इस्लामी घराना
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इस्लामी घराना:
पति और पत्नी एक दूसरे को पाकीज़ा इश्क़ से भरी नज़रों से देखा करें।
हौज़ा/ज़िन्दगी की हक़ीक़तों से ऊपर, आरज़ूएं, इश्क़ और मोहब्बतें, इंसानी जज़्बात इंसान की ज़िन्दगी में अपना रोल अदा करते हैं, उनका रोल भी, स्वाभाविक है, दूसरे दर्जे का नहीं है, बल्कि वही वास्तविक रोल है और इस मज़बूत इमारत का स्तंभ बन सकता है।
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:इस्लामी घराना
मियां बीवी एक दूसरे को गुमराही से बचाएं
हौज़ा/सुप्रीम लीडर कहां कोशिश कीजिए पति और पत्नी एक दूसरे को दीनदार, अल्लाह के रास्ते पर चलने वाला, इस्लाम के रास्ते पर चलने वाला, सत्य के रास्ते पर चलने वाला, इमानदारी व सच्चाई के रास्ते पर चलने वाला बाक़ी रखें, गुमराही और भटकने से बचाएं।
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इस्लामी घराना:
अच्छा घराना, मुल्क में हक़ीक़ी सुधार की बुनियाद हैं
हौज़ा/अच्छी फ़ैमिली का मतलब यह है कि मियां-बीवी एक दूसरे के साथ मेहरबान रहें, वफ़ादार रहें, एक दूसरे से मोहब्बत करें, एक दूसरे का ख़्याल रखें, एक दूसरे के हितों का सम्मान करें,इस तरह की फ़ैमिली, किसी भी मुल्क में हक़ीक़ी सुधार की बुनियाद होती हैं।
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इस्लामी घराना:
घर में भी ‘अम्र बिल मारूफ’ और ‘नहि अनिल मुन्कर’ कीजिए
हौज़ा/सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई ने कहां,घरवालों के बीच ‘अम्र बिल मारूफ’ अच्छाई का हुक्म देना और ‘नहि अनिल मुन्कर’ बुराइयों से रोकना, के मसले में सिर्फ़ बुराई से रोकना नहीं है, बल्कि अम्र बिल मारूफ़ यानी भलाई का हुक्म और अच्छे काम का हुक्म देना भी ज़रूरी हैं।
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इस्लामी घराना:
जवान नस्ल में मुल्क की मुश्किलों को हल करने की सलाह
हौज़ा/सुप्रीम लीडर ने कहां,जवान नस्ल का सिलसिला बना रहना चाहिए अगर मौजूदा रुझान जारी रहा तो मुल्क की आबादी बूढ़ी हो जाएगी परिवारों को, जवानों को चाहिए कि नस्ल बढ़ाएं।
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जन्म दर का कम होना, बहुत बड़ा ख़तरा
हौज़ा/आज एक अहम मुद्दा बच्चे पैदा करने का मुद्दा है और यह बहुत बड़ा चैलेंज हैं अच्छी लड़कियों और अच्छी औरतों के एक समूह ने क़ुबूल किया और अमल किया लेकिन समाज में आम सतह पर इसका असर नहीं हैं।
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:इस्लामी घराना
औरत का फ़ैमिली की सतह पर और बच्चों के सिलसिले में ज़्यादा हक़ हैं
हौज़ा/इस्लाम ने कुछ मौक़ों पर औरत को मर्द पर तरजीह दी है। मिसाल को तौर पर जिस जगह मर्द और औरत माँ-बाप के तौर पर साहेबे औलाद हैं, यह बच्चा हालांकि दोनों की औलाद हैं लेकिन बच्चे पर माँ की ख़िदमत ज़्यादा लाज़िम है।
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इस्लामी घराना:
परिवार में ख़ातून की हैसियत सेंटर प्वाइंट की हैं
हौज़ा/ख़ातून, फ़ैमिली को चलाने वाली है। ख़ातून, फ़ैमिली में सेंटर प्वाइंट की तरह हैं ख़ातून के सभी कामों में सबसे ज़्यादा अहम माँ होना, बीवी होना और सुकून पैदा करना हैं।
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:इस्लामी घराना
परिवार सुकून व चैन का गहवारा होना चाहिए
हौज़ा/सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई ने कहां,मियां बीवी का दिल चाहता है कि जब घर में दाख़िल हों तो घर उन्हें आराम व सुकून का एहसास कराए,एक दूसरे के लिए सुकून का ज़रिया हों,
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शादी ज़िन्दगी के अहम मौक़ों में से एक और सुकून का साधन हैं
हौज़ा/सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई ने कहां,शादी और परिवार के साए में सुकून हासिल होना, ज़िन्दगी के अहम मौक़ों में से एक है। मर्द और औरत दोनों के लिए यह आत्मिक सुकून व आराम का ज़रिया और ज़िन्दगी की सरगर्मी को जारी रखने के लिए प्रेरित करने वाला साधन हैं।
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:इस्लामी घराना
समाजी बदलाव घराने में मुहब्बत बढ़ाने में मददगार हो
हौज़ा/हर बदलाव से ख़ुदा की इबादत, रूहानियत से इश्क़, इंसानी जज़्बात और इंसानों में प्यार व स्नेह मज़बूत होना चाहिए और हमें इस राह में क़दम उठाना चाहिए
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:हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सैय्यद अली ख़ामनेई
पश्चिम में घराने की बुनियादें हिल चुकी हैं।
हौज़ा/पश्चिम में औरत की मदद और उसकी ख़िदमत के नाम पर उसकी ज़िदगी को सबसे बड़ी चोट पहुंचाई गई, क्यों? इस लिए कि सेक्शुअल करप्शन, नैतिक पतन और मर्द और औरत के बीच बेलगाम मेल-जोल की वजह से परिवार की नींव ही ढह गई।
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:इस्लामी घराना
बेपर्दगी घराने की बुनियाद को हिला देती हैं
हौज़ा/इस्लाम की नज़र में घराना बहुत अहम है। घर के माहौल में औरत और मर्द का संबंध किसी और तरह का है, समाज के माहौल में किसी दूसरे तरह का है इस्लाम ने औरत और मर्द के बीच पर्दे की हैसियत से समाज के माहौल में जो नियम निर्धारित किए हैं, अगर उन्हें तोड़ दिया जाए तो घराना बिगड़ जाएगा
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महिलाओ मे बढ़ता हिजाब का रुजहान
हौज़ा/हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सैय्यद अली ख़ामनेई ने कहां,जान लीजिए कि बहुत सारे इलाक़ों की मुसलमान औरतें आपको देखती और आपसे सीखती हैं। यह जो आपको देखती हैं कि कुछ देशों में, इस्लामी हिजाब को दुश्मन की तरफ़ से शदीद हमलों का सामना हैं।
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इस्लामी घराना:
ज़्यादा मेहर, शादीशुदा ज़िंदगी की हिफ़ाज़त की गैरेंटी नहीं
हौज़ा/हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सैय्यद अली ख़ामनेई ने कहां,शादी के रिश्ते का एक पाकीज़ा पहलू है, इस पाकीज़ा पहलू को उससे छीनना नहीं चाहिए। उसके पाकीज़ा पहलू को छीनना, उन्हीं नापंसदीदा कामों के ज़रिए होता है जो अफ़सोस कि हमारे समाज में आम हो गए हैं।