हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने नए हिजरी शम्सी साल 1401 (21/3/2022-20/3/2023) के आग़ाज़ पर देश को संबोधित किया। टीवी चैनलों से लाइव टेलीकास्ट होने वाली इस पालीसी स्पीच में सुप्रीम लीडर ने अर्थ व्यवस्था के संदर्भ में बेहद महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डाल और साथ ही क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय हालात का भी जायज़ा लिया।
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
सारी तारीफ़ें कायनात के परवरदिगार के लिए हैं। दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार हज़रत मुहम्मद और उनके पाकीज़ा वंशजों ख़ास तौर पर धरती में अल्लाह की तरफ़ से बाक़ी रखी गई हस्ती इमाम महदी पर।
आप सब को नौरोज़ की मुबारक बाद पेश करता हूं और नये साल और नयी सदी की शुरुआत में अपनी तक़रीर को इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम के नाम से संवारना चाहता हूं जो खुद दिलों की बहार और ज़माने की ताज़गी हैं।
_*सलाम हो आप पर हे आसमान से बरसने वाले इल्म, हे व्यापक मदद और रहमत, हे सच्चे वादे! आप पर सलाम हो जब आप खड़े हों, आप पर सलाम हो जब आप बैठें, आप पर सलाम हो जब आप पढ़ें और बयान करें, सलाम हो आप पर जब आप नमाज़ अदा करें और क़ुनूत पढ़ें, सलाम हो आप पर जब आप रुकू करें, सजदे में जाएं। सलाम हो आप पर जब आप ला इलाहा इल्लल्लाह पढ़ें और तकबीर कहें। सलाम हो आप पर जब आप अल्लाह का गुणगान करें और मग़फ़ेरत की दुआ मांगें। (1)
यह तीसरा नौरोज़ है कि जब हम इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के नूरानी रौज़े और अक़ीदत में डूबे उनके ज़ायरों से दूर हैं, इस लिए हम यहीं से उन्हें सलाम करते हैं,
हे परवरदिगार दुरूद भेज अपने वली हज़रत अली इब्ने मूसा अलरेज़ा पर, इतनी तादाद में जिसका इल्म केवल तुझे है। वह दुरूद जो हमेशा रहे, उस समय तक जब तक तेरी कायनात और तेरी सलतनत क़ायम है। हे अल्लाह अपने वली अली इब्ने मूसा अलरेज़ा अलैहिस्सलाम पर मेरा सलाम भेज उस संख्या में जिसका तुझे इल्म है, हमेशा रहने वाला सलाम जो उस समय तक रहे जब तक तेरी महानता, वैभव और बड़ाई क़ायम है।
ईरान के नौरोज़, नये साल और बहार के बारे में कुछ बातें हैं जिन्हें हम पहले भी कह चुके हैं। एक बात जो आज मैं कहना चाहता हूं वह इस राष्ट्रीय जश्न में, खुदा की याद, इबादत, दुआ और रूहानियत की झलक है। यह चीज़ मेरे ख़याल में दूसरे मुल्कों में नये साल के जश्न में बहुत कम देखने में मिलेगी। हालांकि मुझे इस बारे में बहुत मालूमात नहीं है। लोग इस क़ौमी त्योहार को दुआ, इबादत और रूहानी कामों के साथ मनाते हैं जिसकी मिसाल शायद बहुत कम मिले। कल रात, जब नया साल शुरु हो रहा था तो हरेक, सब लोग, बूढ़े, जवान, मशहूर लोग, साइंटिस्ट, अलग-अलग मैदानों के लोग, मिसाइल बनाने वाले, नैनो तकनीक के माहिर, बायोटेक्नालॉजी के एक्सपर्ट से लेकर दूरदराज़ के गांवों में लोगों की ख़िदमत के लिए अपने घर वालों से दूर जाने वाले नौजवानों तक सब ने नये साल की शुरुआत इस दुआ से की कि ऐ हालात बदलने वाले! मतलब सब ने अल्लाह की याद से नया साल शुरु किया और अपने दिलों को ख़ुदा की याद से पाकीज़ा बनाया। यह एक बात है। दूसरी बात नौरोज़ के सिलसिले में ईरानियों के रूजहान से मुताल्लिक़ है क्योंकि उन्होंने बहुत सोच समझ कर बहार को नये साल की शुरुआत क़रार दिया है। बहार, उम्मीद की निशानी है और उम्मीद का पैग़ाम देती है। बहार इन्सान से यह कहती है कि पतझड़ का मौसम यक़ीनी तौर पर जाने वाला है और ताज़गी और नयापन यक़ीनी तौर पर वापस आयेगा, यह बहार की ख़ूबियां हैं।
यह बहार लोगों को पैग़ाम देती है, ताज़गी का पैग़ाम, नई ज़िंदगी का पैग़ाम। इस साल तो यह उम्मीद दोगुना थी क्योंकि इस साल बहार, पंद्रह शाबान के साथ आयी यानि तारीख़ की सब से बड़ी उम्मीद और इन्सानों की सब से बड़ी उम्मीद के पैदा होने के दिन के मौक़े पर बहार आयी। उम्मीद हर काम और हर तरक़्क़ी की शुरुआत होती है।
