा ए रसूल स. हज़रत इमाम हुसैन अ.स. के क़याम व शहादत का महीना मोहर्रम शुरु होता है वैसे ही एक ख़ास सोच के लोग इस याद और तज़करे को कमरंग करने की कोशिशें शुरु कर देते हैं। कभी रोने जो सुन्नते रसूल स. है की मुख़ालेफ़त की जाती है, तो कभी आशूर के रोज़े का इतना प्रचार किया जाता है इसी बात को साबित करने के लिए कुछ हादसे आपके सामने पेश करते हैं।
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रोज़े आशूरा के आमाल
हौज़ा / रोज़े आशूर मोहम्मद और आले मोहम्मद के लिए मुसीबत का दिन है।
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हज़रत अली असगर अ.स.की मुख्तसर हयात में महान कुर्बानी
हौज़ा / मौला हज़रत अली असगर (अ) का 10 रजब, 60 हिजरी को जन्म हुआ। हज़रत उम्मे रबाब की शाखे तमन्ना पर जो कली मुस्कुराई, उसने हकीमे कर्बला के होठों पर मुस्कान बिखेरी; खानदाने इस्मत व तहारत मे शमे फ़रहत व मुसर्रत रोशन हो गई।
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आयतुल्लाह हाएरी यज़्दी पर इमाम हुसैन (अ) की विशेष कृपा / दो फ़रिश्ते रूह कब्ज़ करने लाए, लेकिन तवस्सुल और शिफ़ाअत ने जीवन वापस दिलाया
हौज़ा/ आयतुल्लाह हाएरी यज़्दी (र) ने कहा है कि जब वे कर्बला में ठहरे हुए थे, तो एक रात किसी ने उन्हें सपने में बताया कि तीन दिन में उनका इंतकाल हो जाएगा।
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इमाम हुसैन के आंदोलन का उद्देश्य क्या था और यह किस तरह अम्र बिल मारुफ़ है?
हौज़ा/आशूरा के बारे में सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि इमाम हुसैन (अ) ने यह आंदोलन क्यों किया? और उनका आंदोलन अम्र बिल मारुफ कैसे था कि इसे इस तरह से अंजाम देना ज़रूरी था?
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इस्लाम में भाईचारे की अहमियत
हौज़ा / हज़रत पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने मदीने में दाख़िल होने के बाद सब से पहले जो बेसिक क़दम उठाए उनमें एक अहम काम यह भी था कि मुसलमानों के बीच प्यार, मुहब्बत और भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए अंसार व मुहाजेरीन में से हर एक को एक दूसरे का भाई बना दिया और उनके बीच भाईचारे का सीग़ा भी पढ़ा।
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हज़रत अबुल फ़ज़लिल अब्बास अ.स.की शहादत के मौके पर संक्षिप्त परिचय
हौज़ा / 4 शाबान (दूसरी रिवायत के मुताबिक़ 7 रजब) सन 26 हिजरी को हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम ने जिस घर में आंख खोली वह अध्यात्म के प्रकाश से भरा हुआ था। उस घर में हज़रत अब्बास ने न्याय के अर्थ को समझा और इसी घर से सत्य के मार्ग में दृढ़ता का पाठ सीखा।
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हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम की कर्बला में बे मिसाल शहादत
हौज़ा / हज़रत अबूल फ़ज़'लिल अब्बास अ.स. की बेहतरीन वफ़ादारी के लिए यही काफ़ी है कि आप फ़ुरात तक गए और पानी नहीं पिया शहीद हो गए
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माहे मोहर्रम में ग़म मनाना सुन्नत या बिदअत!?
हौज़ा / माहे मोहर्रम में कुछ लोग पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (स) के लाल इमाम हुसैन (अ) की शहादत का ग़म मनाते हैं। करबला के शहीदों की याद में मजलिस बरपा करते हैं, रोते हैं पीटते हैं खाना खिलाते हैं और इमाम हुसैन (अ) और करबला वालों की याद को ताज़ा करते हैं और कोई भी ऐसा काम करने से परहेज़ करते हैं जिससे किसी भी तरह की ख़ुशी ज़ाहिर हो और कुछ लोग कहते हैं कि हमें ग़म नही मनाना चाहिए, न रोना पीटना चाहिए, न इमाम हुसैन (अ) की मजलिस करना चाहिए क्योंकि यह काम बिदअत है और इस्लाम में बिदअत जायज़ नहीं है।अहले सुन्नत की बड़ी मोतबर हदीस की किताबों से देखते है कि क्या हक़ीक़त में ग़म मनाना सहीह व जायज़ है या बिदअत है?
