शनिवार 8 फ़रवरी 2025 - 13:49
इमाम ज़माना (अ) का असली इंतजार करने वाला, इस्लाम के उच्चतम उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कोशिश करता है

हौज़ा / स्वर्गीय आयतुल्लाहिल उज़मा साफ़ी गुलपायगानी ने कहा कि ग़ैब का समय परीक्षा और कार्य का समय है जहाँ हर व्यक्ति पर यह अनिवार्य है कि वह इस्लामी हुक़ूमत की हिफ़ाज़त करे और कुफ़्र और बिद'अत के खिलाफ़ मजबूत रुख़ अपनाए

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एक रिपोर्ट के अनुसार , शाबान की मुआफिक़त से इमाम अस्र  की ख़ुशी और नाराज़गी के असबाब और औसाफ़" के शीर्षक से आयतुल्ला सफ़ी गुलपाइगानीؒ के लिखित श्रृंखला का एक और हिस्सा प्रकाशित किया गया है जिसमें 'असर-ए-गैबत में शियाओं के फराइज़ पर रौशनी डाली गई है।

असर-ए-ग़ैबत में शियाओं के फराइज़:
आयतुल्लाह सफ़ी गुलपाइगानीؒ के मुताबिक, अहले बैत अ.स. की तालीमात को ज़िंदा रखना, उनसे अकीदत और इज़्ज़त का इज़हार करना, उनकी सना ख़्वानी करना और इमाम ज़माना अजल्लाह तआला फरजाहु शरीफ़ के ज़ाहिर होने के लिए दुआ करना, असर-ए-गैबत के अहमतरिन फराइज़ में शुमार है हर शिया पर ये ज़िम्मेदारी है कि वह इन फराइज़ को अदा करने में मुस्तक़बिल और साहस का मुज़ाहिरा करे।

मुंतज़िर-ए-हक़ीक़ी की ज़िम्मेदारी:
मुंतज़िर-ए-हक़ीक़ी वही है जो न सिर्फ इमाम ज़मानाؑ के ज़ाहिर होने का अकीदा रखता हो बल्कि इसके लिए अमली मैदान में भी जद्दो जहद करता हो वह शख़्स जो दुनिया के मुआशी भविष्य को अदल, भाईचारे और इस्लामी बराबरी से भरपूर देखता है उसे खुद भी इन मकासिद के हासिल करने के लिए मुतह्रिक रहना चाहिए। उसे इस्लामी उमूर में सरगर्म रहना चाहिए और दुनिया भर में मुसलमानों की हालत से वाक़िफ़ रहना चाहिए ताके वह अपनी दीनि ज़िम्मेदारी अदा कर सके।

इमाम अ.स. के मुंतज़िर की बेदारी और ज़िम्मेदारी:
आयतुल्लाह सफ़ी गुलपाइगानीؒ के मुताबिक, अगर कोई शख़्स फिलस्तीन में अमरीका और सियुनियत के ज़रिए किए गए ज़ुल्मों या रूस की फौजों द्वारा ज़ुलम मुसलमानों पर किए गए हमलों से बेख़बर है या इन ज़ुल्मों के खिलाफ किसी भी किस्म का रद्द-ए-अमल नहीं करता तो वह हक़ीक़त में मुंतज़िर-ए-ज़ाहिर नहीं है।

मुंतज़िर-ए-ज़ाहिर को न केवल इमाम ज़मानाؑ की बारगाह से रूहानी तालुक़ क़ायम रखना चाहिए, बल्कि अपने इर्द-गिर्द के अफ़राद को भी इस हुकूमत-ए-अद्ल व इंसाफ़ के क़ियाम की राह पर ग़ामज़न करना चाहिए इस राह में तौहीद ईमान, सलाह, भाईचारा और सिदक़त जैसे उसूलों को आम करने की कोशिश करनी चाहिए।

हज़रत इमाम अ.स. के सुरूर व हज़न के असबाब:
इमाम ज़माना अ.स. शरीफ़ की ख़ुशी के असबाब में दीन-इस्लाम की सरबलंदी, अहले बैतؑ की तालीमात का इहयाअ, अमर बिल मारूफ व नहिउं अनील मंकर बिद'अतों से मुक़ाबला और इस्लामी हुक़मात की हिफ़ाज़त शामिल हैं दूसरी तरफ़, इनहिराफ़, फसक व फुजूर और इस्लामी उक़द्रात से रुकुश के कारण इमामؑ के हज़न व मलाल का सबब बनते हैं।

आख़िर में आयतुल्ला सफ़ी गुलपाइगानीؒ ने उम्मीद ज़ाहिर की कि हम सभी इमाम ज़मानाؑ के हक़ीक़ी मुंतज़िर बनें और तक़्वा व सालेह अमाल के ज़रिए उनके करीब होने की कोशिश करें।

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