मैं यहां पर इस मौक़े से फ़ायदा उठाते हुए यह कहना चाहता हूं कि जो लोग आम लोगों से बात करते हैं, पैग़ाम देते हैं, लिखते हैं उन सब को आम लोगों में उम्मीद पैदा करने की कोशिश करना चाहिए। उम्मीद आगे बढ़ने की और तरक़्क़ी की अहम वजह होती है, शुक्र है कि ख़ुदा ने ईरानी क़ौम के लिए उम्मीद की बहुत सी वजहें रखी हैं। ख़ुदा के शुक्र से हमारी क़ौम और हमारे मुल्क में उम्मीद की वजहें कम नहीं हैं। दुश्मनों को ईरानी क़ौम में जो उम्मीद है उससे ग़ुस्सा होने दीजिए! अल्लाह ने चाहा तो ईरानियों के दिलों में हर दिन नई उम्मीद पैदा होगी। आज हम पहली बात इकोनॉमी की करेंगे जैसा कि मैंने इस साल के पैग़ाम और नारे का भी कल रात ज़िक्र किया है। आज इस बारे में थोड़ी बात करना चाहूंगा। दूसरी बातें भी हैं जो अगर वक़्त रहा तो की जाएंगी।
यह जो नये साल की शुरुआत में हम इकोनॉमी की बात कर रहे हैं तो इसकी पहली वजह तो यह है कि इकोनॉमी बहुत अहम है यानि अगर हमारे मुल्क में इन्साफ़ के साथ इकोनॉमी में तरक्क़ी होने लगे तो तरक़्क़ी के सभी मैदानों में काम होने लगेगा और मुल्क अस्ली तरक़्क़ी करने लगेगा मतलब इकोनॉमी का यह रोल है। यह तो पहली बात। दूसरी बात यह है कि हमें पिछले दस बरसों के दौरान इकोनॉमी के मैदान में बहुत से चैलेंजों का सामना रहा है जिन्हें किसी न किसी तरह ख़त्म करने की ज़रूरत है। इस लिए इकोनॉमी के सिलसिले में सही सोच होना चाहिए और सही तौर पर काम करना और सही तरीके से आगे बढ़ना चाहिए ताकि इस मैदान में हमारे मुल्क के लोगों को चैन व सुकून मिल सके। इस बुनियाद पर हम इकोनॉमी की बात करते हैं। इकोनॉमी में भी सब से अहम चीज़ मुल्क की पैदावार है जिसके बारे में पिछले तीन चार बरसों में कुछ बातें बयान की गयी हैं और मैंने बार-बार पैदावार के मुद्दे को उठाया है। यक़ीनी तौर पर हालात के हिसाब से ज़िम्मेदारों और सरकारों ने इस सिलसिले में काम भी किये हैं। बहुत से काम किये हैं, बहुत कोशिश की है लेकिन आज भी हमारी नज़र में मुल्क के ज़िम्मेदारों के सामने बल्कि मुल्क चलाने वाले सभी लोगों के सामने आज भी सब से अहम मुद्दा, यही इकोनॉमी है। अच्छे रुझान देख कर दिल खुश हो जाता है। मतलब अगर यही जज़्बा रहा, लोगों में अगर यही जज्ज़ा रहा और लोग मैदान में इसी तरह से इन्शाअल्लाह डटे रहे तो यह दिल को खुश करने वाली बात है और इस से इन्सान के दिल में उम्मीद की किरन और तेज़ होती है।
यहां पर मैं एक और बात कह दूं और वह यह कि हम इकोनॉमी के मैदान में जो कुछ कहते हैं, जो मांग करते हैं वह ज़्यादातर मुल्क के ओहदेदारों से होती है। ज़्यादातर सरकार से। कुछ चीज़ों की मांग पार्लियामेंट से होती हैं और कुछ न्यापालिक से भी और कुछ उनसे मुताल्लिक संस्थाओं से। आम तौर पर मैं इन्ही संस्थाओं के सामने मांग रखता हूं। क्योंकि यह सब मुद्दे इन्ही से मुताल्लिक हैं जिन्हें मैं आम लोगों के बीच उठाता हूं। ताकि अवाम मुल्क की इकोनॉमी और पालिटिक्स से जुड़ी बातों को समझें और जानें। मेरी मांगों को भी सुनें और उन ओहदेदारों का साथ दें उनकी मदद करें जो इन मांगों को पूरा करते हैं। वैसे कुछ ज़िम्मेदारियां आम लोगों की भी होती हैं और आज जब मैं नॉलेज बेस्ड कपंनियों की बात करुंगा तो अच्छी तरह से यह बात सामने आ जाएगी कि आम लोगों के कांधों पर कौन सी ज़िम्मेदारियां हैं, जिन्हें खुद अवाम ख़ासकर नौजवानों को पूरा करना चाहिए। यह जो मैं आम लोगों में यह बात कह रहा हूं तो हो सकता है कि इसकी वजह से सरकारी ओहदेदारों की तरफ़ से भी उन्हें ज़्यादा मदद मिले।
