रविवार 1 जून 2025 - 20:04
नजफ़ अशरफ़ में इमाम ख़ुमैनी र.ह. की बरसी की पुरवकार तक़रीब/ इंक़लाबे इस्लामी की विरासत उम्मत की वहदत और बेदारी का पैग़ाम

हौज़ा / नजफ़ अशरफ़ मे मरहूम हज़रत इमाम ख़ुमैनी (रह) की बरसी के मौके पर नजफ़ अशरफ़ में एक पुरवकार और रूहानी माहौल में तक़रीब मुनअक़िद की गई इस मौक़े पर उलेमा, तालिबे इल्म और मुख़्तलिफ़ मज़हबी-ओ-सियासी शख्सियतों ने शिरकत की और इमाम ख़ुमैनी की शख्सियत, तहरीक और उनकी छोड़ी गई बेहतरीन विरासत पर रौशनी डाली।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,नजफ़ अशरफ़ मे मरहूम हज़रत इमाम ख़ुमैनी (रह) की बरसी के मौके पर नजफ़ अशरफ़ में एक पुरवकार और रूहानी माहौल में तक़रीब मुनअक़िद की गई इस मौक़े पर उलेमा, तालिबे इल्म और मुख़्तलिफ़ मज़हबी-ओ-सियासी शख्सियतों ने शिरकत की और इमाम ख़ुमैनी की शख्सियत, तहरीक और उनकी छोड़ी गई बेहतरीन विरासत पर रौशनी डाली।

उन्होंने कहा कि इमाम ख़ुमैनी (र.ह.) ने इस्लाम को एक सीमित व्यक्तिगत अमल के दायरे से निकालकर एक मुकम्मल, जामिय और अमली निज़ाम के तौर पर ज़िंदा किया, जो आज भी दुनिया भर के मज़लूमों और महरूमों के लिए उम्मीद की किरण है।

आयतुल्लाह हुसैनी ने फरमाया कि इस्लामी इंक़लाब ने न सिर्फ़ ईरान में इस्तिबदादी निज़ाम को खत्म किया, बल्कि इस्लाम को आलमी सतह पर एक सक्रिय और जागरूक तहरीक की सूरत में पेश किया।

उनका कहना था कि इमाम ख़ुमैनी (रह) ने मुसलमानों को ख़ुद-एतिमादी (आत्मविश्वास) और इज़्ज़त-ए-नफ़्स (आत्म-सम्मान) अता की, और उम्मत-ए-मुस्लिमा को क़ौमियत, नस्ल और सरहदों से ऊपर उठाकर एक यकजा रूहानी में बदल दिया। इमाम की क़ियादत में शिया मक़तब-ए-फ़िक्र को भी वैश्विक स्तर पर वह मक़ाम मिला जो सदियों से नज़रअंदाज़ होता रहा था।

आयतुल्लाह हुसैनी ने इमाम ख़ुमैनी (रह) की सादगी पसंदी, तक़वा (परहेज़गारी), और अवामी मिज़ाज को इस्लामी हुकूमत के लिए एक अमली मयार करार दिया और कहा कि इमाम ने ताक़त और घमंड के बुतों को तोड़कर हुक्मरानों को खुदा का बंदा बनकर जीने का सबक दिया।

अंत में उन्होंने ईरान की स्वतंत्रता, पूर्व और पश्चिम से आज़ादी, और ईरानी क़ौम की इज़्ज़त, शिनाख़्त और हकूक़ की बहाली को इमाम ख़ुमैनी (रह) का सबसे बड़ा और तारीखी कारनामा बताया।

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