दरस ए अख़्लाक़
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ज़मीन पर होने वाला पहला गुनाह हसद था: आयतुल्लाहिल उज़मा सुब्हानी
हौज़ा / आयतुल्लाहिल उज़मा सुब्हानी ने अपने दरस ए अख़्लाक़ के दरस में हसद के घातक प्रभावों पर रौशनी डालते हुए कहा कि हसद केवल एक नैतिक बीमारी नहीं है बल्कि यह इंसान के ईमान को खा जाने वाला गुनाह है।
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हक़ीक़ी इल्म इंसान को शरह ए सदर अता करता हैं। आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमुली
हौज़ा / आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमुली ने मस्जिद ए आज़म में अपने दर्स ए अख़्लाक़ के दौरान कहा,सच्चा ज्ञान इंसान के दिल को रौशनी और व्यापकता प्रदान करता है और इसी को पवित्रता,तहारत कहा जाता है।
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पश्चिमी नैतिकता भौतिक हितों पर आधारित है: आयतुल्लाह सुब्हानी
हौज़ा /आयतुल्लाह जाफ़र सुब्हानी ने कहा कि अख़लाक की हक़ीक़ी तासीर तभी संभव है जब यह ईश्वरीय सिद्धांतों पर आधारित हो। यदि नैतिकता भौतिक आधारों पर आधारित है, तो यह केवल बाहरी और अस्थायी है।
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हक़ीक़ी इल्म इंसान को शरह सद्र प्रदान करता है: आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमोली
हौज़ा/आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमोली ने मस्जिद आज़म में नैतिकता पर एक व्याख्यान के दौरान कहा: हक़ीक़ी इल्म आदमी को गरिमा और व्यापकता देता है और उस शरह सद्र प्रदान करता है।
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दरस-ए-अख़लाक़ः
नमाज़ अल्लाह का ज़िक्र और रहस्यों का कभी ख़त्म न होने वाला ख़ज़ाना है
हौज़ा / अल्लाह के साथ इंसान के संबंध के लिए नमाज़ से ज़्यादा मज़बूत व स्थायी कोई साधन नहीं है।
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जब अल्लाह किसी का मार्गदर्शन करना चाहता है, तो वह उसके दिल को अपनी इबादत की ओर निर्देशित करता है
हौज़ा / हुज्जतुल इस्लाम अकबरज़ादे ने कहा: इस्लाम में आस्था के सबसे महत्वपूर्ण सदस्यों में से एक ईश्वर में विश्वास और अत्याचार से नफरत है।
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दरस ए अख़्लाक़
मुश्किलों के वक़्त अल्लाह तआला की नेमतों को याद कीजिए
हौज़ा/जब कोई मुश्किल पेश आती है तो हम भूल जाते हैं कि अल्लाह तआला ने हमारी सैकड़ों मुश्किलों को हल किया है, यह भी वैसी ही एक मुश्किल हैं ऐसी सूरत में हम उसी से मदद मांगे जो तमाम मुश्किलों का हल करने वाला हैं।
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दरस ए अख़्लाक़
हमारी ख़राबियों का इलाज
हौज़ा/जिस दीन के ज़रिए कल अरब की जाहिलियत का इलाज हुआ था, जिस दीन के ज़रिए अजम (ग़ैर अरब) की जाहिलियत का इलाज हुआ है, उसी दीन के ज़रिए हमारी जाहिलियत का इलाज भी मुमकिन हैं।
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दरस ए अख़्लाक़
गुनाह इंसान की रूह की चमक को ख़त्म कर देता हैं।
हौज़ा/सुप्रीम लीडर ने फरमाया,तौबा का एक भाग इस्तेग़फ़ार है यानी अल्लाह से माफ़ी मांगना यह अल्लाह की अज़ीम नेमतों में से है यानी अल्लाह ने अपने बंदों के लिए तौबा का दरवाज़ा खोल रखा है कि वो कमाल व बुलंदी की राह में आगे बढ़ सकें।
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दरस ए अख़्लाक़
ख़ुद को कैसे बदलें?