जी तो आज मेरा कहना यह है कि मुल्क की इकोनॉमी में तरक्क़ी के लिए, मुल्क की इकोनॉमी के मैदान में सुधार के लिए यक़ीनी तौर पर हमें नॉलेज बेस्ड इकोनॉमी की तरफ़ बढ़ना होगा। यही हमारी आज की बुनियादी बात है। नॉलेज बेस्ड इकोनॉमी क्या है? यानी यह कि माडर्न साइंस और टेक्नालॉजी बहुत ज़्यादा और अपना पूरा रोल अदा करे वह भी पैदावार के सभी मैदानों में। सभी मतलब वाक़ई सभी मैदानों में, यहां तक कि किस चीज़ की पैदावार हो इस फ़ैसले में भी माडर्न सांइस और टेक्नालॉजी का इस्तेमाल हो। क्योंकि पैदावार के मैदान में यह ज़रूरी नहीं है कि सारे काम इंसान अपने हाथ से करे। किस चीज़ की पैदावार की जाए यह फ़ैसला भी साइंस और सूझ बूझ की बुनियाद पर किया जाना चाहिए। नॉलेज बेस्ड इकोनॉमी का यह मतलब है यानी वह हर मैदान में रोल अदा करे। अगर हम इस पॉलीसी को लागू कर लें और मुल्क की इकोनॉमी की बुनियाद साइंस को बनाएं और नॉलेज बेस्ड कंपनियों की तादाद बढ़ा लें तो मैं कह रहा हूं कि इस से मुल्क को, मुल्क की इकोनॉमी को बहुत ज़्यादा फ़ायदा होगा और इससे पैदावार की लागत में भी कमी आएगी यानी नॉलेज बेस्ड इकोनॉमी, पैदावार के ख़र्चे में कमी की वजह बन जाएगी और फ़ायदा बढ़ेगा क्योंकि हमारी एक प्राब्लम, कम फ़यदा है। इस से पैदावार की क्वालिटी भी बढ़ेगी और बेहतर होगी जिससे हमारे मुल्क में बनी चीज़ें दूसरे मुल्कों में बने उत्पादों का मुकाबला कर सकेंगी। यानी हम इन्टरनेश्नल बाज़ार में भी अपनी इन चीज़ों को पेश कर सकेंगे और मुल्क के अंदर भी। यानी मुल्क के अंदर भी जब सामानों की क्वालिटी बढ़ेगी, तो अगर हम कस्टम ड्यूटी भी बहुत ज़्यादा न बढ़ाएं और इम्पोर्ट ज़्यादा होने लगे तब भी अगर मुल्क का सामान ज़्यादा अच्छा होगा, सस्ता होगा, तो यक़ीनी तौर पर लोग उसे ही लेंगे। नॉलेज बेस्ड कंपनियों की मदद से की जाने वाली पैदावार की यह खूबियां हैं।
मैं अगर इस सिलसिले में मिसाल देना चाहूं तो खेती बाड़ी की मिसाल दूंगा। क्योंकि अफ़सोस की बात यह है कि हमारे मुल्क में खेती बाड़ी का मैदान, नॉलेज बेस्ड कंपनियों की पहुंच से इंडस्ट्री और सर्विसेज़ के मुक़ाबले में थोड़ा दूर है। अगर हम खेती बाड़ी के मैदान में नॉलेज बेस्ड कपंनियों की तादाद बढ़ा लें और खेती के कामों में भी साइंस का भरपूर इस्तेमाल करें तो हम बीज के सुधार में जो खेती बाड़ी के लिए बहुत अहम है या फ़सल उगाने में, या फिर नये तरीकों से सिंचाई में, खेती के नये नये तरीक़ों में, या पानी और मिट्टी के बेहतर इस्तेमाल में जैसा कि हम पहले भी कह चुके हैं (2) कि मिट्टी और पानी बहुत अहम हैं, नॉलेज बेस्ड कंपनियों का रोल बढ़ा दें तो इस से फ़ायदा बढ़ जाएगा और इन सारे मैदानों में सुधार आएगा। अगर हम एग्रीकल्चर में इस तरह से तरक़्क़ी कर लेंगे और बड़े पैमाने पर बदलाव लाने में कामयाब हो जाएंगे तो इससे पहली बात तो यह कि मुल्क में फ़ूड सेक्युरिटी हो जाएगी। यानी मुल्क में खाने पीने की चीज़ों का कोई मसला नहीं होगा और इस बारे में कोई फ़िक्र नहीं रह जाएगी। दूसरी बात यह कि किसानों की आमदनी बढ़ जाएगी। यह बड़ी अच्छी बात है कि हमारे मुल्क के किसानों की आमदनी बढ़े जिससे किसानों को हौसला मिले और वह अपना काम शौक़ से जारी रखें। फ़सल बहुत अहम और क़ीमती होती है। इसी तरह हम पानी की कमी के मसले को भी ख़त्म कर सकते हैं। हमारे मुल्क में जैसा कि कहा जाता है हालांकि इस सिलसिले में मेरी अपनी राय भी है लेकिन जैसा कि कहा जाता है कि हमारे मुल्क में पानी की कमी है तो अगर खेती बाड़ी, नॉलेज बेस्ड हो जाए तो पानी की कमी की प्राब्लम भी ख़त्म हो जाएगी। यह तो एग्रीकल्चर की बात थी जिसकी मैंने मिसाल दी। लेकिन दूसरे भी मैदानों में चाहे वह पैदावार का मैदान हो या सर्विसेज़ का, सब जगह इसी तरह की बरकत है यानि पैदावार बढ़ जाती है, क्वालिटी बेहतर होती है, लागत कम हो जाती है। दरअस्ल, पैदावार को नॉलेज बेस्ड करने से काम धाम में तरक़्क़ी होती है और यह बहुत अहम चीज़ है जिसे बहुत संवेदनशील और बुनियादी चीज़ कहा जाता है। जैसा कि हम ने बताया हमारे मुल्क का एक मसला, फ़ायदे में कमी है। यानि जो लागत हम लगाते हैं उसके हिसाब से हम फ़ायदा नहीं उठा पाते, दूसरे मैदानों में भी यही हाल है। हमारे मुल्क में फ़ायदा कम होता है। मैंने कुछ बरस पहले भी मशहद में नये साल की तक़रीर में एनर्जी के बारे में कहा था (3) कि हम जितनी बिजली इस्तेमाल करते हैं वह सही नहीं है। दुनिया में बिजली के इस्तेमाल का औसत हम से बेहतर है और सही इस्तेमाल के सिलसिले में हम पीछे हैं। दूसरे मैदानों में भी यही हाल है। अगर हम नॉलेज बेस्ड पैदावार की तरफ़ बढ़ेंगे तो इकोनॉमी का यह अहम मसला भी ख़त्म हो जाएगा।
