मंगलवार 9 सितंबर 2025 - 16:39
उलेमा ए शिया समाज की सोच और आस्था के संरक्षक हैं

हौज़ा / अस्तान ए कुद्से रिज़वी के ट्रस्टी ने कहा, शिया उलेमा समाज की सोच और आस्था के संरक्षक हैं जिस प्रकार सीमाओं के रक्षक अपने प्राणों से देश की रक्षा करते हैं, उसी प्रकार धार्मिक विद्वान आम लोगों के विश्वासों और विचारों की रक्षा करते हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इमाम रज़ा अ.स. के हरम के ट्रस्टी हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अहमद मरवी ने मदरसा इल्मिया ए हुज्जतीया आमुल के छात्रों से मुलाकात में इस्लामी सभ्यता के मानव इतिहास में योगदान की ओर संकेत करते हुए कहा, आज की मानव सभ्यता इस्लामी सभ्यता की ऋणी है।

उन्होंने आगे कहा,शिया विद्वान समाज की सोच और आस्था के संरक्षक हैं, जैसे सीमा पर सैनिक अपने प्राणों से मातृभूमि की रक्षा करते हैं, वैसे ही धार्मिक विद्वान लोगों के विश्वासों की रखवाली करते हैं।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मरवी ने धार्मिक गतिविधियों में समय के ज्ञान के महत्व पर ज़ोर देते हुए कहा,अंतर्दृष्टि और अवसर की सही पहचान एक बौद्धिक और आस्थावान संरक्षक की सबसे बुनियादी शर्त है। धार्मिक विद्वानों को परिस्थितियों से अवगत होकर लाभदायक और उपयोगी ज्ञान को समाज में फैलाना चाहिए।

अस्ताने कुद्से रिज़वी के ट्रस्टी ने कहा,छात्रों को भी पूर्व विद्वानों के जीवन-शैली को अपना आदर्श बनाना चाहिए क्योंकि महान विद्वानों ने इतिहास में विद्वानों के चरित्र और जीवनियों को संरक्षित किया है ताकि आने वाली पीढ़ियां इससे लाभ उठा सकें।

उन्होंने कहा,विद्वानों और धार्मिक व्यक्तित्वों को अपनी जड़ों को पहचानना चाहिए और यह जानना चाहिए कि वे इस्लामी इतिहास में एक धन्य और मजबूत श्रृंखला की निरंतरता हैं, इसलिए उन्हें दुश्मन के मुकाबले सजग रहना चाहिए और उनकी धर्म विरोधी गतिविधियों पर भी लगातार नजर रखनी चाहिए।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मरवी ने सभी कार्यों में ईमानदारी को मूल आधार बताते हुए कहा, धार्मिक विद्वान को समाज की शिक्षा-दीक्षा से पहले अपने आत्मा की सुधार करनी चाहिए क्योंकि केवल आत्म-सुधार के माध्यम से ही आम लोगों के मार्गदर्शन में प्रभावी भूमिका निभाई जा सकती है।

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