हौज़ा/ज़िंदगी में इम्तेहान आपको मज़बूत बनाने के लिए आते हैं इसलिए उसका डट कर सामना कीजिए अपने आप को यक़ीन दिलाइए कि मेरा अल्लाह मेरा रब मुझसे इतनी मोहब्बत करता है बेशक वह मुझे इम्तेहान में डालकर कुछ सीख देना चाहता है।
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दरस ए अख़्लाक़
नमाज़ सभी हालतों में इंसान को जन्नत के क़रीब कर देती हैं
हौज़ा/इंसान अपनी व्यक्तिगत ज़िन्दगी में कभी कभी मेहनतों, कठिनाइयों और मुसीबतों के असर में और सामाजिक ज़िन्दगी में कभी कभी बदलाव लाने वाली घटनाओं के प्रभाव में जिहाद करता हैं, मगर इंसान की सबसे ज़्यादा जो हालात बदल सकती है और नमाज़ है।
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दरस ए अख़्लाक़
रिश्तेदारों से अच्छा अख़्लाक़, दूसरों में अच्छा अख़्लाक़ पैदा होने का सबब बनता हैं।
हौज़ा/अच्छा अख़लाक़ सामाजिक संबंध के साधन और सामाजिक लगाव के चैनल में से है। अगर रिश्तेदारों में आपस में संबंध बने रहें तो स्वाभाविक तौर पर जो लोग नेक, अच्छे व्यवहार वाले और अच्छी बात करने वाले हैं, अच्छी चीज़ें और ख़ूबियां एक दूसरे में पैदा कर सकते हैं।
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दरस-ए-अख़लाक़ः
तक़वा,अल्लाह तआला से डर पैग़म्बरों की पहली और आख़िरी नसीहत हैं
हौज़ा/तक़वा (अल्लाह से डर) और परहेज़गारी लोक परलोक की कामयाबी की कुंजी हैंभटकी हुई मानवता जो तरह तरह की व्यक्तिगत व सामाजिक मुश्किलों व मुसीबतों पर फ़रियाद कर रही है अल्लाह की तरफ़ से बेफ़िक्री, जेहालत, लापरवाही की मार और कीचड़ के उस दलदल में धंस जाने का नतीजा है, जो उसने अपने लिए ख़ुद तैयार किया हैं।
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दरस-ए-अख़लाक़
हर इंसान को अपने अंदर हमेशा अच्छी सिफ़त और गुण पैदा करने की कोशिश करनी चाहिए
हौज़ा/सुप्रीम लीडर ने फरमाया,अगर कुछ अच्छी और पसंदीदा सिफ़त, उन पश्चिमी मुल्कों में जिन्होंने दुनिया में ज्ञान को बढ़ावा दिया है न होती आज वह अपनी मर्यादा को खो बैठते और उन्हें दुनिया में किसी चीज़ की अहमियत ना मालूम होती,
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:दरस ए अख़लाक़
ग़ुनाहों से बचना सबसे अहम काम हैं
हौज़ा/हमें ख़ुद को पाकीज़ा बनाने ख़ुद को पाक करने की कोशिश करनी चाहिए यानी रूहानी पाकीज़गी के आला दर्जे तय नहीं किए जा सकते मन की पाकीज़गी तक़वे से होती है, परहेज़गारी से होती है, ख़ुद की निगरानी से होती हैं।
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दरस-ए-अख़लाक़:
बुरा अख़्लाक़,अच्छे अमल को ख़राब करता हैं
हौज़ा/कुछ लोग अच्छे इंसान होते हैं लेकिन उनका अख़्लाक़ बुरा होता है घर में बीवी बच्चों के साथ लोगों के साथ बुरा अख़्लाक़ अपनाते हैं, उनके कर्म अच्छे होते हैं लेकिन उनका अख़्लाक़ बुरा होता हैं, जिसके कारण उनके अच्छे कर्म भी बुरे अखलाक खा जाते हैं।
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:दरस ए अख़लाक़
नमाज़े शब गुनाहों को ख़त्म कर देती हैं
हौज़ा/जब आप 'नमाज़े शब' पढ़ते हैं, जो गुनाह आपने दिन में किए होते हैं, उन्हें ख़त्म कर देती है, क्या इससे बेहतर भी कोई चीज़ हो सकती है? रूहानियत से लगाव रखने वाले, अल्लाह के रास्ते पर चलने वाले नमाज़े शब को इसी वजह से ख़त्म न होने वाला ख़ज़ाना व ज़ख़ीरा मानते हैं।
