हौज़ा न्यूज़ एजेंसी!
लेखकः हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना सैय्यद जावेद अब्बास मुस्तफ़वी
इस ओर ध्यान दिया जाना चाहिए कि इस्मत-ए-अत्हार (अ.स.) या उनमें से किसी एक की पवित्र जीवनी (सिरा-ए-तय्यबा) और उनके नैतिक और महान गुणों पर लिखना नदी के पानी को मापने जैसा है जो मानव शक्ति से परे है लेकिन लेख को अलंकृत करने के लिए कम ही सही लेकिन आवश्यक है।
इस स्थान पर मुझे फ़ारसी भाषा का एक शेर याद आ गया उसको भी लिखता चलू जोकि इस प्रकार हैः
आबे दरिया रा गर ना तवानद कशीद हम बेक़दरे तिशनगी बायद चशीद
जब भी सीरा ए तैय्यबा, अख़लाक और औसाफ ए हमीदा का ज़िक्र होता है, जिसे हर इंसान धर्म के किसी प्रतिबंध के बिना स्वीकार और अपनाने के लिए तैयार रहता और चाहता है, तो सबसे पहली शक्ल जो दिमाग में आती है वह है नैतिकता का उदाहरण, पवित्र पैगंबर हज़रत मुहम्मद मुस्तफा (स.अ.व.व.) से संबंधित है, जिसके लिए अल्लाह तआला ने अपनी पवित्र किताब कुरआन में कहा है: " انک لعلیٰ خلق عظیم" "इन्नका लाअला ख़ुल्किन अज़ीम" निसंदेह आप नैतिकता की महान रचना (स्थान) पर है, अर्थात आप आदाबे क़ुरआनी से सुसज्जित और इलाही नैतिकता से मिले हुए है और क्यो ना हो मकारेमुल अख़लाक़ मे पाया जाने वाला प्रत्येक गुण ईमानदारी और अखंडता, न्याय और निष्पक्षता, क्षमा और दया, नम्रता और अधीनता, धैर्य और सहनशीलता, सखावत और बख़्शिश, बहादुरी और साहस को ख़ुल्के अज़ीम बनाया और आपके अपने अच्छे चरित्र की बदौलत अरब प्रायद्वीप पर मृत और बेजान मानवता जीवित हो गई, ख़ूनी और जानी दुश्मन को पत्थर और कांटो के बदले मे फूलों का गुलदस्ता दिया, नफरत और घृणा की आंधीयो में प्यार और स्नेह का दीपक जलाया, अलगाववाद और दुश्मनी को भाईचारे में बदल दिया, आप (स.अ.व.व.) की कृपा का क़याम यही नहीं हुआ, जब दस हजार की सेना के साथ विजयी महिमा के साथ मक्का पहुंचे। जबकि असहाब प्रतिशोध (बदला) के जज़्बे से पूर्ण "الیوم یوم الملحمۃ" अल यौम यौमिल मलहमा आज प्रतिशोध का दिन है और पिछले अत्याचारों की आग को उनके खून से बुझाने का दिन है का नारा लगा रहे थे। लेकिन मक्का की धरती और आसमान गवाह हैं कि आप (स.अ.व.व.) ने ऐसा कुछ भी नहीं किया, बल्कि रहमतुल आलामीन ने अपनी आग़ोशे रहमत (कृपा के आलंग्न) मे सबको समेट लिया और लोगों के कानों में " لا تثریب علیکم الیوم و اذھبوا انتم الطلقہ" " ला तसरीबा अलैकुमल यौमा वा इज़हबू अंतुमुत्तोलाक़ा" कि जाओ तुम सब आज़ाद हो तुम लोगो से आज किसी प्रकार का कोई प्रतिशोध नही लिया जाएगा की आवाज़े गूंजने लगी यह था मिसदाक़े ख़ुल्क़े अज़ीम का अख़लाक जिसका उदाहरण लाने से मानवता विवश है।
दया और कृपा का यह सिलसिला 2 सफ़र को खत्म हो जाता अगर आप (स.अ.व.व.) के बाद बारह उत्तराधिकारी न होते जो रात के अँधेरे में अपनी पीठ पर रोटियां रख कर गरीबों और मजदूरों की जरूरतों का ख्याल ही नहीं रखा बल्कि कभी-कभी अपना चेहरा छुपा लिया करते थे और कहते थे कि मेरे पास इतना कम है कि मुझे देने में शर्म आती है, अल्लाहु अकबर।
इन बारह उत्तराधिकारियों में से एक हसन इब्न अली (अ.स.) है जिन्हे क्षमा और दया, सखावत और बख़्शिश के सबब करीमे अहलेबैत (अ.स.) कहा जाता है।
इमाम हसन और सख़ावत
आपने अपने 48 साल के जीवन मे, 25 बार पैदल हज किए और दो बार अपना सारा माल अल्लाह के रास्ते में इस तरह वितरित किया कि आधा माल अपने पास रखा और आधा फ़क़ीरो और मिस्कीनो को दे दिया और तीन बार अपनी संपत्ति का आधा भाग गरीबो मे वितरित कर दिया। (अनसाबुल अशराफ़, भाग 3, पेज 9)
जब भी किसी ने आपके असंख्य उपहारों के बारे में सवाल किया,कि आप कभी सवाल करने वाले को महरूम (वंचित) वापस नही करते हैं? तो आप जवाब में कहते थे कि मैं अल्लाह से मांगने वाला हूं, उसने मुझे देने की आदत डाल रखी है और मेने लोगों को देने की आदत डाल रखी है। मुझे डर है कि अगर मै अपनी आदत बदल दूं तो कही अल्लाह भी अपनी आदत ना बदल दे और मुझे भी वंचित कर दे। (नूरुल अब्सार, पेज 123)
