۱۵ تیر ۱۴۰۳ |۲۸ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 5, 2024
नेता

हौज़ा/अंतर्राष्ट्रीय मामलों में सुप्रीम लीडर के सलाहकार डाक्टर अली अकबर विलायती का इंटरव्यू

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,अंतर्राष्ट्रीय मामलों में सुप्रीम लीडर के सलाहकार डाक्टर अली अकबर विलायती का इंटरव्यू:
सवालःइंक़ेलाबे इस्लामी के नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनेई ने रूस के राष्ट्रपति व्लादमीर पूतिन से मुलाक़ात में साफ़ लफ़्ज़ों में पश्चिम एशिया में अमरीका और पश्चिम की नीतियों के कमज़ोर पड़ जाने की बात कही, क्षेत्र में ख़ास तौर पर सीरिया, इराक़, लेबनान और फ़िलिस्तीन में अमरीका और पश्चिम के कमज़ोर होने की निशानी और उनकी ताक़त कम होने की दलील क्या हैं?
जवाबः पिछले कुछ साल में, हम क्षेत्र में अमरीका की ख़तरनाक नीतियों को नाकाम होता देख रहे हैं; ऐसी नीतियां जिन्हें क्षेत्र में थोपने के लिए बड़ा पैसा ख़र्च किया गया, लेकिन क्षेत्र की जनता के प्रतिरोध के कारण इसमें कामयाबी नहीं मिली। इसके कुछ नमूने हम देख सकते हैं।
1- अफ़ग़ानिस्तान से तालेबान और अलक़ायदा को हटाने के बहाने इस मुल्क पर बीस साल तक क़ब्ज़े के बाद अमरीका का अफ़ग़ानिस्तान से निकलना और फिर इस मुल्क की बागडोर तालेबान के हाथ में पहुंच जाना।
2- इराक़ से अमरीकियों को निकाल बाहर करने के प्लान पर इराक़ की जनता के प्रतिनिधियों की तरफ़ से संजीदगी से काम जारी है। अमरीका ने, सद्दाम पर हमले के बाद इराक़ में उसके अपराधों की जगह ले ली और उसकी नीयत इस मुल्क पर हमेशा क़ब्ज़ा बनाए रखने की है; यह ऐसी साज़िश है जो इंशाअल्लाह इराक़ के मुजाहिद अवाम की कोशिशों से नाकाम होगी।
3- ग़ज़्ज़ा और यमन में अमरीका के क्षेत्रीय घटकों की हार और मायूसी। इस्राईल, ग़ज़्ज़ा के अवाम के प्रतिरोध के सामने पीछे हटने पर मजबूर होता है जबकि सिर से पैर तक वह अमरीकी हथियारों से लैस है और दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले इलाक़े में 51 दिन लगातार हमले के बाद भी कुछ हासिल नहीं कर पाया। इसके अलावा एक मुद्दत के बाद अतिग्रहित इलाक़ों में भी प्रोटेस्ट की लहर शुरू होती है। दूसरी ओर सऊदी, इस्राईली, अमरीकी गठजोड़, यमन जंग में क़रीब एक दशक तक इस मुल्क में ख़ून बहाने और हमले करने के बाद भी कुछ हासिल नहीं कर पाया। जब अमरीका के घटक इस क्षेत्र में फंस गए हैं, तो हक़ीक़त में यह अमरीकी नीतियां हैं जो फ़ेल हो गयी हैं।
4- सबसे अहम सीरिया विवाद है, जिसमें पश्चिम और क्षेत्र के कुछ नासमझ मुल्क बश्शार असद को गिराने के लिए पूरी ताक़त से मैदान में आए। इसका लक्ष्य सीरिया को लीबिया की तरह का मुल्क बनाकर उसे प्रतिरोध के मोर्चे से बाहर निकालना और इस तरह प्रतिरोध के मोर्चे को भारी नुक़सान पहुंचाना था, लेकिन, सीरिया के अवाम और सरकार के प्रतिरोध व क़ुर्बनियों और साथ में पवित्र रौज़ों की रक्षा करने वाले वीरों की क़ुर्बानी से उनका सपना चकनाचूर हो गया और अब वे ख़ुद को बचाने का रास्ता ढूंढ रहे हैं।
सवालः अमरीकियों को पूर्वी फ़ोरात के इलाक़े से निकाल बाहर करना एक और विषय था जिस पर सुप्रीम लीडर ने बहुत ताकीद की, उनकी इस ताकीद की क्या वजह है?
