हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की भारतीय मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जाने-माने कवि और वरिष्ठ पत्रकार हसन कमाल ने मुंबई में आयोजित सभा में "हिंदुस्तानी मुस्लमान, अंदीशे और इमकानात" विषय पर बोलते हुए कहा कि वह परिस्थितियों को देखते हुए निराश नहीं हैं। उन्हें उम्मीद है कि अगले छह महीनों में देश के हालात एक नया मोड़ लेंगे और मस्जिद, मंदिर और सांप्रदायिक मुद्दों को उठाने की कोशिश केवल लोकसभा चुनावों के मद्देनजर है।
प्रसिद्ध पत्रकार और "सत्या" हिंदी समाचार चैनल के एंकर आशुतोष ने हसन कमाल से असहमति जताते हुए कहा कि तत्व संगठित और योजनाबद्ध है और उन्हे सौ साल में जो बाग डोर मिली है, वे किसी भी हालत में सत्ता से दूर नहीं रहना चाहते हैं।
उन्होंने कहा कि सच तो यह है कि उन्होंने बहुसंख्यक वर्ग के एक बड़े वर्ग के दिमाग में जहर भर दिया है और कोई भी इस तथ्य से मुंह नहीं मोड़ सकता कि उनके पास सत्ता की बागडोर बहुत मजबूती से है।
आशुतोष ने गांधीजी को उद्धृत करते हुए कहा कि लोकतंत्र का मतलब है कि बहुसंख्यक समुदाय अपने अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करे और यही उसके और देश के लिए भी बेहतर होगा।
जाने-माने बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ता प्रोफेसर राम पन्यानी ने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसी स्थितियां जरूर पैदा होती है, लेकिन पूरी व्यवस्था या पूरी आबादी इस तरह से नही बहती है उन्होंने कहा कि देश में मुसलमानों की स्थिति की तरह ही कई वर्गों की स्थिति खराब है। देश में जो कुछ हो रहा है वह निश्चित रूप से एक गंभीर समस्या है।
इस सत्र की शुरुआत में अख़बार आलम के संपादक खलील जाहिद की पुस्तक "सजदो से महरूम मस्जिदे" का विमोचन किया गया।