इसी तरह, शैख रज़ी-उद-दीन इब्न यूसुफ इब्न मुताहर हिल्ली बताते हैं कि एक आदमी इमाम हसन की सेवा में आया और कहा: ए फ़रजंदे अमीरुल मोमेनीन (अ.स.) मै आपको उस ख़ुदा की सौगंध जिसने आपको असंख्यीय नेमते प्रदान की है, मेरी मदद कीजिए और मुझे दुश्मन के हाथ से बचाइए क्योंकि मेरा दुश्मन अत्याचारी है जो बड़े बूढ़ो का सम्मान और ध्यान नहीं रखता है और छोटों पर दया नही करता। हज़रत उस समय टेक लगाए बैठे थे जब यह सुना तो सीधे होकर बैठ गए और कहने लगे बताओ तुम्हारा दुश्मन कौन है ताकि मैं उससे तुम्हारा बदाल ले सकूँ? उसने कहा: मेरा दुश्मन गरीबी, बेसहारा और परेशान हाली है। इमाम (अ.स.) ने कुछ देर के लिए अपने सर को झुका लिया फिर सर उठाकर अपने ख़ादिम को बुलाया और उससे फ़रमायाः जितना माल तुम्हारे पास मौजूद हो वो ले आओ नौकर पांच हजार दिरहम ले आया। इमाम (अ.स.) ने पूरी संपत्ति इस को देकर फ़रमाया: अब जब भी तुम्हारा शत्रु तुम्हारी ओर मुड़े और तुम पर अत्याचार करे, तो उसकी शिकायत मेरे पास लाओ ताकि मैं उसको दूर कर दूं। (मुंताहुल आमाल, पेज 281)
साथ ही, उन्होंने मांगने का उचित समय भी बताया, "یا ھذا ان المسألۃ لا تحل الا احدیٰ ثلاث:دم مفجع اودین مقرح اوفقر مقدح" " या हाज़ा इन्नल मसअलता ला तोहिल्लो इल्ला एहदस्सलासः दमु मुफ़ज्जेउन औ दैनुन मुकरेहिन औ फ़क़रुन मुकदेहुन" (बिहार अल-अनवर, भाग 43, पेज 323) अए शख्स तीन हालतो मे से कोई एक सामने आए तो हाथ फैलाना उचित है।
1-जान का खतरा हो
2- जान लेवा कर्ज़ हो
3- ऐसी दरिद्रता और कठिनाई हो जो व्यक्ति को झंझोड़ कर रख दे
इमाम हसन और हिल्मो बुरदबारी
निसंदेह जो अल्लाह का प्रतिनिधि होता है उसके साथ रहना आसान हो जाता है, क्योंकि उसका दिल अल्लाह की याद से नरम हो जाता है, और इसी याद के माध्यम से नरम किया जा सकता है, जिसका उदाहरण आपके जीवन में उस समय मिलता है जब एक गुलाम विश्वासघात करता है और आप उसको दंडित करने का इरादा करते हैं तो वह गुलाम कुरान की आयत पढ़ता है "والکاظمین الغیظ" "वल काज़ेमीनल ग़ैज़" ए ग़ुस्से को पी जाने वाले इमाम (अ.स.) तुरंत गुस्से को ज़ब्त करते है तो गुलाम आयत का अगला हिस्सा पढ़ता है "والعافین عن الناس" "वल आफ़ीना अनिन नास" और लोगो को माफ करने वाले आप (अ.स.) फ़रमाते है जा मैंने तुम्हें क्षमा कर दिया उसने आयत के एक और हिस्से को पढ़ा "واللہ یحب المحسنین" "वल्लाहो योहिब्बुल मोहसेनीन" (आले इमरान आयत 132) और खुदा नेकी करने वालो को दोस्त रखता है आपने कहा जा मैं ने तुझे आज़ाद किया और जितना मैं तुझे दिया करता था, उससे दुगुना दूंगा।" (मुनतहल आमाल, पेज 282)
आपकी बुरदबारी इतनी आम थी कि उन्हें हलीम कहा जाता था, यहां तक कि उनके कट्टर दुश्मन मरवान बिन हुकम भी जिसने आपको पैगंबर (स.अ.व.व.) के पास दफन नहीं होने दिया मगर आपके अंतिम संस्कार में शामिल हुआ। जब उससे पूछा गया कि उसने ऐसा क्यों किया? जबकि तूने उन्हे बहुत पीड़ा पहुचाई, तो उसने आप (अ.स.) की बुरदबारी का कलमा पढ़ा और कहा इस व्यक्ति की बुरदबारी पर्वत समान थी। (अनसाबुल अशराफ़, भाग 3, पेज 67)
यह इमाम हसन के कर्मों और सदाचारी नैतिकता और पवित्र पैगंबर के चरित्र का गुण था जिसके माध्यम से वह लोगों को दावते इलाहीया की ओर आमंत्रित करते थे और जिसे देख कर शाम के निवासी ने "اشھد انک خلیفۃ اللہ فی ارضہ، االلہ اعلم حیث یجعل رسالتہ" "अशहदो अन्नका ख़लीफ़ा तुल्लाह फ़ी अरज़ेही, अल्लाहो आअलमो हैयसो यजअलो रिसालता" (इनआम, 2) हम गवाही देते हैं कि आप पृथ्वी पर अल्लाह के खलीफा हैं, अल्लाह ही बेहतर जानता है कि अपनी रिसालत को कहाँ रखे।
बेशक हम सच्चे और हक़ीक़ी प्रेमी और मुस्लमान तभी कहलवा सकते है जब आपकी सीरत का पालन करके, इबादात और विश्वास के साथ - साथ सभी नैतिक मूल्यों की रक्षा करें।