पैदावार को नॉलेज बेस्ड करने के लिए बहुत सी तकनीकी बारीकियां हैं और मैं इस लाइन का एक्पर्ट नहीं हूं। बेशक मेरे पास कुछ मालूमात हैं लेकिन यह ज़रूरी नहीं है कि उन सब का ज़िक्र यहां सब के सामने किया जाए। यह बातें, इस लाइन के ज़िम्मेदारों को, इसी मैदान के एक्सपर्ट लोगों के बीच करना चाहिए और फिर उसके हिसाब से काम करना चाहिए। ताकि यह मसला बख़ूबी हल हो जाए। मैं बस इतनी सी बात कहना चाहता हूं कि इकोनॉमी में इन्साफ़ से तरक्क़ी, मुल्क में ग़रीबी को दूर करना और लोगों की आर्थिक हैसियत में फ़र्क को ख़त्म करना सिर्फ़ पैदावार को बढ़ावा देकर ही मुमकिन है। अगर हम पैदावार बढ़ाने में कामयाब हुए जो इन्ही नॉलेज बेस्ड कंपनियों की मदद से मुमकिन है, तो इन्शाअल्लाह हमारा यह बड़ा मक़सद भी पूरा हो जाएगा। इस सिलसिले में दो ज़रूरी बातें भी कहना हैं जो इन्ही नॉलेज बेस्ड कंपनियों के बारे में हैं। एक बात तो यह है कि हमारे मुल्क में नॉलेज बेस्ड कंपनियां तो हैं मगर उनकी तादाद ज़्यादा होना चाहिए। दूसरी बात यह है कि हम यह काम कर सकते हैं। इस वक़्त हमारे मुल्क में सात हज़ार से कम, सात हज़ार से थोड़ा कम नॉलेज बेस्ड कपंनियां हैं। लगभग छह हज़ार छह सौ या सात सौ नॉलेज बेस्ड कंपनियां मुल्क में हैं जिनमें से लगभग साढ़े चार हज़ार कपंनियां, पैदावार के लिए हैं और बाकी सर्विसेज़ के मैदान में काम कर रही हैं। यह कंपनियां लगभग तीन लाख लोगों को सीधे तौर पर रोज़गार दे रही हैं जो ज़ाहिर सी बात है बड़ी तादाद है। यह मुझे बताया गया है। जब मैंने इस मैदान के ज़िम्मेदारों से पूछा तो उन लोगों ने तख़मीना लगा कर बताया कि तीन लाख से ज़्यादा लोगों को नॉलेज बेस्ड कंपनियों में सीधे तौर पर रोज़गार मिला है। मिसाल के तौर पर तीन लाख बीस हज़ार लोगों को पिछले साल तक इस लाइन में सीधे तौर पर रोज़गार मिला है जबकि कुल मिलाकर नॉलेज बेस्ड कंपनियों की वजह से जो नौकरियां निकली हैं उनकी तादाद इस से बहुत ज़्यादा है। मैंने पूछा कि इस तादाद को नये साल में कितना बढ़ाया जा सकता है? यानी नये साल में नॉलेज बेस्ड कंपनियों की तादाद को कितना बढ़ाना मुमकिन है? तो मुझे बताया गया कि ज़्यादा से ज़्यादा तीस फ़ीसद। मैं इस पर खुश नहीं हूं क्योंकि मेरा मानना है कि तीस फ़ीसद एक मुल्क के लिए मुनासिब नहीं है और न ही इस से मुल्क की ज़रूरतें पूरी हो सकती हैं।
मुझे मुल्क के ज़िम्मेदारों से उम्मीद है कि नये साल में नॉलेज बेस्ड कंपनियों की तादाद, सौ फ़ीसद बढ़ जाए। यानि यह कंपनियां दो गुना हो जाएं। इस तरह सीधे तौर पर अन्य तीन लाख लोगों को नौकरियां मिलेंगी और इस तरह से नॉलेज बेस्ड कंपनियों की वजह से हिजरी शम्सी साल 1401 में छह लाख लोगों को रोज़गार मिलेगा। लेकिन मेरी इस मांग का यह मतलब नहीं है कि कोई भी कंपनी बना दी जाए और उसका नाम नॉलेज बेस्ड कंपनी रख दिया जाए! नहीं, बल्कि वाक़ई नॉलेज बेस्ड कंपनियां बनायी जाएं। हमारे मुल्क के ज़िम्मेदारों को पक्के इरादे के साथ यह काम करना चाहिए, ख़ास तौर पर उन मैदानों में जहां हम ज़्यादा पीछे हैं। एग्रीकल्चर का तो मैंने ज़िक्र किया। हमारे मुल्क में एग्रीकल्चर में नॉलेज बेस्ड कंपनियां, मुल्क की कुल नॉलेज बेस्ड कंपनियों की चार फ़ीसद हैं। यानि मुल्क में जितनी नॉलेज बेस्ड कंपनियां हैं उनमें से चार फ़ीसद खेती-बाड़ी के