हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, मुतवल्ली-ए-हरम हुज्जतुल इस्लाम मरवी ने कहा कि हज़रत मासूमा स.अ. ने मदीना से खुरासान का सफ़र सिर्फ़ वली-ए-ख़ुदा इमाम रज़ा अ.स. की ज़ियारत के लिए किया, जो उनके इस्तेक़ाम और वक्त के इमाम से वफ़ादारी का ज़िंदा सबूत है। इसी रास्ते में उनकी शहादत इस्लाम में औरत के किरदार और अहलेबैत अ.स. की पैरवी में दी गई बेनज़ीर क़ुर्बानी है।
आलिमे दीन मुरवी ने रहबर-ए-मुअज़्ज़म की इस नसीहत को दोहराया कि तारीखी इनहिराफ़ात की वजह जल्दबाज़ी, ग़लत तज़ीये और नासमझ एतिराज़ात होते हैं, जो ना सिर्फ़ मौक़े ज़ाया करते हैं बल्कि पूरे तहज़ीबी अमल को पीछे ढकेल देते हैं।
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि हर गलत बयान और राय को रहबर-ए-इंक़लाब के मयार पर परखना चाहिए, क्योंकि वही उम्मत की रहनुमाई "लिसान-ए-मुबीन" से कर रहे हैं।
हज़रत मासूमा स.अ. की ज़िंदगी एक अमली नमूना है कि कैसे सब्र, शऊर और वफ़ादारी के साथ वक्त के इमाम के पीछे चला जाए। यह सीरत आज के दौर में भी हर शख़्स, ख़ास तौर पर समाज के समझदार और रहनुमा लोगों के लिए एक रौशन रास्ता है।
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