जवाबः जब बात पूर्वी फ़ोरात के इलाक़े की होती है तो इसका संबंध सीरिया की भूमि के बहुत ही अहम इलाक़े से है, क्योंकि सीरिया की भूमि का यह हिस्सा, इस मुल्क की ज़मीन का सबसे अहम व बड़ा हिस्सा है, जहाँ सीरिया के अहम कृषि उत्पादों की खेती होती है। बताया जाता है कि सीरिया के 80 फ़ीसद कृषि उत्पादों की सप्लाई यहीं से होती है। इससे भी अहम बात यह है कि इस इलाक़े में ऑयल फ़ील्ड हैं जिससे हर रोज़ क़रीब 3 लाख बैरल तेल निकाला और एक्सपोर्ट किया जाता है। लेकिन, अमरीकी बड़ी बेग़ैरती से इस इलाक़े में मौजूद हैं, जिससे न सिर्फ़ यह कि उन्होंने सीरिया के लिए उसके स्ट्रैटेजिक इलाक़े तक पहुंच को सीमित कर दिया है, बल्कि हर दिन तेल के भंडारों की चोरी कर सीरिया को लूट रहे हैं। सुप्रीम लीडर की ताकीद इसी बात पर है, इसीलिए वह पूर्वी फ़ोरात के आज़ाद होने पर बल दे रहे हैं तीकि सीरिया के स्रोत बटने न पाएं।
अलबत्ता यह बात भी अहम है कि किसी भी मुल्क में दुश्मन की मौजूदगी जिस शक्ल में भी हो, निंदनीय है और इंशाअल्लाह हम सब देखेंगे कि सीरियाई अवाम और सरकार के संघर्ष से अमरीका इस इलाक़े से निकलने पर मजबूर होगा।
सवालः सुप्रीम लीडर ने यूक्रेन के मामले में साफ़ तौर पर कहा कि अगर रूस पहल न करता तो सामने वाला पक्ष जंग की पहल करता और इस संबंध में उन्होंने नेटो के विस्तारवाद की ओर से सचेत किया। मौजूदा दौर में अंतर्राष्ट्रीय हालात और ऐक्शन व रिऐक्शन के उसूल के मद्देनज़र, इस नज़रिये की सुरक्षा व राजनीति की नज़र से तसदीक़ करने वाले साक्ष्य क्या हैं? नैटो अपने प्रभाव व विस्तारवाद को फैलाने के लिए किस योजना पर काम कर रहा है?
इस विषय की समीक्षा के लिए सबसे पहले युक्रेन विवाद की समीक्षा करनी चाहिए। पूर्व सोवियत संघ के टूटने के बाद, नेटो और रूस में एक समझौता यह हुआ था कि इस संघ से अलग होने वाले मुल्क नेटो में शामिल नहीं होंगे तथा पूर्व सोवियत संघ और नेटो के बीच मौजूद क्षेत्र का स्टेटस-को बना रहेगा; इस समझौते का नेटो ने सम्मान नहीं किया और स्थिति यहाँ तक पहुंच गयी कि हर दिन बाल्टिक सी के ऊपर और दूसरे पड़ोसी देशों के तटवर्ती इलाक़ों के ऊपर रूस और नेटो की वायु सेना के आमने सामने होने की ख़बरें सुनने में आती थीं। इसके अलावा युक्रेन के भीतरी मामलों में योरोप और अमरीका के हस्तक्षेप की वजह से अनेक विद्रोह हुए यहाँ तक कि वहाँ पश्चिम की पिट्ठू सरकार सत्ता में आ गयी और साथ ही युक्रेन की ओर से नेटो की सदस्यता की दर्ख़ास्त का अमरीका और योरोप ने समर्थन कर दिया। यह ऐसी चीज़ थी जो रूस-नेटो के बीच समझौतो से सीधा विरोधाभास रखती थी। ख़ैर, रूस अपनी सीमाओं पर किसी भी पड़ोसी देश की नेटो में सदस्यता को बार बार अपनी लाल रेखा बता चुका था, यह ऐसी चिंता है कि ख़ुद अमरीका अपनी सीमाओं के संबंध में इससे घिरा हुआ है और हम देख रहे हैं कि वह इस संबंध में करेबियन सी के देशों पर दबाव डाल रहा है। अलबत्ता नेटो फ़ोर्सेज़ रूस से पहले ही जंग की तैयारी कर रही थी। तैयारियां और मौजूद निशानियां इस बात का इशारा कर रही थीं कि नेटो पहले ही जंग की तैयारी में था और क्रीमिया पर हमला करने वाला था ताकि रूसी सरकार की ओर से किसी तरह की ढिलाई की स्थिति में पहले क्रीमिया को अलग करे और फिर युक्रेन को नेटो में शामिल कर पूर्वी योरोप में रूस को कमज़ोर करने वाली कड़ी को पूरा कर ले। हर जंग से पहले कुछ तैयारियां होती हैं और नेटो रूस से पहले ही जंग के लिए तैयार था, लेकिन रूस की तरफ़ से पहल की वजह से न सिर्फ़ यह कि नेटो और अमरीका के बाद के क़दम नहीं उठ सके बल्कि अमरीका और योरोप के लिए ऊर्जा की सप्लाई सबसे बड़ी चुनौती बन गयी।

सवालः तुर्की के राष्ट्रपति की सुप्रीम लीडर से मुलाक़ात में, उन्होंने साफ़ तौर पर कहा कि उत्तरी सीरिया पर फ़ौजी हमला क्षेत्र के नुक़सान में है और इससे सीरियाई सरकार से जिस राजनैतिक क़दम की उम्मीद की जा रही थी वह भी पूरी नहीं होगा। इस बयान की किस तरह व्याख्या हो सकती है?
