हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, हौज़ा इल्मिया की सुप्रीम कांउसिल के सचिवालय के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम वल मुसलेमीन अहमद फ़र्रुख-फ़ाल, ने मुबल्लेग़ीन (धर्म प्रचारकों) के समूह के साथ अपनी बातों में कहा कि हमारे क्षेत्र की वर्तमान स्थिति बहुत ही संवेदनशील और नाजुक है। अगर हमारे पास सही योजना और कार्यों का बंटवारा न हो, तो दुश्मन अपने रणनीतिक केंद्रों से हमारे इलाके को आग में झोंकने और इस्लाम को नुक्सान पहुंचाने के लिए कठोर योजनाएं बनाएंगे।
उन्होंने कहा कि इस प्रकार की स्थिति में वह समाज ही असल रास्ते पर रहेगा जो इस्लामी शिक्षाओं का पालन करता हो और जिसके नेतृत्व की जिम्मेदारी उस शख्स के हाथ में हो जो हदीस के मुताबिक गुणों से भरपूर हो। हदीस में कहा गया है: "हर शहर के लोग तीन चीजों की आवश्यकता रखते हैं, जिनकी तरफ वे अपनी दुनिया और आख़िरत के मामलों में रुख करते हैं, और अगर ये चीजें न हों, तो वे बिखर जाएंगे। ये तीन चीजें हैं: एक ज्ञानी और धार्मिक फ़कीह, एक अच्छा और आदर्श शासक, और एक योग्य और विश्वासपात्र डॉक्टर।"
फ़र्रुख-फ़ाल साहब ने आगे कहा कि समाज का नेतृत्व करने वाली पहली खासियत फ़ुक़ाहत (धार्मिक विद्या में पारंगत होना) है, यानी वह शख्स जो इस्लामी कानूनों को समझता हो, धार्मिक सवालों का जवाब देने में सक्षम हो और शरीयत के सच्चे ज्ञान को समाज में फैलाने की शक्ति रखता हो।
उन्होंने यह भी बताया कि एक 'आलिम' का मतलब सिर्फ धार्मिक ज्ञानी नहीं है, बल्कि इसका अर्थ है कि वह व्यक्ति समय, लोगों, इतिहास, शत्रु, समाज और मनोविज्ञान को समझने वाला हो। सही 'आलिम' वह होता है जो इन सभी क्षेत्रों में गहरी समझ और दृष्टिकोण रखता हो। उदाहरण के तौर पर, जब इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में जुमा की नमाज़ की शुरुआत हुई, तो यह धार्मिक समझ का प्रमाण था, जिससे दुश्मन की सारी योजनाएं नाकाम हो गईं।
फ़र्रुख-फ़ाल साहब ने कहा कि नेतृत्व की दूसरी विशेषता 'वरा' (परहेज़गारी) है। मुबल्लिग़ो का काम यह है कि वे लोगों को समझाएं कि समाज की सही दिशा और नेतृत्व वही कर सकता है जो फ़कीह, आलिम और मुत्तक़ी हो। ऐसा नेतृत्व ही समाज को सही दिशा दिखा सकता है। इसके विपरीत, अगर कोई कमजोर, अज्ञानी या भयभीत शख्स नेतृत्व करता है, तो वह वही समस्याएं पैदा करेगा जो सीरिया में हुईं और समाज को तबाही की ओर ले जाएगा।
उन्होंने यह भी कहा कि एक देश अपनी कामयाबी और खुशहाली के लिए तागूत (अत्याचारी शासकों) की हुकूमत को नकारना चाहिए। आजकल अमेरिका और इस्राइल जैसे देशों को तागूत माना जाता है, जो दूसरे देशों पर हुकूमत करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। केवल वही समाज उन फितनों का सामना कर सकता है, जिसकी नेतृत्व व्यवस्था विलायत-ए-फ़क़ीह के हाथ में हो।
आखिर में, फ़र्रुख-फ़ाल साहब ने कहा कि मुबल्लिगों और प्रभावशाली लोगों का यह कर्तव्य है कि वे इतिहास की घटनाओं को सही तरह से समझकर और लोगों को उनके कर्तव्यों से अवगत करवा कर प्रतिरोधी ताकतों की विजय के लिए काम करें।
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