मैदान में काम कर रही हैं। हालांकि खेती बाड़ी मुल्क के लिए कितना अहम मैदान है इसका मैंने ज़िक्र किया है। एग्रीकल्चर बहुत अहम है, जानवरों को पालना बहुत अहम है। क्योंकि मुल्क को खाने पीने की बुनियादी चीज़ों में पूरी तरह से अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए, फ़ूड सेक्युरिटी बहुत ज़रूरी है। हमें गेहूं, जानवरों, चारे, मकई, जौ और इस तरह की चीज़ों और तेलहन की पैदावार में अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए। मकई और जौ और इसी तरह की खाने पीने की बुनियादी चीज़ों में हमें अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए और यह काम किया जा सकता है। हमारा मुल्क बहुत बड़ा है। बहुत सी ज़मीनें हैं, हमारे पास उपजाऊ ज़मीनें बहुत हैं, मुल्क के बहुत से इलाकों में फ़सल उगाने के लिए बहुत अच्छी ज़मीनें हैं। अगर हम इन पर काम करें तो बहुत अच्छा होगा। मैंने कुछ बरस पहले ख़ोज़िस्तान में इस तरह के काम के लिए लोगों का हौसला बढ़ाया था (4) तो ख़ोज़िस्तान में और थोड़ा बहुत ईलाम और इसी तरह सीस्तान में यह काम हुआ था। लेकिन मैंने जितना चाहा था और मुझ से जो वादा किया गया था उसके हिसाब से काम नहीं हुआ। मगर किसी हद तक अच्छा काम हुआ था। इसे बढ़ाया जा सकता है। हमारे पास उपजाऊ ज़मीनों की कमी नहीं है, इन ज़मीनों को मुल्क के लिए ज़रूरी अनाजों की पैदावार के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
एक बात यह भी ज़िक्र कर दूं कि माननीय राष्ट्रपति जनाब रईसी साहब ने मुझे बताया कि किसी विदेशी दौरे पर वहाँ के एक अधिकारी ने उनसे कहा कि आप जितना भी तरबूज़, टमाटर और इन जैसी चीज़ों की पैदावार कर सकते हैं कीजिए, हम आपसे ख़रीदेंगे। उन्होंने हैरत से कहा कि आपके पास भी तो ज़मीन है, पानी है, सारी सहूलतें हैं, उपजाउ ज़मीन है, आप हमसे तरबूज़ और टमाटर क्यों ख़रीदना चाहते हैं? वह अधिकारी कहता है नहीं! हम इन ज़मीनों को टमाटर और तरबूज़ के लिए इस्तेमाल नहीं करेंगे। ये ज़मीन गेहूं के लिए है, भुट्टे के लिए, चारे के लिए है, यह बात सही है। अलबत्ता हम यह नहीं कह रहे हैं कि तरबूज़, या मिसाल के तौर पर सब्ज़ी, टमाटर और इन जैसी चीज़ें न बोएं! ये सब ज़रूरी हैं लेकिन हमें चाहिए कि देश में मौजूद संसाधनों से सबसे पहले बुनियादी हैसियत रखने वाले खाद्य पदार्थ का उत्पादन करें। देश के संसाधनो से इन चीज़ों को तैयार करें।
एक बात यह कहना चाहता हूं कि हमारी प्रिय जनता जान ले कि हम रोटी के इस्तेमाल में फ़ुज़ूलख़र्ची करते हैं, कितनी ज़्यादा रोटी फेंकी जाती है? इस बात को समझें कि हमारा कृषि क्षेत्र अफ़सोस की बात है कि सबसे ज़्यादा आयात पर निर्भर क्षेत्रों में है। बहुत ज़्यादा निर्भर है। इसमें ज़रूर संतुलन होना चाहिए। अलबत्ता इस निर्भरता से संघर्ष भी कठिन काम है। क्योंकि कुछ लोग जिनका विदेश से कृषि पदार्थ के आयात में बड़ा मुनाफ़ा है, विरोध करते हैं। कई साल पहले वनस्पति तेल के उत्पादन के मूल पदार्थ में से एक रेपसीड या सफ़ेद सरसों के बारे में हमने एक मंत्री से कहा कि इसके लिए (देश में पैदावार के लिए) कोशिश कीजिए। उन्होंने जो बातें तफ़सील से बतायीं उसका सारांश यह था कि लोग रुकावट पैदा कर रहे हैं। कह रहे हैं कि हमें तेलहन का आयात करना चाहिए। यानी होने नहीं दे रहे हैं। शायद मंत्रालय के भीतर सरकारी तंत्रों में ऐसे तत्वों को इस्तेमाल करते हैं ताकि रुकावट खड़ी हो। लेकिन इसका मुक़ाबला करना चाहिए, यानी यह काम सख़्त है लेकिन इस कठिन काम को ज़रूर अंजाम दिया जाए।
