۱۵ تیر ۱۴۰۳ |۲۸ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 5, 2024

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  • सीरते इमाम हसन और मकारेमुल अख़लाक़

    सीरते इमाम हसन और मकारेमुल अख़लाक़

    हौज़ा / दया और कृपा का यह सिलसिला 2 सफ़र को खत्म हो जाता अगर आप (स.अ.व.व.) के बाद बारह उत्तराधिकारी न होते जो रात के अँधेरे में अपनी पीठ पर रोटियां रख कर गरीबों और मजदूरों की जरूरतों का ख्याल ही नहीं रखा बल्कि कभी-कभी अपना चेहरा छुपा लिया करते थे और कहते थे कि मेरे पास इतना कम है कि मुझे देने में शर्म आती है, अल्लाहु अकबर।

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