۲ آذر ۱۴۰۳ |۲۰ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 22, 2024
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हौज़ा/सुप्रीम लीडर ने फरमाया,शिक्षा व प्रशिक्षण के अहम सिस्टम के लिए ज़रूरी व अपरिहार्य चीज़ों की वज़ाहत करते हुए कहा कि सत्ताधारी वर्ग को टीचरों से अपनी अपेक्षाओं के साथ साथ उनके मुख़्तलिफ़ मुद्दों के सिलसिले में अपनी ज़िम्मेदारी को भी महसूस करना चाहिए।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,इस्लामी इन्क़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने मंगलवार को मुल्क भर से बड़ी तादाद में आए टीचरों से मुलाक़ात में, टीचरों को बच्चों और नौजवान नस्ल जैसे क़ीमती हीरों को तराशने वाला, मुल्क के भविष्य का आर्किटेक्ट और मुल्क के सबसे अच्छे व प्रतिष्ठित तबक़ों में से एक बताया और शिक्षा व प्रशिक्षण के अहम सिस्टम के लिए ज़रूरी व अपरिहार्य चीज़ों की वज़ाहत करते हुए कहा कि सत्ताधारी वर्ग को टीचरों से अपनी अपेक्षाओं के साथ साथ उनके मुख़्तलिफ़ मुद्दों के सिलसिले में अपनी ज़िम्मेदारी को भी महसूस करना चाहिए।

उन्होंने मुल्क के टीचरों की जिद्दो जेहद का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि मुल्क के भविष्य के निर्माण के लिए एक जागरुक, मोमिन, तर्क, सोच व इरादे की क्षमता वाली, इस्लामी अख़लाक़ व क़ौमी ज़िम्मेदारी की भावना से लैस नस्ल की परवरिश की क़द्र व क़ीमत की, किसी भी दूसरे काम से तुलना नहीं की जा सकती।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने एक हक़ीक़ी व संपूर्ण शिक्षक की हैसियत से महान विचारक व लेखक शहीद मुतह्हरी को श्रद्धांजलि दी और टीचरों को उनकी किताबों से फ़ायदा उठाने की सिफ़ारिश करते हुए कहा कि टीचर, क़ौम के बच्चों की भी उसी तरह परवरिश करें जैसी वे अपने बच्चों के लिए कामना रखते हैं, यानी उन्हें सौभाग्यशाली, कामयाब, बुद्धिमान, शिक्षित, बाअदब बनाएं और यह अहम चीज़ पढ़ाने के साथ साथ उस्ताद के रवैये और चरित्र से ही मुमकिन होगी।

उन्होंने मुल्क के ज़हीन बच्चों और नौजवानों में ईरानी व इस्लामी पहचान और क़ौमी शख़्सियत की भावना जगाने को बुनियादी ज़िम्मेदारी बताया और कहा कि स्टूडेंट्स को क़ाबिले फ़ख़्र हस्तियों और उनके सांस्कृतिक, वैज्ञानिक व ऐतिहासिक अतीत को सही मानी में पहचनवाना चाहिए।

इस्लामी इन्क़ेलाब के नेता ने टीचर सोसायटी के सिलसिले में सरकार की ओर से ज़िम्मेदारी के भरपूर एहसास को हक़ीक़ी ज़रूरत बताया और कहा कि टीचरों की आर्थिक स्थिति बहुत अहम है, लेकिन टीचरों के सिर्फ़ आर्थिक मुद्दे नहीं हैं, बल्कि उनका दायरा बहुत व्यापक है जिनमें महारत व तजुर्बा हासिल करना और टीचर्ज़ यूनिवर्सिटी पर ध्यान जैसी बातें भी शामिल हैं।

उनका कहना था कि मुल्क की बहुआयामी तरक़्क़ी की दुर्गम वादियों को पार करना, शिक्षा और प्रशिक्षा के विभाग के सहयोग के बिना नामुमकिन है। उन्होंने कहा कि मुल्क की मुश्किलों को दूर करने के लिए स्कूल के केन्द्रीय हैसियत होने से संबंधित अनेक माहिरों की सहमति की ओर इशारा करते हुए कहा कि हल, स्कूलों में सुधार के लिए सही योजना और मज़बूत इरादा है

और सभी अधिकारियों, फ़ैसला करने वालों और अवाम को शिक्षा और प्रशिक्षा के विभाग की निर्णायक हैसियत को समझना चाहिए।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने शिक्षा व प्रशिक्षा विभाग के संचालन में अस्थिरता की आलोचना करते हुए कहा कि इतने बड़े विभाग को, मंत्री की लगातार तब्दीली से नुक़सान पहुंचता है, ख़ास तौर पर इसलिए भी कि मंत्री के बदलने की वजह से कभी कभी उसके सहायक, मिडिल लेयर के मैनेजर, यहाँ तक कि स्कूलों के प्रिंसपल तक बदल जाते हैं।

उन्होंने शिक्षा व प्रशिक्षा के ढांचे, पाठ्यक्रम और एजुकेश्नल सिस्टम को मुल्क की ज़रूरतों के मुताबिक़ बनाने पर ज़ोर दिया और कहा कि मुल्क को जितनी विचारकों व बुद्धिजीवियों की ज़रूरत है, उतनी ही काम के लिए माहिर वर्क फ़ोर्स की भी ज़रूरत है।

इस्लामी इन्क़ेलाब के नेता ने शिक्षा व प्रशिक्षा विभाग में बुनियादी बदलाव के दस्तावेज़ के सिलसिले में भी अधिकारियों को कुछ अहम सिफ़ारिशें कीं।

उन्होंने सिलेबस की किताबों को अपटूडेट और ज़माने में बदलाव के लेहाज़ से बदलने के सिलसिले में इस्लामी शिक्षाओं और मशहूर इस्लावी व ईरानी हस्तियों को उन किताबों में शामिल करना, ज़रूरी काम बताया और कहा कि ज़माने में बदलाव से कुछ लोग उसूलों में बदलाव मुराद लेते हैं, जबकि न्याय और मोहब्बत जैसी बुनियादें कभी नहीं बदलतीं, बल्कि बयान के तरीक़े जैसे इमारत के ज़ाहिरी रूप बदल सकते हैं।
इस्लामी इन्क़ेलाब के नेता ने अपनी स्पीच के आख़िरी हिस्से में शिक्षा व प्रशिक्षा विभाग में तरबियत के मामलों को अहमियत दिए जाने की सराहना करते हुए कहा कि तरबियत की इन चीज़ों को स्कूलों में भी शामिल किया जाना चाहिए। 
इस मुलाक़ात के आग़ाज़ में शिक्षा व प्रशिक्षा मंत्रालय के प्रभारी जनाब सहराई ने, पिछले एक साल की सरगर्मियों और भविष्य के प्रोग्रामों के बारे में एक रिपोर्ट पेश की।

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