ख़ैर हमने कहा कि दो बिन्दुओं के बारे में बात करेंगे तो पहला बिन्दु यह है कि देश की ज़रूरत की तुलना में हमारे पास नॉलेज बेस्ड कंपनियां कम हैं, इन्हें बढ़ाना चाहिए, ख़ास तौर पर खेती के क्षेत्र में। अलबत्ता दूसरे क्षेत्रों में भी अधिकारियों को चाहिए कि हिम्मत दिखाएं और अधिकारियों की तरफ़ से हिम्मत दिखाने का मतलब यह है कि सहयोग करें। क्योंकि नॉलेज बेस्ड कंपनियां लोगों की संपत्ति है, जवान इन कंपनियों को क़ायम करते हैं, लेकिन सिस्टम को चाहिए की इसकी मदद करे। मुख्य रूप से मदद यह होगी कि इनके प्रोडक्ट्स को ख़रीदें, इस्तेमाल करें या अगर उन्हें किसी सहूलत की ज़रूरत हो तो उसे मुहैया कराएं। अलबत्ता मुझे एक रिपोर्ट दी गयी जिसमें उन मंत्रालयों का ज़िक्र है जो इस तरह की मदद कर रहे हैं और जो मंत्रालय मदद नहीं कर रहे हैं, मदद करनी चाहिए, उनका भी ज़िक्र है। इस मामले को माननीय राष्ट्रपति और उनकी सरकार देखे। इसका हमसे बहुत ज़्यादा संबंध नहीं है।
बहरहाल हर विभाग के लिए नॉलेज बेस्ड कंपनी की तादाद को उसकी तरक़्क़ी का पैमाना क़रार दे सकते हैं। मिसाल के तौर पर अगर हम देखें कि तेल और गैस के क्षेत्र में और इनसे जुड़े उद्योगों में नॉलेज बेस्ड कंपनियां बढ़ी हैं तो पेट्रोलियम मंत्री को ज़्यादा नंबर दें और अगर इसका उलटा हो तो कम। मेरी नज़र में यह एक पैमाना है। यह पहला बिन्दु है कि नॉलेज बेस्ड कंपनियों की तादाद बढ़नी चाहिए।
दूसरा बिन्दु यह कि यह काम अल्लाह की कृपा से मुमकिन है, यह काम हो सकता है। यह न कहिए कि मिसाल के तौर पर आप सहूलतों को भी नज़र में रखिए! जी हाँ सहूलतों की ज़रूरत होती है, लेकिन सबसे अहम सहूलत ह्यूमन रिसोर्स है। ह्यूमन रिसोर्स की नज़र से हमारा हाथ खुला हुआ है। मैं आपको बताउं हमारे हाई क्वालिफ़ाइड लोगों की बड़ी तादाद, एक फ़ीसद से ज़्यादा-जिसकी मुझे रिपोर्ट दी गयी है- ऐसे लोग हैं जो हाई क्वालिफ़ाइड हैं; लेकिन अपनी फ़ील्ड से हट कर काम कर रहे हैं। ऐसा क्यों? इन लोगों को उन्हीं की फ़ील्ड में इस्तेमाल किया जा सकता है। इनकी मदद की जाए, सपोर्ट किया जाए ताकि नॉलेज बेस्ड कंपनियां क़ायम करें। अलबत्ता पता लगाना होगा, कोशिश करनी होगी। हमारे पास ऐसे लोग हैं जिन्होंने बड़ी तरक़्क़ी की है। न्यूक्लियर टेक्नॉलोजी के क्षेत्र में, रिकम्बिनेन्ट दवाओं के क्षेत्र में, नैनो टेक्नॉलोजी के क्षेत्र में, बायो टेक्नॉलोजी के क्षेत्र में- बायोटेक्नॉलोजी-स्टेम सेल के क्षेत्र में। यह बहुत बड़े काम हैं। इन क्षेत्रों में हमारे पास एक्सपर्ट्स हैं। इस तरह के एक्सपर्ट्स दूसरे क्षेत्रों में भी ढूंढे जा सकते हैं और निश्चित तौर पर हैं। हमारे देश में जवान एक्सपर्ट्स अल्लाह की कृपा से बहुत बड़ी संपत्ति या शायद देश के पास मौजूद सबसे बड़ी संपत्ति हैं, जिनके ज्ञान से, साहस से, इनकी जवान ऊर्जा से देश को धनवान बनाने में फ़ायदा उठाया जा सकता है।
ये नॉलेज बेस्ड कंपनी और नॉलेज बेस्ड प्रोडक्ट्स से संबंधित बातें थीं। रोज़गार पैदा करने के बारे में भी हमने ज़िक्र किया कि यह भी बहुत अहम है। इन्ही नॉलेज बेस्ड कंपनियों के ज़रिए रोज़गार के मौक़े पैदा होंगे। यानी अगर हम सही अर्थ में इस तरह की कंपनियां बनाएं, क़ायम करें तो बहुत ज़्यादा रोज़गार के मौक़े पैदा होंगे। इस संबंध में अतीत में जो ग़लतियां हुयी हैं, उन्हें न दोहराएं। मैंने कहा अतीत की ग़लतियां। हमने कई सरकारों में अलग अलग नाम से बहुत सी योजनाएं चलायीं कि बैंकिंग की सहूलतें लोगों को मुहैया करें ताकि उत्पादन बढ़े। क़रीब क़रीब ये सभी योजनाएं नाकाम रहीं। मनी ड्रॉप और बिना सोचे समझे कार्यवाही का कोई नतीजा नहीं निकलेगा। इस तरह के काम को समझ कर स्टडी के साथ अंजाम दिया जाए और नॉलेज बेस्ड कंपनियां जंजीर की कड़ी के तौर पर वजूद में आएं। अलबत्ता यह बात भी याद रहे कि हाल में लिए गए कुछ फ़ैसलों से देश की छोटी और मीडियम लेवल की कंपनियों को नुक़सान पहुंचेगा। सरकार और बैंक ऐसा होने से रोकें, अलबत्ता यह वह बिन्दु है जिस पर ध्यान दिया जाए।
