۱ آذر ۱۴۰۳ |۱۹ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 21, 2024
शरई अहकाम

हौज़ा / अगर कोई आदमी नज़्र माने लेकिन उस नज़्र की मशक्कत (कठिनाई)का इल्म ना रखता हो और नज़्र मानने के बाद उसे इस काम की मशक्कत का एहसास हो तो क्या उसे नज़्र को पूरा करना वाजिब है या नहीं?

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली सिस्तानी से पूछे गए सवाल का जवाब दिया हैं जो शरई मसाईल में दिलचस्पी रखते हैं उनके लिए यह बयान किया जा रहा हैं।

सवाल: अगर कोई आदमी नज़्र माने लेकिन उस नज़्र की मशक्कत (कठिनाई)का इल्म ना रखता हो और नज़्र मानने के बाद उसे इस काम की मशक्कत का एहसास हो तो क्या उसे नज़्र को पूरा करना वाजिब है या नहीं?

जवाब: अगर वह (इस्तेताआत) ताकत रखता हो और नज़्र सही सूरत में हो तो इसे अंजाम देना वाजिब हैं।

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