हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, इस्लामी गणतंत्र ईरान ने इजरायली और अमेरिकी आक्रामकता के खिलाफ हुसैनी प्रतिरोध की जो भूमिका निभाई है, वह अनुकरणीय और प्रशंसनीय है। गाजा और फिलिस्तीन के मजलूम मुसलमान भी पहले किबला बैतुल मुक़द्दस और इस्लाम की सुरक्षा के लिए हुसैनी संघर्ष का बैनर ऊँचा किए हुए हैं।
कराची में "पैग़ाम-ए-हुसैनियत सेमिनार" का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता मुत्तहिदा उलेमा मोर्चा पाकिस्तान के संस्थापक सरग़ना मौलवी मोहम्मद अमीन अंसारी ने की। इस सेमिनार में प्रमुख धार्मिक विद्वानों और विभिन्न मतों के उलेमाओं ने भाग लिया।
उलेमाओं ने अपने भाषणों में कहा कि हुसैनियत हक़ की जीत और यज़ीदियत की मौत है। एकता और आज़ादी हुसैन (अ.स.) का संदेश है। मुहर्रम हमें शांति, एकता, बलिदान और त्याग का पाठ पढ़ाता है।
उन्होंने कहा कि फिरकापरस्ती एक साम्राज्यवादी एजेंडा है, जिसे मिलकर विफल करना होगा। और ज़ालिम यज़ीदियत के खिलाफ क़यामत तक हुसैनियत मज़लूमों के साथ खड़ी रहेगी।
वक्ताओं ने इस बात पर ज़ोर दिया कि कोई भी मुसलमान सहाबा-ए-रसूल (स.अ.व.) और अहल-ए-बैत (अ.स.) की बेअदबी की कल्पना भी नहीं कर सकता।
उन्होंने ईरान के इजरायल और अमेरिका के खिलाफ हुसैनी प्रतिरोध को सराहा और कहा कि फिलिस्तीन और गाजा के मुसलमान भी बैतुल मुक़द्दस की रक्षा के लिए हुसैनी राह पर चल रहे हैं।
उलेमाओं ने ज़ोर देकर कहा कि ज़ाकिरीन और ख़तिब मजलिसों और भाषणों में फिरकावाराना और नफ़रत फैलाने वाले मुद्दों से बचें और अहल-ए-बैत (अ.स.) की शांतिपूर्ण क्रांतिकारी शिक्षाओं को उजागर करें।
साथ ही कहा गया कि शिया-सुन्नी उलेमाओं को मिलकर इस्लाम और पाकिस्तान के खिलाफ साम्राज्यवादी फिरकावाराना साजिशों को विफल करना चाहिए।सुरक्षा एजेंसियों, पुलिस और प्रशासन के साथ पूर्ण सहयोग बनाए
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