ख़ैर हमने आर्थिक विषय पर तफ़सील से बात की जो बहुत अहम है। हमने पिछले साल पहली स्पीच में (5) इस बात पर ताकीद की कि देश की अर्थव्यवस्था को अमरीकी पाबंदियों या इस तरह की बातों से न जोड़ें। यह न कहें कि जब तक पाबंदियां है, हालात ऐसे ही रहेंगे। नहीं, अमरीकी पाबंदियों के बावजूद भी आर्थिक क्षेत्र में प्रगति हो सकती है। ख़ुशक़िस्मती से देश में नई नीति से ज़ाहिर हो गया कि यह बात सही है और यही काम किया गया।
अमरीकी पाबंदियों के बावजूद, विदेशी व्यापार को रौनक़ दी जा सकती है, बढ़ाया जा सकता है, क्षेत्रीय स्तर पर समझौते हो सकते हैं। अल्लाह की कृपा से सरकार ऐसा कर सकी, तेल और कुछ दूसरे आर्थिक मामलों में भी कामयाबी हासिल हो सकती है। बेहतर हालत में पहुंचा जा सकता है। अल्लाह की कृपा से ऐसा हुआ, जबकि अमरीकी पाबंदियां अपनी जगह मौजूद हैं। अलबत्ता मैं हरगिज़ यह नहीं कहूंगा कि पाबंदियों को हटाने की कोशिश न करें। नहीं, हमने बारंबार कहा है कि जो लोग कोशिश कर रहे हैं और इस बारे में काम कर रहे हैं, कोई हरज नहीं, कोशिश करें, लेकिन अस्ल मसला इस तरह आगे बढ़ने का है और देश को इस तरह चलाने का है कि पाबंदियों से उसे बुनियादी और बड़ा नुक़सान न पहुंचे। मुमकिन है पाबंदी से नुक़सान पहुंचे लेकिन देश की अर्थव्यवस्था को बड़ा नुक़सान न पहुंचे। यह देश के अधिकारियों की ज़िम्मेदारी है कि इंशाअल्लाह इसे अंजाम देंगे। इस साल भी मेरा यही सुझाव है कि देश के मुद्दों को पाबंदियों से न जोड़ा जाए।
इस साल एक और सुझाव भी है। चूंकि कहा जा रहा है मिसाल के तौर पर तेल की क़ीमत बढ़ गयी है, तेल की आय बढ़ गयी है, तो अब तेल की बढ़ी हुयी इस आमदनी का क्या करें? दो तरह के काम कर सकते है। एक यह कहें कि चूंकि हमारी विदेशी मुद्रा की आय ज़्यादा है, इसलिए आयात बढ़ाएं, लोगों को आराम मिले, सहूलत मिले और इस तरह की चीज़ें हासिल हों। यह नज़रिया ज़ाहिर में अच्छा है, लेकिन इसके पीछे बहुत नुक़सान है। यह देश की बुनियादी संपत्ति को बर्बाद करना है। दूसरा रास्ता यह है कि तेल की आय को देश की मूल संरचनाओं, बुनियादी कामों के लिए इस्तेमाल करें, बुनियादों को मज़बूत बनाएं कि देश में अर्थव्यवस्था की जड़ मज़बूत हो और उससे फ़ायदा उठाएं। यह आर्थिक मुद्दों से जुड़ी बातें थीं।
अब दूसरे मुद्दों की कुछ बातें। ख़ैर दुनिया में बहुत ज़्यादा मुद्दे हैं, हमें कई वैश्विक मसलों का सामना है। विभिन्न क्षेत्रों में, हम सोचें, उपाय करें, फ़ैसला करें, हरकत करें और अमल करें। हमारा राष्ट्र जब आज अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं को देखता है, जब आप दुनिया में होने वाली घटनाओं को देखते हैं, तो आपको साम्राज्यवादी मोर्चे के ख़िलाफ़ ईरानी क़ौम की सच्चाई और यह हक़ीक़त बिल्कुल साफ़ नज़र आती है कि उसका रास्ता सही है। हमारी क़ौम ने साम्राज्य के मुक़ाबले में झुकने के बजाए प्रतिरोध का रास्ता चुना, निर्भर न होने, स्वाधीन रहने, व्यवस्था, राष्ट्र और देश को भीतर से मज़बूत करने का रास्ता चुना। ये राष्ट्रीय फ़ैसले हैं, ये सही थे।
आप अफ़ग़ानिस्तान के मसले को लीजिए! देखिए, ध्यान दीजिए, अमरीकियों के बाहर निकलने के अंदाज़ को देखिए! एक तो अफ़ग़ानिस्तान में 20 साल रहे और इस देश के मज़लूम मुसलमानों के साथ क्या कुछ किया! बाद में किस तरह बाहर निकले और लोगों को किन मुश्किलों में ढकेल दिया?! अफ़ग़ान अवाम को उनका पैसा भी नहीं लौटा रहे हैं। दूसरी तरफ़ यूक्रेन है जिसके राष्ट्रपति- जिन्हें ख़ुद पश्चिम वाले और पश्चिमी सरकारें सत्ता में लायीं- कितना कठोर लहजा इस्तेमाल कर रहे हैं। यमन की यह हालत है कि हर दिन उसके मज़लूम अवाम पर जो सही अर्थ में प्रतिरोध करने वाले हैं, बमबारी हो रही है। यह सऊदी की करतूतें हैं कि एक दिन में 80 लोगों की गर्दन मार दी! 80 जवानों की, यहां तक कि बच्चों की- जैसा कि इस बारे में ख़बरें मिली हैं- इन घटनाओं को जब इंसान देखता है, तो महसूस करता है कि दुनिया में कितना ज़ुल्म फ़ैला हुआ है?! दुनिया में कैसा अंधेर फैला हुआ है?! दुनिया की लगाम कैसे ख़ूंख़ार भेड़ियों के हाथों में है?!
