हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, "علیک منی جمیعا سلام الله अलैका मिन्नी जमीअन सलामुल्लाह" का मतलब है—मेरे दिल और जुबान से सारे सलाम इमाम हुसैन (अ) की खिदमत मे है। यह वाक्य सबसे सच्चे प्यार और दिल से जुड़े गहरे रिश्ते को दर्शाता है।
इस सलाम में इंसान के सारे पहलुओं को शामिल किया गया है; मतलब कि ज़बान का सलाम, अमल का सलाम और नीयत का सलाम है। हम इस वाक्य के ज़रिए यह ज़ोर देते हैं कि हम अपनी ज़िंदगी और व्यवहार में उस सलाम और शांति के रास्ते पर हैं जिसे इमाम हुसैन (अ) ने क़ायम किया, और जिसके दुश्मन उनके दुश्मन हैं, हम भी उनके दुश्मन हैं।
किसी से दिल से जुड़ाव और इमाम हुसैन (अ) और उनके महान आंदोलन की सही समझ ये महसूस कराती है कि हम अपने सारे अल्लाह के सलाम इमाम को पेश करते हैं, क्योंकि हमारा सलाम हमारी समझ और दूरदर्शिता के बराबर होता है और हम सलाम का पूरा हक अदा नहीं कर पाते।
इमाम की जगह की समझ में इतना काफी है कि हर इमाम अल्लाह का चुना हुआ होता है। अल्लाह हर वक्त सबसे बेहतरीन इंसानों को इमाम और हक़ीक़त बनाने वाले बनाकर इंसानों की हिदायत और खुशहाली के लिए चुनता है और उन्हें पैगंबर या उनके पहले के इमाम के ज़रिये पेश करता है।
"हुसैन पर अल्लाह का सलाम हो" का मतलब है कि अल्लाह की रज़ा (खुशनूदी), हुसैन की रज़ा (खुशनूदी) में है।
अगर तुम अल्लाह की रज़ा (खुशनूदी और प्रसन्नता) चाहते हो,
तो अल्लाह की रज़ा (खुशनूदी और प्रसन्नता) हुसैन की रज़ा (खुशनूदी और प्रसन्नता) में खोजो।
हुसैन पर अल्लाह का सलाम हदिया करने का मतलब है कि हम पूरी तरह से इमाम के प्रति वफादार हैं और अपने व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में उनके रास्ते को चुनते हैं।
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