۱ آذر ۱۴۰۳
|۱۹ جمادیالاول ۱۴۴۶
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Nov 21, 2024
इस्तेताआत) ताकत
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शरई अहकाम:
क्या नज़्र को पूरा करना वाजिब हैं?
हौज़ा / अगर कोई आदमी नज़्र माने लेकिन उस नज़्र की मशक्कत (कठिनाई)का इल्म ना रखता हो और नज़्र मानने के बाद उसे इस काम की मशक्कत का एहसास हो तो क्या उसे नज़्र को पूरा करना वाजिब है या नहीं?