जवाबः सीरिया के हालिया विवाद के संबंध में तुर्की की नीति फ़्री सीरियन आर्मी की शक्ल में आतंकियों को हथियारों से लैस करने की थी जिससे न सिर्फ़ यह कि तुर्की का मक़सद पूरा नहीं हुआ बल्कि सीरिया के संबंध में उसकी नीतियां भी फ़ेल हो गयीं। दूसरी तरफ़ उत्तरी सीरिया में हथियारों से लैस कुर्दों की मौजूदगी तुर्की के लिए रुकावट बन गयी क्योंकि तुर्की कुर्द फ़ोर्स को हमेशा दुश्मन की नज़र से देखकर उसके ख़िलाफ़ नीतियां अपनाता था और उसने इस मुश्किल के हल के लिए उत्तरी सीरिया के संबंध में दो उपाय सोचे थे और उसी के बारे में अपने मीडिया में चर्चा करता था; पहला हल सीरिया की भूमि में 30 किलोमीटर अंदर तक घुस जाना तथा तुर्की की सरहद और बफ़र ज़ोन को कुर्दों से ख़ाली इलाक़ा बनाने पर आधारित था और दूसरा हल, 20 लाख कुर्दों को शरणार्थी कैंपों में बसाने पर आधारित था ताकि इस तरह तुर्की को नुक़सान पहुंचने की संभावना कम हो जाए।
पहले हल के संबंध में जो चीज़ रुकावट है वह सीरिया की संप्रभुता का विषय है जो इस संबंध में स्वाभाविक रूप से सीरियाई फ़ौज के प्रतिरोध व मुक़ाबले की शक्ल में सामने आएगा और इससे न सिर्फ़ यह कि क्षेत्र में जंग की आग नहीं बुझेगी बल्कि और भड़क जाएगी। दूसरे हल के संबंध में जो चीज़ रुकावट है वह मानवाधिकार और नस्ली सफ़ाये के साथ साथ जबरन पलायन का विषय है कि जब हम क्षेत्र ख़ास तौर पर कॉकेशिया इलाक़े के इतिहास को देखते हैं तो इस तरह के क़दम की निंदा में साफ़ तौर पर बहुत से दस्तावेज़ मौजूद हैं।
इन सब बातों के मद्देनज़र इस संयुक्त चिंता यानी उत्तरी सीरिया के इलाक़ों में आतंकियों की मौजूदगी से छुटकारा पाने का सबसे अच्छा हल, सीरिया की संप्रभुता के सम्मान के साथ क्षेत्र के देशों के बीच बातचीत है और इस रास्ते में आतंकियों के बीच किसी तरह का फ़र्क़ न किया जाए ताकि क्षेत्र ऐसे तत्वों के वजूद से पाक हो जाए जिनकी वजह से अशांति है।
सवालः ईरान, रूस और चीन के बीच कम मुद्दत और लंबी मुद्दत के सहयोग का क्षितिज कैसा देखते हैं, ख़ास तौर पर इस बात के मद्देनज़र कि दोनों ही मुल्कों को दिन ब दिन सहयोग बढ़ाने की ज़रूरत है?
