۱۵ تیر ۱۴۰۳ |۲۸ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 5, 2024
Imam

हौज़ा/इमाम ख़ुमैनी (र.ह.) ने इस अज़ीम हुनरमंदी का मुज़ाहिरा किया और यह अज़ीम कारनामा अंजाम दिया कि समाज के अफ़राद को और ख़ास तौर पर नौजवानों को मैदान में उतारा और इन्हें मैदान में बाक़ी रखा।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,इस्लामी क्रांति के पूर्व वरिष्ठ नेता हज़रत इमाम ख़ुमैनी र.ह.को यह ताक़त कहाँ से हासिल हुई?

यह वह नुक्ता है जिसपर ख़ासतौर पर आपकी तवज्जो कराना चाहूँगा और आज यह हमारे और आपके लिए सबक़ है।

इमाम ख़ुमैनी (र.ह.) की शख़्सियत और नारों में भी एक ख़ास कशिश थी, यह कशिश इतनी ताक़तवर थी कि मुख़्तलिफ़ 'अवामी तबक़ों से तअल्लुक़ रखने वाले नौजवान मैदाने अमल में उतर पड़े हालाँकि इस जद्दोजहद की शुरुआत में और जीत के बाद आने वाले दस सालों में जवानों के सामने अलग अलग रुजहानात, नज़रियात और अफ़कार थे। लेफ़्ट विंग और कैपिटलिज़्म के रुजहानात थे।

इसके अलावा आम ज़िंदगी की कशिश भी नौजवानों के सामने मौजूद थी। नौजवान इन रास्तों का भी इंतेख़ाब कर सकते थे लेकिन नौजवानों ने इमाम ख़ुमैनी (र) के रास्ते का इंतेख़ाब किया। तहरीक, जद्दोजहद और इंक़िलाब का रास्ता! क्यों? इसी मक़्नातीसियत (Dynamism) की वजह से जो इमाम ख़ुमैनी (र.ह.) के अंदर थी।

इमाम ख़ुमैनी (र) मुस्तहकम और ताक़तवर शख़्सियत के मालिक थे। दुश्वारियों का सामना करने वाले, अलग सा जज़्बा रखने वाले इंसान थे। साफ़ साफ़ बात कहने वाले और सच्चाई का पैकर थे। हर सुनने वाला उनकी बातों में सच्चाई को महसूस कर सकता था। आपका अल्लाह पर भरोसा और तवक्कुल आपकी बातों में बहुत ज़ियादा नुमायाँ था। इनकी "कहनी और करनी" अल्लाह पर भरोसा और तवक्कुल पर टिकी हुई उम्मीद थी। यह थी इमाम ख़ुमैनी (र) की ख़ुसूसियत।

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