हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने फरमाया,इस्लामी जगत की पीड़ा के बहुत से कारण हैं जब हम फूट का शिकार हों, जब एक दूसरे के हमदर्द न हों जब यहाँ तक कि एक दूसरे का बुरा चाहने वाले बन गए हों तो इसका नतीजा यही है।
क़ुरआन फ़रमाता है,और अल्लाह और उसके रसूल की इताअत करो और आपस में झगड़ा न करो वरना कमज़ोर पड़ जाओगे और तुम्हारी हवा उखड़ जाएगी।(सूरए अनफ़ाल, आयत-46)
जब तुम आपस में झगड़ा करोगे तो कमज़ोरी पैदा हो जाएगी। फ़शल' यानी कमज़ोरी "तज़हबा रीहोकुम" का मतलब "तज़हबा इज़्ज़तोकुम" यानी इज़्ज़त गवां दोगे।
फूट का शिकार हुए तो स्वाभाविक तौर पर मिट्टी में मिल जाओगे, ज़लील हो जाओगे, अपने ऊपर ग़ैरों के वर्चस्व की राह समतल कर दोगे फूट का नतीजा यही है।
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