जवाबः जैसा कि सुप्रीम लीडर के ज़रिए यह बात बार बार बयान की गई और जनाब पूतिन ने भी इस बात को माना है कि ईरान-रूस के बीच संबंधों में विस्तार, रणनैतिक स्तर तक पहुंचने के लायक़ है और दोनों मुल्कों के कमीशन में भी संबंधों में विस्तार के लिए इस तरह का तसव्वुर पेश किया गया है।
यह बात मद्देनज़र रहनी चाहिए कि मुल्कों के बीच संबंधों की बुनियाद संयुक्त हित होते हैं और ईरान-रूस के बीच संयुक्त हित का दायरा बहुत बड़े पैमाने तक हो सकता है। न सिर्फ़ यह कि दोनों मुल्क साइंस और टेक्नॉलोजी रखते हैं, बल्कि अच्छे संसाधन से भी मालामाल हैं; इसके अलावा दोनों को पश्चिम की अन्यायपूर्ण पाबंदियों का सामना है और यही चीज़ संयुक्त सहयोग की पृष्ठिभूमि बनाती है और उम्मीद है कि कूटनैतिक तंत्र की लगातार कोशिश से पूरब की ओर निगाह की रणनीति के फ़्रेमवर्क में यह लक्ष्य हासिल होगा।
व्लादिमीर पूतिन के ईरान के हालिया सफ़र में अनेक मैदानों में सहयोग के समझौते का विषय कुछ हद तक व्यवहारिक हुआ है। इस बात को स्पष्ट करने के लिए एक मिसाल काफ़ी रहेगी। ईरान के दक्षिणी भाग में बड़े गैस फ़ील्ड हैं और अब तक अपने बल पर इससे फ़ायदा उठाने में कामयाब रहा है, लेकिन रूस के पास गाज़प्रोम नाम की तेल और गैस की फ़ील्ड में टेक्नॉलोजी से लैस एक तजुर्बेकार कंपनी है। रूस की इस कंपनी के साथ सहयोग से ईरान इन क्षेत्रों से ज़्यादा से ज़्यादा ऊर्जा निकाल सकेगा; यह ऐसा काम है जो अमरीका के जेसीपीओए से निकलने और पश्चिमी कंपनियों की वादाख़िलाफ़ी की वजह से रुका हुआ है।

सवालः कुछ टीकाकार अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडेन के क्षेत्र के दौरे ख़ास तौर पर सऊदी अरब के दौरे और उसके नतीजे की पूतिन के ईरान के दौरे से तुलना में, यह मान रहे हैं कि अमरीका के पुराने घटकों में भी अमरीका के प्रति भरोसे में कमी आयी है, इस बारे में आपका क्या ख़्याल है?
कुछ दशकों से क्षेत्र अमरीका की ग़लत नीतियों का मैदान बना रहा और अमरीका के घटक मुल्क इन नीतियों को लागू करने का ख़र्च उठाते रहे। इस बीच इन मुल्कों को न सिर्फ़ यह कि नाकामी और निरर्थक ख़र्च के सिवा कुछ हाथ नहीं आया बल्कि, अमरीकी राष्ट्रपतियों के घमंड भरे बयान से भी इन मुल्कों का राष्ट्रीय गौरव निशाना बना यहाँ तक कि अमरीकी राष्ट्रपति कहते हैं कि सऊदी अरब हमारे समर्थन के बिना कुछ घंटे भी बाक़ी नहीं रह सकता और ट्रम्प सऊदी अरब को दुधारू गाय के रूप में ख़िताब करते हैं और ये देश अमरीकी मांगों को अपने राष्ट्र की जेब से पूरा करते हैं। हाल में अमरीका ने युक्रेन जंग की वजह से ऊर्जा की मुश्किल को दूर करने के लिए सऊदी अरब से तेल का उत्पादन बढ़ाने की सिफ़ारिश की है ताकि दुनिया भर में तेल की क़ीमत नीचे आए और सऊदी अरब के पास इसे क़ुबूल करने के सिवा कोई चारा नहीं है।
इस चीज़ की हालिया आस्ताना बैठक से तुलना कीजिए कि क्षेत्र के तीन स्वाधीन मुल्क अपने राष्ट्रीय हितों के मद्देनज़र क्षेत्र की मुश्किल को हल करने के लिए आपस में सहयोग कर रहे हैं और इंशाअल्लाह इसका नतीजा भी पाएंगे। यह चीज़ बहुत अहमियत रखती है। अच्छी बात यह है कि धीरे-धीरे क्षेत्र के मुल्क ख़ास तौर पर फ़ार्स की खाड़ी के तटवर्ती मुल्क अमरीका के साथ सहयोग के नुक़सानदेह माहौल को समझ रहे हैं और वे इस्लामी गणराज्य के साथ संबंधों को फिर से परिभाषित करने की कोशिश कर रहे हैं और यह क्षेत्र के मुल्कों के संबंधों में निर्णायक बिन्दु साबित होगा; क्योंकि हम बार बार इस बिन्दु पर बल देते रहे हैं कि क्षेत्र की मुश्किलों का हल विदेशियों की मौजूदगी के बिना क्षेत्रीय देशों के सहयोग से ही मुमकिन है।

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