बुधवार 19 फ़रवरी 2025 - 10:35
कश्मीर की प्राकृतिक सुंदरता और सामाजिक संकट एक दुखद स्थिति

हौज़ा /कश्मीर को प्रकृति ने अपनी तमाम खूबसूरती, दया और आशीर्वाद से नवाजा, आज वह संकट से गुजर रहा है जिसकी पीड़ा हर संवेदनशील दिल को महसूस होती है। यह वह धरती है जहां कभी नदियों का पानी पारदर्शी दर्पण की तरह बहता था, झीलों की गहराई में शांति की लहरें नाचती थीं और प्रकृति के रंग हर जगह बिखरे हुए थे, लेकिन आज यही धरती चीख-चीख कर हमसे पूछ रही है कि उसका क्या कसूर है?

लेखक: दाऊद हुसैन बाबा

हौज़ा न्यूजॉ एजेंसी|

जिस कश्मीर को प्रकृति ने अपनी तमाम खूबसूरती, दया और आशीर्वाद से नवाज़ा था, आज वो एक ऐसे संकट से गुज़र रहा है जिसकी पीड़ा हर संवेदनशील दिल को महसूस होती है। ये वो धरती है जहाँ कभी नदियों का पानी पारदर्शी दर्पण की तरह बहता था, झीलों की गहराई में शांति की लहरें नाचती थीं और प्रकृति के रंग हर जगह बिखरे हुए थे, लेकिन आज यही धरती चीख-चीख कर हमसे पूछ रही है कि उसका क्या कसूर है?

शराबखोरी, अनैतिकता, यौन संकीर्णता और नशीली दवाओं के अभिशाप ने कश्मीर की पवित्रता को प्रदूषित कर दिया है। निर्दोष लोगों को नदियों में फेंकना न केवल एक अपराध है, बल्कि मानवता के चेहरे पर एक कलंक है। यह सब देखकर हृदय विदीर्ण हो जाता है कि जिस भूमि पर कभी संतों की प्रार्थनाएं महकती थीं, वह आज पापों के अंधकार में डूबी हुई है।

हम भूल गए हैं कि जब मनुष्य अपनी सीमाएं लांघता है तो प्रकृति भी अपना बदला लेती है। शायद यही कारण है कि हमारी नदियों में पानी कम हो रहा है, झीलें सूख रही हैं और प्रकृति हमसे नाराज हो रही है। हमने अपने कुकर्मों के कारण प्रकृति के आशीर्वाद को खो दिया है। यह सूखा महज मौसमी बदलाव नहीं बल्कि हमारे कर्मों का आईना है, जो हमें बार-बार यह एहसास कराता है कि अगर हमने खुद को नहीं बदला तो यह धरती और भी विनाश की गवाह बनेगी।

हमें वापस लौटना होगा. हमें अपने प्रभु के सामने झुकना चाहिए और अपने पापों के लिए क्षमा मांगनी चाहिए। हमें इस पीढ़ी को नैतिकता और धर्म के प्रकाश में वापस लाना होगा, अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब यह धरती हमारी उदासीनता पर विलाप करेगी और हमारे पास पछतावे के अलावा कुछ नहीं बचेगा। यह समय है अपने कश्मीर को सुधारने, सुंदर बनाने और उसकी खोई हुई पवित्रता को वापस लाने का, अन्यथा न तो प्रकृति और न ही इतिहास हमें माफ करेगा।

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