शुक्रवार 2 मई 2025 - 13:13
नजफ़ अशरफ़ के हौज़ा इल्मिया में कश्मीरी छात्रों की शेख़ अली नजफ़ी से अहम मुलाकात

हौज़ा / नजफ़ अशरफ़ में तालीम हासिल कर रहे कश्मीरी छात्रों ने मौलाना सैयद ज़हीन अली नजफ़ी की क़ियादत में आयतुल्लाहिल उज़मा हाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफ़ी के साहबज़ादे शेख अली नजफ़ी से ख़ास मुलाकात की।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, नजफ़ अशरफ़ में तालीम हासिल कर रहे कश्मीरी छात्रों ने मौलाना सैयद ज़हीन अली नजफ़ी की क़ियादत में आयतुल्लाहुल उज़मा हाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफ़ी के साहबज़ादे, शेख अली नजफ़ी से ख़ास मुलाकात की।यह मुलाकात छात्रों की दीनदारी की रहनुमाई और उन्हें दरपेश क़ानूनी व इंतेज़ामी मसाइल के हल के लिए की गई थी।

मौलाना ज़हीन अली नजफ़ी ने छात्रों की तरफ़ से दीनी वाज़ और नसीहत की दरख़्वास्त पेश की ताकि नजफ़ के मुक़द्दस माहौल में उनकी तरबियत मज़ीद बेहतर हो सके इसके बाद तीन अहम मुद्दे शेख अली नजफ़ी की खिदमत में अदब के साथ पेश किए गए:

छात्रों की तसदीक़ के लिए कश्मीरी उलमा को ज़िम्मेदार ठहराया जाए, क्योंकि वे छात्रों को ज़ाती, ख़ानदानी और अख़लाक़ी तौर पर बेहतर जानते हैं। इस सिलसिले में आगा नवाज़िश अली काज़मी का नाम बतौर नुमाइंदा पेश किया गया, जिसे मक़तब की तरफ़ से मंज़ूर कर लिया गया।

तक़रीबन 14 छात्रों की तादाद के बावजूद उन्हें इक़ामा (रेज़ीडेंसी) और दीगर क़ानूनी मसाइल का सामना है जो उनकी पढ़ाई में रुकावट बन सकते हैं। शेख अली नजफ़ी ने फ़ौरन ज़िम्मेदार शख़्स को बुलाया और ख़ास हिदायतें जारी कीं ताकि छात्रों को राहत मिल सके। एक मुख़्तसर इम्तिहान के ज़रिए क़ानूनी मराहिल पूरा करने पर भी इत्तिफ़ाक़ हुआ।

कश्मीर से आने वाले होनहार छात्रों के क़ानूनी अमूर को तर्जीही बुनियादों पर हल करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया गया, जिस पर शेख साहब ने भरपूर तावुन का वादा किया।

मुलाक़ात के आख़िर में शेख अली नजफ़ी ने बड़ी इनकिसारी के साथ कहा,अगरचे मैं खुद को नसीहत देने के लायक़ नहीं समझता, मगर आप लोगों, ख़ास तौर पर सय्यदज़ादों और शराफा को, जिनका रिश्ता मौला-ए-कायनात अली इब्न अबी तालिब (अ.स) से है, इस अज़ीम निस्बत का हर लम्हा एहसास होना चाहिए।

नजफ़ की गलियों में चलते हुए, इल्म हासिल करते हुए, ज़िंदगी के हर पहलू में यह महसूस करें कि हमारे जद्द, मौला अली (अ.स) हमें देख रहे हैं।

उन्होंने आगे कहा,एक तालेब-ए-इल्म सिर्फ़ पढ़ने वाला नहीं होता, वह अपने किरदार, बातचीत, इबादत और ज़िंदगी के अंदाज़ से भी इल्म की नुमाइंदगी करता है। उसका हर अमल, नजफ़ की मुक़द्दस फ़िज़ा में एक पैग़ाम बन जाता है। अपनी चाल-ढाल, गुफ़्तगू, उठने-बैठने और यहां तक कि तनहाई में भी यह न भूलें कि आप उस सरज़मीन के बाशिंदे हैं जहां अली (अ.स) दफ़न हैं और उनकी निगाह हर जानिब है।

शेख साहब ने अपने वालिद-ए-मोहतरम का क़ौल दोहराया,मेरे बाबा फरमाया करते थे,बेशक अल्लाह सिर्फ़ मुत्तक़ीन (परहेज़गारों) के आमाल को क़ुबूल करता है।

और फिर एक लरज़ा देने वाली बात कही,ऐसा न हो कि क़यामत के दिन जब हम मौला अली अ.स के सामने पेश हों, तो वह कहें मैं मुत्तक़ीन का इमाम हूं तुम कहीं और जाओ!यह अल्फ़ाज़ सिर्फ़ नसीहत नहीं थे बल्कि दिलों पर दस्तक देने वाले लम्हात थे एक आईना, जो हर छात्र को अपने वुजूद का मुहासिबा करने पर मजबूर कर देता है।

मुलाक़ात का इख़्तताम मौलाना ज़हीन अली नजफ़ी के तशक्कुर और दुआओं के साथ हुआ।यह मुलाकात न सिर्फ़ छात्रों के मसाइल के हल का ज़रिया बनी, बल्कि उनके फिक्री और रूहानी शऊर को भी रौशन करने का सबब बना।

टैग्स

आपकी टिप्पणी

You are replying to: .
captcha