हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद हुसैन मोमिनी ने हरम-ए-मुतह्हर हज़रत मासूमा स.ल. में मुनाजात-ख़्वानी की महफ़िल के दौरान ख़िताब करते हुए कहा कि इंसान के आमाल का असर दुनिया और आख़िरत दोनों में ज़ाहिर होता है।
उन्होंने इमाम जाफ़र सादिक़ अ.स. की एक रिवायत का हवाला देते हुए कहा कि अगर हम अपने जीवन में मरिफत ए ख़ुदा अल्लाह की पहचान), मरिफत ए-रसूल (पैग़ंबर की पहचान) और मरिफत ए-इमाम (इमाम की पहचान) को उतार लें और उनसे सच्ची मोहब्बत करें तो इसका पहला असर यह होगा कि हम वाजिबात की पाबंदी करेंगे और मुहर्रमात से बचेंगे।
हुज्जतुल इस्लाम मोमिनी ने अल्लाह की पहचान के बारे में कहा कि सब कुछ अल्लाह के हाथ में है और उसकी क़ुदरत (शक्ति) से बड़ी कोई ताक़त नहीं जब इंसान ख़ुद को अल्लाह का बंदा और उसके दर पर मोहताज समझे तो वह क़ुरआन की आयतों, ख़ास तौर पर सूरह हम्द के ज़रिए अल्लाह से इश्क़ (प्रेम) का रिश्ता क़ायम कर सकता है।
हुज्जतुल इस्लाम मोमिनी ने कहा कि हमें यह जानना चाहिए कि नबी-ए-अकरम स.ल. ख़ुशख़बरी देने वाले हैं जो कुछ वे फ़रमाते हैं, वह वही अल्लाह की ओर से भेजी गई वही है उन्होंने सूरह तौबा की आयत 128 का हवाला देते हुए कहा कि पैग़ंबर (स) अपनी उम्मत की तकलीफ़ों को महसूस करते हैं और उनकी हिदायत के लिए बेइंतिहा फ़िक्रमंद रहते हैं।
हुज्जतुल इस्लाम मोमिनी ने मरिफत ए इमाम को सबसे अहम फ़रीज़ा क़रार देते हुए कहा कि इमाम वह हस्ती हैं, जिन्हें हमें अपनी ज़िंदगी का केंद्र बनाना चाहिए हमें ग़ौर करना चाहिए कि हमारी ज़िंदगी में इमाम-ए-ज़माना (अज) का कितना ज़िक्र है? कहीं ऐसा तो नहीं कि हमने अपने दिल में इमाम का दाख़िला मना है का बोर्ड लगा रखा हो?
उन्होंने इमाम रज़ा अ.स. की रिवायत को बयान करते हुए कहा:इमाम एक सच्चे साथी, शफ़ीक़ पिता, मेहरबान भाई और मां से भी ज़्यादा मोहब्बत करने वाली हस्ती होते हैं।चाहे हम इमाम को याद करें या न करें, वह हमें याद करते हैं, और हम उनकी दुआ करें या न करें वह हमारे लिए दुआ करते हैं।
हुज्जतुल इस्लाम मोमिनी ने कहा कि इमाम से दूरी सबसे बड़ी यतीमी है क्योंकि इमाम वह हस्ती हैं जो हमें कभी तन्हा नहीं छोड़ते।.उन्होंने सूरह मायदा की आयत 35 का ज़िक्र करते हुए कहा कि अल्लाह तक पहुंचने के लिए हमें तक़वा अपनानी होगी और "वसीला" (साधन) को पकड़ना होगा और अहलुल बैत अ.स. ही वह वसीला हैं जो हमें अल्लाह से जोड़ते हैं।
अपने ख़िताब के आख़िर में उन्होंने कहा कि अगर हम सच्चे दिल से इमाम की याद में रहें और उनकी मोहब्बत को अपनी ज़िंदगी में शामिल करें तो इमाम भी हमारी तरफ़ मुतवज्जेह होंगे और हमें अपनी ख़ास इनायतों से नवाज़ेंगे।
आपकी टिप्पणी