हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने फरमाया,कुछ ग़लत नज़रिए, जो औरतों से मख़सूस नहीं हैं, मर्द भी कभी कभी उन्हीं मतों का पालन करते हैं और यह कहना चाहते हैं कि आइये इस तराज़ू (के पलड़ों) की चीज़ें (मर्द और औरत के रोल) आपस में बदल दें। अगर हम ऐसा कर दें तो क्या हो जाएगा?
आप सिवाए इसके कि एक बड़ी ग़लती करेंगे, सिवाए इसके कि एक बाग़ और गुलिस्तान को, जो बड़ी ख़ूबसूरती से सजाया गया था, बर्बाद कर देंगे, कुछ और नहीं करेंगे। आपस में एक दूसरे को पहुंचने वाले फ़ायदों को ख़त्म कर देंगे।
कभी ऐसा होता है कि मर्द को घर में औरत का रोल मिल जाता है और औरत निरंकुश मालिक बन जाती है। वो मर्द पर हुक्म चलाती है, उससे कहती है कि यह काम करो और वह काम न करो और मर्द भी सिर झुका देता है।
यह मर्द वह नहीं हो सकता जिसे औरत सहारा समझे, औरत अच्छे सहारे को पसंद करती है। दूसरी ओर कभी कभी मर्द भी कुछ चीज़ें औरत पर थोप देता है जैसे (घर की) सभी ख़रीदारी, काम काज और आने जाने वालों से बातचीत करना और मामलों को निपटाना औरत के ज़िम्मे डाल देता है,यह ग़लत हैं।
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