۱۵ تیر ۱۴۰۳ |۲۸ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 5, 2024

तअस्सुब

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    तअस्सुब

    हौज़ा / हमारी हालत उस मेंढक की तरह हो गई है जिसे उरूज पसंद ही नहीं वह तालाब और नाली के सड़े व बदबूदार पानी को ही अपना मुक़द्दर समझता है। हम एक ही मज़हब में अलग-अलग मसलक के लोग एक दूसरे से तअस्सुब के शिकार हैं एक दूसरे को देखना पसंद नहीं करते जिसका पूरा फा़यदा दूसरे लोग उठा रहे हैं।

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