यूक्रेन के मसले में पश्चिम की नस्लपरस्ती सभी ने देखी। शरणार्थियों की ट्रेन को जो देश में जंग की मुश्किल की वजह से फ़रार हो रहे हैं, रोकते हैं ताकि कालों को गोरों से अलग करें और कालों को नीचे उतार दें। इनके मीडिया में साफ़ तौर पर अफ़सोस जताया जा रहा है कि इस बार जंग मिडिल ईस्ट में नहीं, यूरोप में है। यानी अगर मिडिल ईस्ट में जंग, रक्तपात और भाई-भाई के बीच क़त्लेआम हो- अलबत्ता मिडिल ईस्ट उन्हीं की टर्मिनालोजी है- यहां पर हो तो कोई हरज नहीं है लेकिन अगर यूरोप में हो तो बहुत बुरा है! बिल्कुल साफ़ साफ़ खुलेआम नस्लपरस्ती! साफ़ तौर पर इस तरह की बात करते हैं, साफ़ साफ़ इस तरह का बयान दे रहे हैं। दुनिया में अगर उनके इशारे पर चलने वाले देश में ज़ुल्म हो, तो उनके मुंह से आवाज़ नहीं निकलती। इतने ज़ुल्म, इतने अत्याचार के साथ मानवाधिकार का दावा भी है और मानवाधिकार के दावे के साथ स्वाधीन देशों से ग़ुन्डाटैक्स चाहते हैं, ब्लैकमेल करते हैं, धमकी देते हैं। ईरानी अवाम इन सब घटनाओं को खुली आँखों से देख रहे हैं। अलबत्ता सारी दुनिया देख रही है और मेरी नज़र में आज समकालीन इतिहास के दौर में साम्राज्य का ज़ुल्म सबसे ज़्यादा घिनौने और शर्मनाक रुप में सामने है। जिसे दुनिया की दुष्ट ताक़तें अंजाम दे रही हैं और दुनिया के लोग इस ज़ुल्म को देख रहे हैं कि किनके हाथों में दुनिया की लगाम है।
अलबत्ता हमारी ईरानी क़ौम लगातार इन बरसों में अपनी शैली को दिन ब दिन बेहतर करते हुए तर्क व संजीदगी के साथ आगे बढ़ी। आज हमें सबसे ज़्यादा रोज़गार, मेहनत और संजीदगी की ज़रूरत है। सबसे ज़्यादा आपस में तालमेल, समन्वय, हमारे राष्ट्र के बीच तालमेल, मेल मुहब्बत और एकता की ज़रूरत है। इसी तरह देश के अधिकारियों के बीच दिन ब दिन आपस में बढ़ते तालमेल व समरसता की ज़रूरत है। एक दूसरे का हाथ बटाएं। जो लोग फ़्रंट लाइन पर चल रहे हैं, दूसरे उनकी मदद करें, उनका सपोर्ट करें। तीनों पालिकाएं, सशस्त्र बल और विभिन्न विभाग के लोग एक दूसरे की मदद करें, आपस में ताल-मेल रहे और अवाम भी देश के अधिकारियों के साथ ताल-मेल क़ायम रखें, उनका समर्थन करें और उनकी मदद करें।
ख़ैर, कभी कभी क़ौम के लोगों के बीच या अधिकारियों के बीच या क़ौम और अधिकारियों के बीच विवाद नज़र आते हैं, जो आम तौर पर बेबुनियाद होते हैं। नज़र आता है कि मुख्य रूप से ख़यालों, भ्रम और कुछ मौक़ों पर परहेज़गारी की कमी के सबब होते हैं। इमाम ख़ुमैनी रिज़वानुल्लाह अलैह 80 के दशक में जब अधिकारियों के बीच मतभेद ज़्यादा थे, क़रीब क़रीब हर स्पीच में इस बात को दोहराते थे कि इन मतभेदों की वजह अहंकार और इच्छाएं होती हैं। हक़ीक़त में ऐसा ही है।
बहुत से विवादों की वजह और इन झगड़ों की वजह अहंकार, बेपरहेज़गारी और इन जैसी चीज़ें होती हैं, इन सब चीज़ों को हमें छोड़ देना चाहिए। इल्म का रास्ता हो, चाहे व्यवहारिक कोशिशों का मैदान हो, चाहे प्रतिरोध का रास्ता हो, चाहे सामाजिक सेवा का रास्ता हो, इन सभी मैदानी में अवाम के बीच मौजूद समन्वय और संतुलन को इन विवादों से ख़राब नहीं करना चाहिए। क़ुरआन कहता है कि अगर विवाद करोगे तो तुम नाकाम होगे और तुम्हारी हवा उखड़ जाएगी। (6)
इंशाअल्लाह उम्मीद है अल्लाह ईरानी क़ौम की दिन ब दिन ख़ुशियां बढ़ाएगा, ज़्यादा कामयाब बनाएगा, ज़्यादा सुख देगा और हमदर्द अधिकारियों को, उन लोगों को जिनके मन में राष्ट्र के लिए हमदर्दी है, राष्ट्र के लिए काम करना चाहते हैं, अल्लाह की ख़ुशी पाना चाहते हैं, दिन ब दिन उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा मौक़ा देगा और उनकी मदद करेगा और इंशाअल्लाह आप सभी प्रिय लोग, पूरा राष्ट्र मानवता के अंतिम मुक्तिदाता इमाम महदी (उन पर हमारी जान क़ुर्बान) की दुआ में हमें शामिल रखेगा और अल्लाह महान इमाम ख़ुमैनी की रूह को अपने ख़ास बंदों के साथ क़यामत में उठाए, प्रिय शहीदों की रूह को और देश के नुमायां शहीदों को -हालांकि एक एक शहीद, सभी शहीद नुमायां हैं, मैं इन शहीदों के बारे में किताबों को पढ़ता है, ऐसे शहीद जिनका बहुत से लोगों ने नाम भी नहीं सुना, हक़ीक़त में वह भी बहुत ही महान नज़र आते हैं-इंशाअल्लाह इस्लाम के आरंभिक युग के शहीदों के साथ अल्लाह उन्हें क़यामत में उठाए।
अल्लाह का सलाम और उसकी रहमत हो आप सब पर
1) किताब एहतेजाज तबर्सी जिल्द 2 पेज 493
2) वृक्षारोपण दिवस पर दो पौधे लगाने के बाद संक्षिप्त गुफ़तुगू 6/3/2022
3) इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में तक़रीर 21/3/2009
4) राष्ट्रपति और मंत्रिमंडल से बातचीत 26/8/2015
5) नए हिजरी शम्सी साल पर तक़रीर 21/3/2021
6) सूरा अनफ़ाल आयत 46 आपस में न झगड़ो कि नाकाम हो जाओ और तुम्हारी हवा उखड़ जाए।