रविवार 26 अक्तूबर 2025 - 19:06
क़ुम अल मुकद्दस एक ऐसा शहर है जो दीनी, इल्मी, सियासी और तहरीक़ी पहलुओं के इम्तेज़ाज से एक मुनफरिद पहचान रखता है

हौज़ा/ मस्जिद मूकद्दस जमकरान के मुतवली, हुज्जतुल इस्लाम वल मुसलमीन सय्यद अली अकबर एजाग़ नजाद] ने कहा कि क़ुम एक बहुआयामी शहर है जो दीनी, इल्मी, सियासी और तहरीक़ी पहलुओं के इम्तेज़ाज से एक मुनफरिद पहचान रखता है, और उसकी तरक्की के मंसूबे इसी मियार और पहचान के मुताबिक होने चाहिये।

हौज़ा न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, मस्जिद मूकद्दस जमकरान के मुतवली हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सय्यद अली अकबर एजाग़ नजाद ने शनिवार को यूनिवर्सिटी ऑफ क़ुम में आयोजित नशस्त में ख़ुतबा देते हुए कहा कि क़ुम सिर्फ एक भूगोलिय शहर नहीं बल्कि एक "पहचान" है जिसमें इल्म, दीन और क़ियाम गहरी तौर पर जुड़े हुए हैं।

उन्होंने कहा कि क़ुम ऐतिहासिक नजरिए से एक महान विरासत रखता है, सियासी तौर पर "शहर-ए-ख़ून व क़ियाम" के रूप में जाना जाता है, और इल्मी हैसियत से वह वो केंद्र है जहां से हवदीस के मुताबित इल्म पूरी दुनिया में फैलता है।

मस्जिद ए जमकरान के मुतावल्ली ने बताया कि रिवायतों में क़ुम को "आल-ए मुहम्मद (स)" से मन्सूब किया गया है और यहां साँस लेना भी सवाब का कारण बताया गया है। इसलिए क़ुम के दिनी, इल्मी, सियासी और तहरीखी पहलू अलग नहीं बल्कि एक-दूसरे की पूरक हैं।

उन्होंने सियासत, इल्म और दीन के आपस में जुड़े रिश्ते की तरफ इशारा करते हुए कहा कि कुछ बादशाहों का इल्माए क़ुम से मुलाक़ात के लिए यहां आना इसी हक़ीक़त की निशानी है कि ये तीनों पहलू एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और यही ताल्लु्क़ क़ुम की माअनवी और वैचारिक अज़मत में इजाफ़ा करता है।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुसलमीन एजाग़ नजाद ने क़ुम की आगामी तरक्की के लिए समन्वित हारमत-अमलीया की ज़रूरत पर जोर दिया और कहा कि मख़्तलिफ़ शाखाओं — इंठनामी, सस्क़ाफ़ती और शाहरी — के माहिरों पर मुश्तमिल एक कमिटी तासिस की जाए जो शहर के भविष्य की दिशा तय करे।

उन्होंने अफ़सोस जताया कि कभी-कभी शहर की तमीर और तरक्की के फैसले क़ुम की तहरीखी पहचान से मताबिक नहीं होते, जिससे इसकी असलियत को नुक़सान पहुंचता है। उनके अनुसार, "क़ुम के ज़िम्मेदारों को समझना चाहिए कि वे किस शहर की सेवा कर रहे हैं।"

मस्जिद जमकरान के मुतवली ने बताया कि क़ुम के तहरीखी मकामात जैसे "तप्पा सलाम" इस शहर की क़दीमी पहचान का हिस्सा हैं जिन्हें महफ़ूज़ रखना और पेश करना जरूरी है। उन्होंने सिफ़ारिश की कि मीरासत-ए-फ़रंग्ही, शौरय-ए-फ़रंग्ही उम्मूमी और अन्य इदारो के बीच मुझ्तम्हिर नशस्त के आयोजन किए जाएं ताकि क़ुम के तरक्की के मंसूबे उसके तहरीखी और सस्क़ाफ़ती पृष्ठभूमि के अनुसार रहें।

अख़िर में उन्होंने कहा कि क़ुम की तहरीख को ज़िंदा करना दीन के खिलाफ नहीं बल्कि उसका पूरक है, क्योंकि तहरीख, इल्म और दीन तीनों इस शहर की रूह में ममज़ूज हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि इल्मी, सस्क़ाफ़ती और इंठनामी इदारो के आपसी ताल्लुक से क़ुम की तरक्की उसके दिनी और तहरीखी वोकार के मुताबिक आगे बढ़ेगी।

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