۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024

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  • रजा सिरसिवी खुद ही चेहरा,  खुद ही आईना

    रजा सिरसिवी खुद ही चेहरा,  खुद ही आईना

    हौज़ा / स्वर्गीय रज़ा सिरसिवी साहब स्वयं एक उत्तम स्वभाव के व्यक्ति थे, इसलिए उनकी शायरी मे भी महिमा और आकर्षण था। दर्जनों ग़ज़लें और सैकड़ों मनकबत एक ही भूमि में कही जा सकती हैं, लेकिन एक ही स्थिति में, अंतिम सांस तक वजअ व कतअ को बाकी रखना यह केवल एक अच्छे आदमी का ही काम है। रवैया मे कृत्रिम प्रतिभा नहीं बल्कि स्वाभाविक और सहज ईमानदारी थी। आज खुतबा, शोअरा, बानियाने मजालिस वा महाफिलो के दिलो की वसअत को देखने के बजाए वो अपने आत्मसम्मान को देखते थे।

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