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मुहर्रम; जुल्म के खिलाफ क़याम का महीना
हौज़ा / इमाम हुसैन की शहादत ने मुस्लिम उम्माह को सिखाया कि अगर धर्म को बचाने के लिए अपनी जान भी कुर्बान करनी पड़े तो यह नेक काम है।
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यज़ीदियत और वर्तमान समय के प्रतीक / कर्बला के आईने में आज की तस्वीर
हौज़ा / मानव इतिहास में ऐसी अनेक घटनाएँ घटी हैं जो समय के साथ भुला दी गईं, लेकिन कर्बला एक ऐसी घटना है जो हर युग को झकझोरती है। इमाम हुसैन अ.स. का यज़ीद की बैअत से इनकार केवल एक राजनीतिक मतभेद नहीं था, बल्कि यह सत्य और असत्य के बीच एक स्पष्ट और अटल रेखा खींचने का नाम था। यज़ीद केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक विचारधारा, एक व्यवस्था और शासन के एक ऐसे तरीके का प्रतीक था जो अत्याचार, जबरदस्ती, धोखा,दीन में विकृति और भ्रष्ट सत्ता का प्रतीक बन चुका था। यही यज़ीदी सोच हर युग में नए नामों और नए चेहरों के साथ सामने आती रही है, और आज भी हमारे आसपास मौजूद है।
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कर्बला के मैदान में वहब इब्ने अब्दुल्लाह अलकलबी की महान कुर्बानी
हौज़ा / हज़रत वहब इब्ने अब्दुल्लाह इब्ने हवाब कलबी आप बनी क्लब के एक फर्द थे हुस्नो जमाल में नजीर न रखते थे आप खुश किरदार और खुश अतवार भी थे और आपने कर्बला के मैदान में दिलेरी के साथ दर्जऐ शहादत हासिल किया।
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आदर्श समाज की ओर (इमाम महदी अलैहिस्सलाम से संबंधित श्रृंखला) भाग -33
अस्र-ए ग़ैबत-ए कुबरा में इमाम महदी (अलैहिस्सलाम) का आवास स्थल
हौज़ा / अगर ग़ैबत के विषय में इमाम (अलैहिस्सलाम) के ठिकाने, उनके खाने-पीने जैसी बातें छुपी रहें, तो इससे कोई शक या संदेह पैदा नहीं होता। जैसे कि इन बातों का पता चलना या न चलना, ग़ैबत की सच्चाई को साबित या नकारने में कोई असर नहीं डालता।
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हज़रत इमाम हुसैन अ.स. ने यज़ीद से बैअत क्यों नहीं की?
हौज़ा / हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन जवाद मोहद्दसी ने अपने विशेष खिताब में "दरस-ए-आशूरा" के तहत इस अहम सवाल का जवाब दिया है कि इमाम हुसैन अ.स.ने यज़ीद से बैअत क्यों नहीं की?
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क्या ईरान अपने महान वैज्ञानिकों का बदला लेने में सफल रहा?
