हौज़ा/ध्यान देने वाली बात है कि अगर हमारे हालात और हमारे बुरे आमाल सैकड़ों साल पहले इमाम सादिक़ अ.स. को बेचैन हो कर रोने पर मजबूर कर सकती है तो क्या हमारी ज़िम्मेदारी नहीं बनती कि हम इस ग़ैबत…