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सहीफ़ा-ए सज्जादिया रूह और फ़िक्र को मज़बूत बनाती हैं
हौज़ा / सहीफ़ा ए सज्जादिया की सभी दुआएं ऐसी हैं हमें मौत की याद दिलाती हैं, हमें ग़लतियों से रोकती हैं।
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:दरस ए अख़लाक़
अख़लाक और रूहानियत में उसूल परस्त बनिए
हौज़ा/रूहानियत और अख़लाक़ के मैदान में उसूल परस्त बनिए कुछ लोग ख़्याल करते हैं कि यूनिवर्सिटी का मतलब ऐसा माहौल जहाँ दीन की पाबंदी, मज़हब व अख़लाक़ वग़ैरह की पाबंदी ज़रूरी नहीं है मुनासिब नहीं हैं।
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दरस ए अख़्लाक़
समाज के उसूलों से फ़िक्री रूजहान का तालमेल ही डिसिप्लिन हैं
हौज़ा/सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई ने कहां, क़ानून पर अमल,अपने हक़ से ज़्यादा की मांग न करना, दूसरों का हक़ न छीनना, वक़्त को अहमियत देना चाहे अपना वक़्त हो या दूसरों का पैसों और कारोबार के सिलसिले में और इन जैसी चीज़ों में क़ानून का पालन, यह सब डिसिप्लिन का हिस्सा हैं।
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अल्लाह के साथ दिली रिश्ते की हिफ़ाज़त कीजिए और उसे मज़बूत बनाइए
हौज़ा/हमारी सिफ़ारिश ये है क़ुरआन की तिलावत कीजिए क़ुरआन से उनसियत पैदा कीजिए हदीसों से उनसियत पैदा कीजिए, हदीसों के ज़रिए अहलेबैते अतहार की तालीमात से आगाही हासिल कीजिए,
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दीनी समाजों में अख़्लाक़ के फलने फूलने के लिए नसीहत ज़रूरी
हौज़ा/आज नसीहत की ज़रूरत हैं,अनैतिकता तंग नज़री, नाउम्मीदी, बदगुमानी, दूसरों के लिए बुरी सोच और चाहत, जलन, कंजूसी और दूसरी अख़लाक़ी बुराइयों से लोगों को दूसरों को दूर करें।
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दरस ए अख़लाक़
निराशा को दूर करने का तरीक़ा है मज़बूत ईमान
हौज़ा/इंसान दुनियावी हदेसात का सामना करने के लिए अपने जिस्म को मज़बूत बनाता है, तो इंसान को उन हादेसात से लड़ने के लिए क्या करना चाहिए, जो किसी न किसी तरह उसकी रूह से संबंधित होते हैं?
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दुआ से महरूम इंसान के दिल से अल्लाह की याद निकल जाती हैं
हौज़ा/दुआ, इंसान के दिल से ग़फ़लत को दूर कर देती है, उसे अल्लाह की याद दिलाती है और उसकी याद को दिल में ज़िंदा रखती है। दुआ से वंचित लोगों को, जो सबसे बड़ा घाटा होता है, वो ये है कि अल्लाह की याद उनके दिल से निकल जाती है।
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:दरस एअख़्लाक़
दुआएं, अख़लाक़ी बीमारियों का इलाज करती हैं
हौज़ा/हमें इस्लामी अख़्लाक़ को जानना भी चाहिए - हम सबको, इसमें बच्चे और बूढ़े की कोई बात नहीं है, लेकिन नौजवान ज़्यादा और बेहतर हैं और इस्लामी अख़लाक़ से आरास्ता भी होना चाहिए
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तौबा, इंसान पर अल्लाह तआला की बरकतों के दरवाज़े खोल देती हैं
हौज़ा/हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सैय्यद अली ख़ामनेई ने कहां,इस्तेग़फ़ार का मतलब है गुनाहों पर अल्लाह से माफ़ी मांगना और तौबा करना। अगर ये इस्तेग़फ़ार सही तरीक़े से किया जाए तो इंसान पर अल्लाह बरकतों के दरवाज़े खोल देता है।