मजलिस ए अज़ा
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मजालिस ए अज़ा का आयोजन करना हमारी धार्मिक जिम्मेदारी हैः मौलाना सैयद अरशद अली जाफ़री
हौज़ा/ मजालिस ए अज़ा का आयोजन करना हमारी धार्मिक जिम्मेदारी है, इन सभाओं में हमें न केवल आस्था, नैतिकता और आत्म-सभ्यता के मुद्दों की व्याख्या करनी चाहिए, बल्कि हमें इस पर कार्य करना चाहिए और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए आमंत्रित करना चाहिए।
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अहलेबैत अ.स. से मोहब्बत ज़बानी दावे काफी नहीं है। मौलाना असगर एजाज़ कायेमी
हौज़ा/निजात के लिए कश्ती पर सवार होना ज़रूरी है, किनारे पर खड़े होकर कश्ती की खूबसूरती की तारीफ करने से निजात नहीं मिल सकती
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कर्बला के शहीदों का चेहलुम,और मजलिस की व्यवस्था
हौज़ा/ सफर की 20 तारीख को शिया बरादरी की ओर से कर्बला के शहीदों का चेहलुम मनाया गया चेहलूम के मौके पर अज़ादराने हुसैन ने मजालिस और जुलूस निकाल कर कर्बला के शहीदों को श्रद्धांजलि दी
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मज़बूत क़िलों में बंद होने के बावजूद मौत के चंगुल से बचना संभव नहीं,मौलाना गफिर रिज़वी
हौज़ा / जिनके मन में पाप की बस्ती होती है उनके हृदय में मृत्यु का भय है। जब ईमान वालों के सामने मौत का नाम आता है तो ये कहते नज़र आते हैं,अगर हम सही रास्ते पर हैं, तो हमें क्या परवाह है कि मौत हम पर आ जाए या हम मौत पर जा पड़े इसकी बेहतरीन मिसाल हुसैन का कड़ियल जवान अली अकबर है,
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टिक टॉकर से बदसलूकी को आशूरा पर दहशत गर्दी से अधिक संगीन क़रार देना बे हिसी है, अल्लामा सिब्तैन सब्ज़ावारी
हौज़ा / टिक टॉकर की अपनी हरकत जैसी भी थी लेकिन किसी को भी इस बात की अनुमति नही दी जा सकती कि वह किसी महिला की इज़्ज़त पर हाथ डाले और उससे दस्त तराज़ी करे लेकिन बहावलनगर में शोक जुलूस ए अज़ा पर मस्जिद से हुए आतंकवादी हमले को एक निजी टीवी चैनल तक सीमित कर देना। फैय्याज़ुल हसन चौहान की नासेबी सोच को दर्शाता है।
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इस्लामी इतिहास के सबसे संवेदनशील दौर में धर्म को बचाना मौला ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) का महान कार्य, मौलाना क़ंबार सिरसिवी
हौज़ा / अज़ादारी ए हज़रत सैयदुश्शोहदा एक बड़ी इबादत है और इसमें भाग लेने की सआदत (खुशी) और सफलता केवल उन लोगों को अता की जाती है जिन्होने इस्लाम धर्म को पैगंबर (स.अ.व.व.) के वारिसों से विरासत में लिया है।