हौज़ा/ ग़ासिब इसराइल ने दर्जनों ईरानी परमाणु वैज्ञानिकों को शहीद कर दिया, जिसके बाद कहा गया कि ईरान ने जवाबी कार्रवाई में एक भी इसराइली वैज्ञानिक को नहीं मारा, लेकिन हाल ही में हुए युद्ध में, जहाँ ईरान ने दर्जनों महत्वपूर्ण इसराइली सुविधाओं को निशाना बनाया, उसकी मिसाइलों और ड्रोन ने विज़ में संस्थान को नष्ट कर दिया। ऐसा कहा जाता है कि ईरानी हमले के समय संस्थान में विभिन्न क्षेत्रों के सौ से अधिक वैज्ञानिक और विशेषज्ञ मौजूद थे।
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अज़ादारी और तर्बियत-ए-औलाद
हौज़ा / आज के दौर में, जहाँ बच्चों पर हर तरफ़ से फ़िक्री और सांस्कृतिक हमले हो रहे हैं, अज़ादारी हमारे बच्चों के दिलों और दिमाग़ को मज़बूत रखने का सबसे असरदार ज़रिया है। हमें अपने बच्चों को मजलिसों में साथ लेकर जाना चाहिए। चाहे वे छोटे हों या बड़े, उन्हें इमाम हुसैन (अ.) और अहलेबैत (अ.) की क़ुर्बानियों, उनके सब्र, ग़ैरत और इज़्ज़त के वाक़ेआत सुनाने चाहिए, क्योंकि इन वाक़ेआत में वह ताक़त है जो बच्चों के किरदार को सँवार देते हैं।
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आदर्श समाज की ओर (इमाम महदी अलैहिस्सलाम से संबंधित श्रृंखला) भाग -32
इमामत का सिस्टम, इलाही और कभी समाप्त ना होने वाला सिस्टम है
हौज़ा / इमामत का सिस्टम अल्लाह का सिस्टम का बनाया हुआ सिस्टम है, जो कभी खत्म नहीं होता और इसमें कोई रुकावट या खाली समय नहीं आता। हर समय और हर युग में यह सिस्टम मौजूद रहा है; पैगम्बर (स) के समय से लेकर अब तक यह बना हुआ है और आगे भी जब तक दुनिया है, बना रहेगा।
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कुरान में इमाम हुसैन (अ) की अज़ादारी
हौज़ा / सय्यद अल-शोहदा (अ) और अन्य अहले-बैत (अ) की अज़ादारी का एक ऐतिहासिक प्रथा से कहीं अधिक है, यह कुरान और सुन्नत मासूमीन (अ) में गहरे वैचारिक और शैक्षिक सिद्धांतों पर आधारित एक आध्यात्मिक और धार्मिक प्रथा है। हालाँकि पवित्र कुरान में सीधे तौर पर "इमाम हुसैन की अज़ादारी" का शीर्षक नहीं है, लेकिन इसके सिद्धांत और आधार कुरान की कई आयतों में मौजूद हैं।
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आदर्श समाज की ओर (इमाम महदी अलैहिस्सलाम से संबंधित श्रृंखला) भाग -3۱
दुआओं में इमाम मेहदी (अलैहिस्सलाम) के मक़ाम और दर्जे
हौज़ा / इमाम महदी (अलैहिस्सलाम) के दर्जों और उनके महत्व की ओर ध्यान देना, इंसानों को अल्लाह तआला के और करीब ला सकता है।
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दरस ए अख़लाक़ः
तक़वा पैग़म्बरों की पहली और आख़िरी नसीहत है
हौज़ा / तक़वा (अल्लाह का डर) और परहेज़गारी लोक परलोक की कामयाबी की कुंजी है।
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मुहर्रम 1447 हिजरी के महीने के अवसर पर मुबल्लेग़ीन और ज़ाकेरीन की सेवा में कुछ गुज़ारिशात
हौज़ा / अज़ादारी के महीने के अवसर पर, इमाम अली (अ) फाउंडेशन ने मिम्बर हुसैनी के मुबल्लेग़ीन को निम्नलिखित निर्देश और सलाह पेश की है।
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आदर्श समाज की ओर (इमाम महदी अलैहिस्सलाम से संबंधित श्रृंखला) भाग -30
दुआओं में इमाम महदी (अलैहिस सलाम) की विशेषताएँ
हौज़ा / इमाम महदी अलैहिस सलाम की विशेषताओं और फ़ज़ीलतो पर ध्यान देना, उनके साथ हमारे संबंध को और मजबूत और बेहतर बना सकता है।
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अज़ादारी, दर्से मारफ़त और मार्गदर्शन की एक किरण
हौज़ा/ क्या आशूरा को सिर्फ़ एक ऐतिहासिक और राजनीतिक घटना के रूप में देखना संभव है, जबकि इसके भावनात्मक पहलुओं को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है? मारफ़त और भावनाओं के बीच सामंजस्य आशूरा के संदेश के अस्तित्व और इसके प्रभाव की स्थायित्व में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और इस विषय को इस चर्चा में समझाया गया है।